मन का हो…ये हमेशा क्यों नहीं अच्छा?

रैना द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 26/7/2021

हिन्दी फिल्मों के बड़े अभिनेता अमिताभ बच्चन अक्सर अपने जीवन का एक किस्सा सुनाया करते हैं। वे बताते हैं, “मैं छोटा ही था, जब बाबूजी ने जब मुझे जीवन के एक विचलित मोड़ पर ये सीख दी थी- मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा। उस वक्त मेरी समझ में नहीं आया कि जो मन का न हो वो ज्यादा अच्छा कैसे हो सकता है? लेकिन बाद में जब उन्होंने समझाया तो समझ गया कि अगर तुम्हारे मन का नहीं हो रहा है, तो समझो ईश्वर के मन का हो रहा है। और ईश्वर हमेशा तुम्हारा अच्छा ही चाहेंगे, इसलिए ज्यादा अच्छा।” 

यहाँ ऑडियो में जो कहानी है, वह इस बात को उदाहरण के साथ समझाती है। बताती है कि आख़िर मन का हो…ये हमेशा क्यों नहीं अच्छा? और मन न होना कैसे ईश्वर की इच्छा? 

कहानी सुनने लायक है। सोचने और समझने लायक भी। क्योंकि यह जितनी रोचक है, उतनी सोचक भी। 
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(रैना द्विवेदी गृहिणी हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सक्रिय सदस्य हैं। वे अक्सर इस तरह की कहानियों को ऑडियो या वीडियो स्वरूप में लेकर डायरी के पाठकों के सामने आती हैं। वॉट्सएप सन्देश के तौर पर ये इन्हें डायरी तक पहुँचाती हैं।)

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