अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 6/9/2021

अंग्रेजों ने जब भारत में न्याय-व्यवस्था बनाना शुरू की तो शुरू में कुछ संशोधनों के साथ मुसलिम फौज़दारी कानून लागू किए। ख़ास तौर पर, उन पर जगहों में, जहाँ वे पहले से अमल में थे। हालाँकि अंग्रेजों द्वारा किए गए संशोधनों को अपना असर दिखाने में कुछ ज़्यादा ही समय लग गया। उदाहरण के लिए, 1789 तक भी बंगाल में मुसलिम कानून के मुताबिक डाकू-लुटेरों को उनके हाथ या पैर काट देने की सज़ा दी जाती थी। जबकि अंग्रेज यह सज़ा हटा चुके थे। इसके अलावा, अंग्रेजों ने उन इलाकों में अपने कानून लागू किए, जहाँ से मुसलिम फौज़दारी कानून हट चुका था। जैसे, मराठा शासन के अधीन रहे इलाके। इसका कारण ये कि आपराधिक मामलों में हिंदु कानून की स्पष्टता को लेकर अंग्रेजों के मन में संदेह था। हालाँकि दीवानी मामलों में उन्होंने इन इलाकों में भी प्रचलित हिंदु कानूनों, परंपराओं का ही सम्मान किया। कहीं-कहीं न्यायाधीशों के विवेक पर भी मामला छोड़ा।

वैसे, मुसलिम फौजदारी कानून और पश्चिम की प्रणाली के बीच असामंजस्य ख़ूब थे। उदाहरण के लिए मुसलिम कानून में किसी की हत्या की सज़ा के तौर पर ‘किसास-उ-दैयत’ (ब्लड मनी) की इजाज़त थी। यह एक तरह का आर्थिक दंड था, जो हत्या करने वाले को चुकाना पड़ता था। यह पैसा उस परिवार को मिलता था, जिसके सदस्य की हत्या की गई। ‘किसास-उ-दैयत’ कितना देय होगा, यह हत्यारे की हैसियत से तय होता था। यह बंदोबस्त शायद इसलिए था क्योंकि मुसलिम कानून में किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ किया गया अपराध सरकार या राज्य के विरुद्ध ज़ुर्म नहीं माना जाता था। ग़ैर-मुसलिम की ग़वाही या उसके सबूतों के आधार पर उस वक़्त किसी मुसलिम को सजा भी नहीं दी जाती थी। क्योंकि मुसलिम कानून के सामने ग़ैर-मुसलिम दोयम दर्ज़े पर थे। किसी मुसलिम को तब भी सज़ा नहीं दी जाती थी, अगर वह ये सिद्ध कर दे कि उसने अमुक व्यक्ति को इसलाम अपनाने पर मज़बूर करते हुए मारा है।

ऐसे विरोधाभासों को दूर करने के लिए अंग्रेजों ने धीरे-धीरे इसलामिक कानून में लगातार संशोधन किए। जैसे, कॉर्नवालिस ने 1790 में सभी मुसलिम अदालतों के न्यायाधीशों को निर्देश दिया कि वे अपराध के मक़सद, उसकी प्रकृति और स्थिति को ध्यान में रखकर फ़ैसले सुनाएँ। ज़ुर्म कैसा भी क्यों न हो, उसे सरकार के विरुद्ध अपराध माना जाएगा। सभी न्यायाधाीश हर बार प्रत्येक अपराध का संज्ञान लें। भले मुसलिम कानून की व्यवस्था के अनुसार, पीड़ित परिवार अपराधी के विरुद्ध कार्रवाई न चाहता हो, तब भी। इसके बाद 1797 में सभी तरह के आर्थिक दंड का पैसा सरकारी ख़जाने ज़मा कराए जाने का अनिवार्य प्रावधान किया गया। जबकि पहले पीड़ित पक्ष को ज़ुर्माना/हर्ज़ाना अदा किए जाने की व्यवस्था थी। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार तय करने लगी कि पीड़ित को किस हिसाब से कितना भुगतान किया जाए। इस तरह और भी कई बदलाव होते रहे।

फिर 1827 में बम्बई ने एक कानून-संहिता का एलान कर दिया। इसे सब पर समान लागू किए जाने की व्यवस्था की गई। इसके बाद बंगाल ने 1832 में व्यवस्था कर दी कि मुसलिम फौज़दारी कानून ग़ैर-मुसलिमों पर लागू नहीं होगा। हालाँकि अन्य सभी जगहों में अंग्रेजों और यूरोपियों को छोड़कर सब लोग मुसलिम फौजदारी कानून के अधीन रहे। यानि, पूरे ब्रिटिश भारत में विभिन्न अपराधों के लिए सजा के मानक एक समान नहीं रहे। उदाहरण के लिए, बंगाल में अगर कोई व्यक्ति बिना अनुज्ञा (लाइसेंस) के मुद्रांक (स्टांप) बेचते पकड़ा जाता, तो उस पर थोड़ा ज़ुर्माना ही लगता था। वहीं, मद्रास में इस अपराध के लिए मामूली क़ैद की सजा थी। अवैध मुद्रांक ख़रीदने वाले को दोनों प्रांतों में कोई सजा नहीं थी। जबकि बम्बई में इस अपराध में शामिल दोनों पक्षों (क्रेता-विक्रेता) को शारीरिक दंड दिया जाता था। साथ ही पाँच साल तक क़ैद की सजा भी दी जाती थी। 

इस तरह तमाम प्रयासों के बावज़ूद न्यायिक प्रशासन में भ्रम और अव्यवस्था की स्थिति बनी हुई थी। लिहाज़ा अधिकार पत्र अधिनियम-1833 में पहली बार भारत के लिए विधि संहिता बनाने का प्रावधान किया गया। इसके मुताबिक 1834 में विधि आयोग बना। उसके प्रमुख लॉर्ड मैकॉले बनाए गए। उनके मुताबिक, “इस क़वायद का लक्ष्य कानून की एक संस्था बनाना था। यह संस्था हिंदुस्तान की धर्म-जाति की स्थितियों को न देखते हुए सभी मामलों में जहाँ तक हो, कानूनन समरूपता सुनिश्चित करे।” मैकॉले ऐसी संहिता के निर्माण की उम्मीद कर रहे थे, जो पूरी तरह नई हो, किसी की पैबंदकारी नहीं। उनके नेतृत्व वाला विधि आयोग इस पर सहमत था कि वह कुछ नया ढूँढ रहा है। इस पर मैकॉले ने टिप्पणी भी की, “विधि संहिता की जो प्रणाली हमने प्रस्तावित की है, वह किसी मौज़ूदा व्यवस्था का सार-संग्रह नहीं है। और… किसी भी मौज़ूदा प्रणाली से हमें ज़मीनी कार्य में मदद भी नहीं मिली है।” हालाँकि उन्होंने संहिता का जो मसौदा प्रस्तावित किया, वह ‘नेपोलियन संहिता’ और लिविंगस्टोन की ‘लुइसियाना की संहिता’ से प्रभावित था, ऐसा माना जाता है। मगर इन दोनों के बारे में दावा ये भी किया गया कि ये किसी विशिष्ट मत के बजाय सार्वभौम सिद्धांतों पर आधारित थीँ। 

हालाँकि अंग्रेज जो विधि-संहिता बना रहे थे, वह मुसलिम फौज़दारी कानून की झलक से अछूती नहीं रही। जैसा, सर जॉर्ज कैंपबेल ने 1852 में लिखा भी, “हमारे फौज़दारी कानून की आधारशिला अब भी इसलामिक संहिता है। वैसे, इसमें इतना रद्दो-बदल हो चुका है कि अब उसे पहचानना भी मुश्किल है। वास्तव में, इतने कानूनी बदलावों से गुजरने के बाद अब यह एक तरह से हमारी अपनी प्रणाली हो चुकी है। अब इसे वे लोग अच्छी तरह से समझने लगे हैं, जिनका यह पेशा है। अब इसके लिए उन्हें मूल इसलामिक कानून के अध्ययन की ज़रूरत नहीं पड़ती, न ही इसलामिक जानकारों से मशविरा लेना पड़ता है। फिर भी हमारी इस इमारत की नींव में है, तो इसलामिक कानून ही।”

इसके बावज़ूद फिट्जैम्स स्टीफन ने मैकॉले की विधि-संहिता की व्याख्या “पूरी तरह नई और विधायी अभिव्यक्ति के मौलिक तरीके” के रूप में की। सैद्धांतिक रूप से वह इस तरह बनाई भी गई थी। इसका मुख्य गुण ये था कि यह स्पष्ट, सटीक थी। इस तरह 20 साल से अधिक की क़वायद के बाद भारत में नई विधि संहिता 1858 में लागू हुई।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(नोट : ‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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