‘सनातन धर्म रक्षा मंडल’ अगर बना तो वह करेगा क्या, और कैसे?

समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश

आंध्रप्रदेश के युवा नेता और वहाँ के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने ‘सनातन धर्म रक्षण मंडल’ की स्थापना का प्रस्ताव सामने रखा है। इस तरह उन्होंने भारतीय संस्कृति के लिए सम्भवत: सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे को स्वर दिया है। इसके बाद बताया जाता है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस मंडल का प्रारूप बनवाना भी शुरू कर दिया। हालाँकि ऐतिहासिक रूप से सोचें तो लगभग एक सहस्राब्दी से संकीर्ण उपनिवेशी विचार वाले लोग ऐसे संघ के विरोधी रहे हैं। इसलिए भारत और विश्व की दृष्टि से ऐसा संगठन एक दुर्लभतम घटना है। लेकिन यह प्रयास कितने प्रभावी होंगे यह हम सब पर निर्भर करेगा।

तिरुमला के प्रसाद के दूषित होने की घटना से देशभर में आक्रोश

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम् के प्रसाद के दूषित होने की घटना उजागर होने के बाद देशभर में सनातनधर्मियों में नैसर्गिक आक्रोश है। इस घटनाक्रम से सनातन आस्तिक समाज के श्रद्धा-भाव को जो आघात लगा है, वह शब्दों से परे हैं। पवन कल्याण द्वारा किए गए 11 दिन का प्रायश्चित्त व्रत बताता है कि मामला कितना गम्भीर है। अयोध्या, वृन्दावन सहित देशभर के आस्तिक समाज और साधु सन्तों के दु:ख और आक्रोश में यह प्रतिध्वनित होता है। असंख्य आम लोगों के शोक और पश्चाताप की अग्नि हमारे संविधान के लिए एक चेतावनी है। जब कभी, जहाँ कहीं पवित्रता और श्रद्धा का उल्लंघन होता है तो उससे परिणाम युगान्तकारी होते हैं। अन्य राजनैतिक प्रतिक्रिया भी सामने आने लगी है। जहाँ एक पक्ष इस घटना के माध्यम से संविधान और राजनीति के धर्मविरोधी तत्वों का उच्छेदन करना चाहते हैं। वहीं कई दल इस पर स्वर्णिम चुप्पी साधे, साँस थामे मामले के ठंडा होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सनातन परम्पराओं के साथ खिलवाड़ का इतिहास पुराना

औपनिवेशिक प्रभावों के चलते संविधान और गणराज्य में सनातन परम्पराओं के साथ खिलवाड़ का इतिहास पुराना है। हिन्दू कोड बिल, गौहत्या निषेध के साथ, सनातन देवस्थान और संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण का मुद्दा धार्मिक लोगों के दिल में एक खंजर की तरह सालता रहा है। निष्पक्ष दृष्टि से देखने पर भी ऐसे हस्तक्षेप संविधान द्वारा नागरिकों के पवित्र विश्वास पर घात के रूप में सामने आते हैं। सरकारी नियंत्रण के नाम पर कथित धर्मनिरपेक्ष और नास्तिक विचारधारा के लोगों द्वारा पूर्ण निलज्जता से धार्मिक संस्थानों की पवित्रता को नष्ट-भ्रष्ट करने और लूटपाट के अफरात मामले इसी चरित्र को सामने रखने हैं। धर्मस्व विभाग से मन्दिरों और मठों का धन लेकर सरकारों ने लोक-लुभावनी रेवड़ियों की दुकानें लगाई हैं। इस धन का प्रयोग धर्मविरोधी गतिविधियों में किया जाता रहा है तो कहीं विकास के नाम पर धर्मस्थलों का पर्यटनीकरण और बाजारीकरण किया जा रहा है।

उपनिवेशी विचारों का बोझ ढो रही अदालतें भी कदाचित ही न्याय कर पाती हैं। सरकार द्वारा किए जा रहे अतिचार और अदालतों में पीड़ित सनातनधर्मियों की याचिकाओं की अन्तहीन सूचियाँ और तारीखेंभर हैं। ऐसी लूट के ज्यादा खुल्लम-खुल्ला उदाहरण दक्षिण भारत से आते हैं। मसलन- तमिलनाडू में ‘हिन्दू रिलिजियस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट’ विभाग को हाईकोर्ट ने बड़ी तादाद में मन्दिरों की सम्पत्तियाँ बेचते हुए पाया है। विभाग के कई कर्मचारी प्राचीन विग्रह और मूर्तियों की तस्करी करते पकड़े गए हैं। मन्दिरों की पूजा-परम्पराओं में मनमाना हस्तक्षेप, मन्दिरों का संसाधन जैसा इस्तेमाल, सबरीमलय में उपासना पर प्रश्नचिह्न, पशुबलि बनाम कुर्बानी, दीवाली पर पटाखों पर प्रतिबन्ध जैसे अनेक विवादास्पद निर्णय होते रहे हैं। इससे यह धारणा दृढ़ हुई है कि सनातन परम्परा के संस्थानों के पास न तो ईसाईयों की तरह संगठन और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग है और न इस्लाम की तरह मज़हबी क़ौमी एकता। इसलिए संवैधानिक अधिकारों के नाम पर सभी नवाचार और अतिचार सिर्फ सनातनधर्म परम्परा और संस्थानों पर ही लागू होते हैं। 

सनातन धर्म रक्षा मंडल के गठन, उसकी भूमिका और अधिकार-क्षेत्र की चुनौतियाँ

इस पृष्ठभूमि में प्रस्तावित ‘धर्म रक्षा मंडल’ के गठन से अधिक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक विचार आज और नहीं। किन्तु यह कितना प्रभावी और उपादेय होगा, यह उसका संगठन पर निर्भर करेगा। इस प्रकल्प को आगे बढ़ाने में कौन-कौन से विद्वान आचार्य किस भूमिका में जुड़ते हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। लेकिन इतना तो सत्य है कि यदि ‘धर्म रक्षण मंडल’ तात्कालिक दृष्टिकोण से किसी एक नेता, जज या नौकरशाह के निर्देशन में कुछ लोगों को चयनित कर बनाया जाता है, तो उससे कुछ ज्यादा अपेक्षा नहीं की जा सकती।

यदि ‘धर्म रक्षण मंडल’ एक विधायी लक्ष्य लेकर सभी सम्प्रदाय-परम्पराओं के संरक्षण और संवर्धन, उसके हितों की दृष्टि से शासन और संवैधानिक मुद्दों पर समग्र पक्ष रखने के लिहाज से कार्य करेगा तो ही यह न्याय कर सकेगा। इसीलिए इसकी स्थापना के लिए विलक्षण मेधा, अतुलनीय बल, महान पवित्रता और विशाल हृदय की आवश्यकता होगी। इसके आधार पर ही यह संघ अपने सम्प्रदायों के पारमार्थिक और लौकिक हितों के विस्तार में सहायक हो सकेगा।

‘सनातन धर्म रक्षा मंडल’ कितना कारगर और प्रभावी होगा? इस प्रश्न का कोई सीधा-सरल जवाब नहीं है। साथ ही हमें यह देखना होगा कि इस मंडल की संरचना और गठन कैसे होता है? उदाहरण के लिए संवैधानिक तंत्र में व्याप्त न्याय के सिद्धान्त, उसके स्रोत, बल और उस पर नागरिक और वैश्विक विचारों के प्रभाव को समझना के लिए यह मंडल कैसे अपने पारम्परिक प्रस्थानों का चयन करेगा? कैसे वह अपने विविध सम्प्रदायों के दर्शन, नीति और हितों को समझते हुए सरकारों के साथ विचार-विनिमय करेगा और तदनुरूप निर्णय लेगा। नि:संदेह यह पारम्परिक ज्ञान तंत्र के अध्ययन और वर्तमान समय की परिस्थितियों के आकलन का बहुत श्रमसाध्य भागीरथी प्रयास होगा। इ

इस सन्दर्भ में अभी कई प्रश्न अनुत्तरित हैं,

• सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सनातन धर्म रक्षण मंडल की संरचना कैसी होगी? वैदिक शाखा, विभिन्न मत-सम्प्रदाय का पदक्रम क्या होगा?

• ‘सनातन धर्म रक्षा मंडल’ का लक्ष्य, शास्त्रीय भूमिका और ज़िम्मेदारी क्या रहेगी? सदस्य, संगठन-संस्थान के कर्त्तव्य क्या रहेंगे? इस प्रयास को शुरू कैसे किया जाएगा? सरकार भी भूमिका कहाँ तक रहेगी?

• यदि मंडल को यथार्थ में सनातन धर्म के प्रमुख सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करना है तो उन सम्प्रदाय के वास्तविक और विशुद्ध आचरण से प्रवृत्तिशील विद्वान गृहस्थ और विरक्त विद्वान आचार्यों को कैसे चयनित किया जाएगा? इस चयन की प्रक्रिया का अधिकार किसके पास होगा?

• मंडल अपनी क्या भूमिका क्या देखता है? मंडल के सदस्यों के क्या अधिकार रहेंगे? सम्प्रदायों के मार्गदर्शक और सदस्य आचार्य-विद्वानों का चयन कैसे होगा?

• मंडल के निर्णय शास्त्रसम्मत हों इसके लिए निर्णयों के चिन्तन-मनन के लिए क्या प्रक्रिया रहेगी?

• मंडल के निर्णय सरकार तक कैसे पहुँचाए जाएँगे? उनको क्रियान्वित कौन करेगा? सनातन धर्म से सम्बन्धित या उसे या उसके सम्प्रदायों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर कैसे अपना पक्ष रखेगा।

• यह मंडल और प्रभावशाली बनकर समाज की सेवा कर सके, इसके लिए वह कैसे धार्मिक जनों को जोड़ेगा? उनके हितों के लिए निर्णय लेगा? संवैधानिक और राजकीय स्तर विभिन्न संगठन और संस्थाओं से किस भूमिका में विचार विनिमय करेगा?

• यह मंडल उन सम्प्रदायों के शिक्षण-प्रसार-संरक्षण और संवर्धन के लिए क्या कर सकेगा?

• मंडल अपने अन्तर्गत आने वाले सम्प्रदायों के संस्थान, तीर्थ, शिक्षण व्यवस्था के संरक्षण और संवर्धन के लिए क्या करेगा? वह देशभर में उनके लिए क्या और कैसे सहायता करेगा?

• सम्प्रदायान्तर्गत विवाद की स्थिति को सुलझाने के लिए क्या तंत्र रहेगा?

• मंडल सनातन के हितों में सभी वर्ण-जाति समूहों से सहयोग और भागीदारी कैसे सुनिश्चित करेगा? क्षुद्र हित साधने वालों को कैसे अंकुश में रखेगा? कैसे सही लोगों को आगे बढाएगा?

यह कुछ मूलभूत बातें हैं, जिनके आधार पर ‘सनातन धर्म रक्षा मंडल’ की भूमिका और सम्यक् उपादेयता स्पष्ट होगी। क्या यह मंडल अपने लक्ष्य, मूल्य और कर्त्तव्यों को निभाने के लिए एक तंत्र बनाने में सफल होता है? सम्प्रदाय-धर्म के विश्वास में हमारा प्रामाणिक चिन्तन और प्रयास ही इसे बताएँगे। 

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(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी की स्थापना के समय से ही जुड़े सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं।)

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