‘मत कर तू अभिमान’ सिर्फ गाने से या कहने से नहीं चलेगा!

संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से, 7/4/2021

पूरा जीवन राय बनाने में, विचारों को संश्लित करने में, सघन अनुभूतियों की जमीन को उर्वरा बनाने में ही निकलता नज़र आ रहा है। यह प्रक्रिया उस एकांत से बार-बार गुजरी, जिसने एक बड़ी समझ बनाने में मदद की पर जब भी कहीं कुछ दिखा, लगा और भीतर से महसूस किया तो तन-मन शीतल न हो पाया। एक अगन में, ज्वर में भावनाएँ उफनती रहीं और अपनी समझ से कुछ कह दिया।

यह कहने में दिल-दिमाग में कुछ भला ही रहा होगा पर विचार जब शब्दों से होते भाषा के बहाने प्रकट हुए तो अपने अर्थ और गुणवत्ता खो बैठे। फिर तमगे लगते रहे। मानो सलीब पर टँगे शरीर पर जो आया, वो एक कील ठोंककर चला गया। ये कीलें इतनी ज्यादा थीं कि आत्मा के भीतर तक किरचियों की तरह चुभती रहीं। इस सबमें जो सबसे ज़्यादा उभरा, वह था असन्तोष, नैराश्य और सन्ताप। 

लगातार गूँथने और मथने से अन्दर ही अन्दर जुगुप्सा, ईर्ष्या और द्वेष ने जन्म लिया। इसकी परिणति यह हुई कि हाड़-माँस के भीतर महात्कांक्षाएँ जागने लगीं, अपने भीषणतम स्वरूप में और सफ़र की मंज़िलें दुश्वार होती गईं। इतनी कि एक पल लगा कि जगत मिथ्या ही, सर्वोच्च सत्य है। इसी को पा लेना जीवन का प्रारब्ध है। एक हतोत्साहित व्यक्तित्व का हश्र इस कदर बौना साबित होगा, यह अन्दाज़ नहीं था।

इस सबमें नीले रंग के नीचे बहुत सुकून मिला। नीले आकाश से नदी तक। नदी से समुन्दर तक। शाम के समय गाढ़े नीले रंग में बदलती शाम ने जब भी आसमान के एक कोने से दीवार उठाना शुरू की, तब कहीं जाकर एक हंस अकेला दिखा, यम के दूतों ने पुकारा और लगा कि जो धर्मी थे वो पार हो गए और पापी चकनाचूर। यही से कबीर घर कर गए और बुल्ले शाह याद आए जो अपने दरवेश से, अपने ख़ुदा से मिलने जा रहे थे तो घाघरा पहनकर चल दिए और बोले, “मौलाना, तू मेरे बीच न आ।” वे कहते हैं, “इस घट अन्तर बाग-बगीचे इसी में सिरजन हारा।”

फिर वो बुल्ले शाह हों, गोरखनाथ, मछन्दर या कबीर हों, सबने यही कहा और समझा भी यही कि बाहर कुछ नहीं सब अन्दर है। मूरत भी, सीरत भी और सूरत भी। और इसी को अब पलटना है। मुड़ना है, जैसे मुड़ जाते हैँ घुटने पेट की तरफ। दूसरों की ओर देखने के बजाय अपने अन्तस में झाँके, उंगलियाँ अपने भीतर डालकर खंगालें। देखें कि ज्ञान की जड़िया कहाँ है। सद्गुरु तो हर कोई है। सबमें सब है। परम अंश भी और परमार्थ भी। पर अब एक बार भीतर झाँकने की बेला है ये।

गुरु भी छूटेगा और छोड़ना ही पड़ेगा। यह जतन से भरी जोत है, इसे प्रज्ज्वलित रखने को भीतर से जलना होगा। इतना कि अपने भीतर का कोलाहल शान्त हो जाए। अनहद नाद भी सुप्त हो जाए, इतनी बेचैनी हो उस विशाल शान्ति को पाने की। और तमस (अन्धकार) जो भीतर बाहर पसरा है, वह गाढ़े नीले रंग में बदल जाए, तभी मुक्ति सम्भव है। ‘मत कर तू अभिमान’ सिर्फ गाने से या कहने से नहीं चलेगा। इसके लिए खपना होगा, सबके बीच रहकर।

जिन जोड़ी तिन तोड़ी… रास्ते कहीं नहीं जाते उन्हें मन के चक्षुओं से मोड़ना पड़ता है। और जब मुड़ गए, तो सब सध गया समझो। 

———-

(संदीप जी स्वतंत्र लेखक हैं। यह लेख उनकी ‘एकांत की अकुलाहट’ श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी है। #अपनीडिजिटलडायरी की टीम को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने इस श्रृंखला के सभी लेख अपनी स्वेच्छा से, सहर्ष उपलब्ध कराए हैं। वह भी बिना कोई पारिश्रमिक लिए। इस मायने में उनके निजी अनुभवों/विचारों की यह पठनीय श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी की टीम के लिए पहली कमाई की तरह है। अपने पाठकों और सहभागियों को लगातार स्वस्थ, रोचक, प्रेरक, सरोकार से भरी पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने का लक्ष्य लेकर सतत् प्रयास कर रही ‘डायरी’ टीम इसके लिए संदीप जी की आभारी है।) 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

होली की शुभकामना का एक सन्देश यह भी- रंग प्रेम है, तो संग राधा और जीवन कृष्ण!

होली पर #अपनीडिजिटलडायरी को मिले शुभकामना सन्देशों में एक बेहद ख़ास रहा है। #अपनीडिजिटलडायरी के… Read More

14 hours ago

सरल नैसर्गिक जीवन मतलब अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी!

मानव एक समग्र घटक है। विकास क्रम में हम आज जिस पायदान पर हैं, उसमें… Read More

4 days ago

कुछ और सोचिए नेताजी, भाषा-क्षेत्र-जाति की सियासत 21वीं सदी में चलेगी नहीं!

देश की राजनीति में इन दिनों काफ़ी-कुछ दिलचस्प चल रहा है। जागरूक नागरिकों के लिए… Read More

5 days ago

सवाल है कि 21वीं सदी में भारत को भारतीय मूल्यों के साथ कौन लेकर जाएगा?

विश्व-व्यवस्था एक अमूर्त संकल्पना है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले घटनाक्रम ठोस जमीनी वास्तविकता… Read More

6 days ago

महिला दिवस : ये ‘दिवस’ मनाने की परम्परा क्यों अविकसित मानसिकता की परिचायक है?

अपनी जड़ों से कटा समाज असंगत और अविकसित होता है। भारतीय समाज इसी तरह का… Read More

1 week ago