ओलम्पिक में भारत को अमेरिका जितने पदक क्यों नहीं मिलते? ज़वाब ये रहा, पढ़िए!

निकेश जैन, इन्दौर, मध्य प्रदेश

जब मैं अमेरिका में कैलिफोर्निया के फ्रीमॉन्ट में रहता था, तो मेरे घर के पास वाँशिंगटन हाईस्कूल नामक एक विद्यालय था। वहाँ कुछेक हफ़्तों के अन्तराल से शुक्रवार या शनिवार के दिन खेल के मैदान में बड़ी खेल-प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी। संगीत बैंड भी होता था और हजारों लोग उस प्रतिस्पर्धा को देखने आया करते थे। उस दौरान इतनी कारों की भीड़ हो जाती थी कि हमारी रिहाइश तक में कारें खड़ी हुआ करती थीं। 

मुझे अचरज होता था कि आख़िर स्कूल में होने वाली यह कौन सी खेल-प्रतिस्पर्धा है, जिसे देखने इतने सारे लोग आते हैं। तो एक दिन मैंने आख़िर प्रतिस्पर्धा देखने आए कुछ लोगों से पूछ ही लिया। मुझे जो ज़वाब मिला, उसकी मुझे उम्मीद नहीं थी। वह अन्तर-विद्यालयीन फुटबॉल मैचों की प्रतिस्पर्धा थी, जिसमें खेलने वाले बच्चों के माता-पिता अपने रिश्तेदारों और परिचितों को लेकर खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने आते थे। 

सच मानिए, उस स्कूल स्तर के मैच में भी ऐसा उत्साह होता था, जैसे हमारे यहाँ आईपीएल मैचों के दौरान होता है। 

अब ज़रा इससे ठीक विपरीत स्थिति पर ग़ौर कीजिए। मैं बताता हूँ।  

मैंने देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय इन्दौर के लिए तीन साल तक क्रिकेट खेला है। तब मैं उसी विद्यालय में पढ़ाई करता था। उस दौरान जब हमारे मैच होते थे, तो कौआ तक मैदान में नज़र नहीं आता था। ऐसे ही, एक बार उदयपुर में इन्दौर और मुम्बई विश्वविद्यालयों की टीमों के बीच मैच था। उस दौरान वहाँ पूरे स्टेडियम में सिर्फ़ 35 लोग थे। इस संख्या में खिलाड़ी, अम्पायर, ग्राउंड स्टाफ वग़ैरा सब शामिल थे। 

इससे भी आगे की बात। लखनऊ में एक बार हमारी मध्यप्रदेश की टीम रणजी ट्रॉफी जैसे प्रतिष्ठित क्रिकेट टूर्नामेंट का मैच खेल रही थी। उत्तर प्रदेश की टीम से हमारा मुक़ाबला था। उस अहम मुक़ाबले को देखने के लिए एक भी दर्शक मौज़ूद नहीं था। स्टेडियम में सिर्फ़ खिलाड़ी थे और ग्राउंड स्टाफ के लोग। 

मेरा ख़्याल है, अब तक वह बात समझ आ चुकी होगी, जो मैं कहना चाहता हूँ।

दरअस्ल, खेल ऐसा विषय है जिसमें दर्शकों की पर्याप्त संख्या का होना खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने के लिए किसी टॉनिक की तरह काम करता है। तभी वे अच्छा प्रदर्शन करने, करते रहने के लिए उत्साहित होते हैं। 

लिहाज़ा, इन्हीं उदाहरणों से इस सवाल का ज़वाब लीजिए कि ओलम्पिक में भारत को अमेरिका जितने पदक क्यों नहीं मिलते? ज़वाब सीधा है- हमारे यहाँ खेल और खिलाड़ियों को दर्शकों का उतना समर्थन और प्रोत्साहन नहीं मिलता। अगर मिल जाए, तो निश्चित रूप से ओलम्पिक में हमारे पदकों की संख्या बढ़ जाएगी। 

क्या सहमत हैं?

———

निकेश का मूल लेख 

There was a school named Washington High School near my apartment complex when I used to live in Fremont, California.

Every few weeks on a Friday or Saturday evening the sports arena (stadium) of that school would host a big sports event. With music bands playing, thousands of people would visit the arena to watch the game.

There used to be so many cars that parking around my complex used to get filled!

I used to wonder what event was this and one day asked some people. To my surprise I learnt it was inter school American Football matches and parents and relatives would just flock to encourage their kids!

It used to feel almost like an IPL event – Just for a school match!

Now let me share a contrast…

I played cricket for DAVV, Indore university for consecutive three years during my college years.

Even crows wouldn’t come to watch our matches 🙂

Indore university playing against Mumbai University in Udaipur and there are only 35 people on the ground including players, umpires and ground staff! That’s it!

Forget that – MP cricket team playing against UP in Ranji Trophy match in Lucknow and there is no one watching that game other than players and ground staff!

Hope you get the point….

Sports need to be celebrated by public.

Our Olympic medal tally will automatically improve over a period of time if public starts celebrating effort put by sport players!

Agree? 

——- 

(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

——

निकेश के पिछले 10 लेख

27 – माइक्रोसॉफ्ट संकट में रूस-चीन ने दिखाया- पाबन्दी आत्मनिर्भरता की ओर ले जाती है
26 – विदेशी है तो बेहतर ही होगा, इस ‘ग़ुलाम सोच’ को जितनी जल्दी हो, बदल लीजिए!
25 – उत्तराखंड में 10 दिन : एक सपने का सच होना और एक वास्तविकता का दर्शन!
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23 – कॉलेज की डिग्री नौकरी दिला पाए या नहीं, नज़रिया ज़रूर दिला सकता है
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21 – टी-20 क्रिकेट विश्वकप : अमेरिका के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने पाकिस्तान को हरा दिया!
20- आपके ‘ईमान’ की क़ीमत कितनी है? क्या इतनी कि कोई उसे आसानी से ख़रीद न सके?
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