अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 15/3/2022
श्रृंखला में पीछे हम जैन दर्शन के अन्तर्गत जीव या आत्मा की चर्चा कर रहे थे। आत्मा वही जो जीव है। जिसमें चेतना है। जिसमें बोध अर्थात् जिसमें समझ हो। जिसमें ज्ञान हो। जिसमें विवेक हो। वह जीव है। ‘आत्मा’ यह शब्द दर्शन के क्षेत्र में बड़े महत्त्व का है। ‘मैं’ यह बोलने वाला ‘मैं’ आत्मा है, अगर ऐसा कहें तो अनुचित नहीं होगा। यह ‘मैं’ जीव ही कह सकता है। जीव में ही ‘मैं’ होने का भाव रहता है। जैन आचार्य जीव के कई भेद करते हैं। इनमें संसारी और मुक्त भेद महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें संसारी और मुक्त भेद का अंतर एक कथा से समझने का प्रयास करते हैं।
एक नवयुवती बस में यात्रा कर रही थी। थोड़ा आगे बढ़ने पर अगले स्टॉप पर एक बूढी माँ आई और उसके बगल की सीट पर बैठ गई। बूढ़ी माँ ने अपने कई बैग युवती से सटाकर रख दिए। बूढ़ी महिला के दूसरी ओर बैठी महिला परेशान हो उठी। उस महिला ने युवती से कहा कि वह बूढ़ी महिला से सामान हटाने के लिए क्यों नहीं बोलती? तब युवती ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “हमारे साथ की यह यात्रा है ही कितनी लम्बी? मैं अगले ही स्टॉप पर उतरने वाली हूं, उसके बाद आप आराम से बैठ पाएँगीं।” ऐसा कहकर वह युवती अपनी सीट से खड़ी हो गई। अपने स्टॉप की प्रतीक्षा करने लगी। ताकि वह महिला आराम से बैठ सके।
यह प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। उस महिला की तरह संसारी जीव सीट पर कब्जा करना चाहता है। हर जगह हर समय चीजें इकठ्ठा करते हुए भूल जाता है कि ‘यह जीवन यात्रा है ही कितनी लंबी।’ वह केवल संसार के जीवन-चक्र में घूमता रहता है। पुन: पुन: इस शरीर से उस शरीर को पहनता और उतारता रहता है। उसके लिए जीवन यात्रा अनन्त है। उसके लिए मुक्ति सम्भव नहीं।
जबकि मुक्त जीव उस युवती की तरह है। जिसे अपना अगला पड़ाव मालूम है। वह अगली यात्रा की तैयारी में सतत् रत है, जागरूक है। यही जीवन की क्रान्ति है। जहाँ से व्यक्ति मुक्त-जीव की यात्रा का आरम्भ करता है। भव बन्धनों से मुक्त हो उठता है। मुक्त हो जाता है। जिन हो जाता है।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 49वीं कड़ी है।)
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अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ…
48. गुणवान नारी सृष्टि में अग्रिम पद धारण करती है…
47.चेतना लक्षणो जीव:, ऐसा क्यों कहा गया है?
46. जानते हैं, जैन दर्शन में दिगम्बर रहने और वस्त्र धारण करने की परिस्थितियों के बारे में
45. अपरिग्रह : जो मिले, सब ईश्वर को समर्पित कर दो
44. महावीर स्वामी के बजट में मानव और ब्रह्मचर्य
43.सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से बाँट दो
42. सत्यव्रत कैसा हो? यह बताते हुए जैन आचार्य कहते हैं…
41. भगवान महावीर मानव के अधोपतन का कारण क्या बताते हैं?
40. सम्यक् ज्ञान : …का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात!
39. भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में जिन तीन रत्नों की चर्चा की, वे कौन से हैं?
38. जाे जिनेन्द्र कहे गए, वे कौन लोग हैं और क्यों?
37. कब अहिंसा भी परपीड़न का कारण बनती है?
36. सोचिए कि जो हुआ, जो कहा, जो जाना, क्या वही अंतिम सत्य है
35: जो क्षमा करे वो महावीर, जो क्षमा सिखाए वो महावीर…
34 : बौद्ध अपनी ही ज़मीन से छिन्न होकर भिन्न क्यों है?
33 : मुक्ति का सबसे आसान रास्ता बुद्ध कौन सा बताते हैं?
32 : हमेशा सौम्य रहने वाले बुद्ध अन्तिम उपदेश में कठोर क्यों होते हैं?
31 : बुद्ध तो मतभिन्नता का भी आदर करते थे, तो उनके अनुयायी मतभेद क्यों पैदा कर रहे हैं?
30 : “गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास”
29 : कोई है ही नहीं ईश्वर, जिसे अपने पाप समर्पित कर हम मुक्त हो जाएँ!
28 : बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?
27 : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26 : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25 : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24 : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23 : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा!
22 : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो
21 : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो?
20 : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है
19 : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है
18 : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है
17 : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?
16 : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?
15 : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?
14 : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?
13 : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं?
12 : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन
11 : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?
10 :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?
9 : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!
8 : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?
7 : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?
6 : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है
5 : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?
4 : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?
3 : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!
2 : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?
1 : भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?
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