माँ कहती हैं- ये खदेड़े गए हैं, नहीं तो जान पर जोख़िम लेकर कोई यूँ नहीं निकलता!

उस रोज़ कामगारों के रेले-दर-रेले से गुज़रते हुए सिर्फ़ मैं ही बेचैन नहीं था। मेरे साथ गाड़ी की पिछली सीट में सवार माँ भी यह सब देखकर उतनी ही हैरान-परेशान हो रही थीं। उन्होंने जीवन के 64 बसन्त देखे हैं। लेकिन उन्होंने भी इससे पहले अपने जीवन में ‘देस-परदेस’ के बीच इस तरह का संघर्ष नहीं देखा। अपने ‘देस’ जाने की ऐसी भगदड़, ऐसी बेचैनी, ऐसी बदहवासी नहीं देखी कभी।

आज के मायनों में जिस स्तर पर लोगों को पढ़ा-लिखा कहा जाता है, माँ इस मामले में उससे कहीं पीछे हैं। हालाँकि वे शिक्षक रही हैं और अनुभव से ‘लढ़ी’ हैं। इसीलिए उनकी टिप्पणियाँ अक्सर खरी होती हैं। जीवन के निचोड़-सीं। उन्होंने कामगारों की इस आवाजाही पर भी एकबारगी ऐसी ही टिप्पणी की कि मेरे ज़ेहन में जा अटकी। उन्होंने कहा, “ये लोग खदेड़े गए हैं। इन्हें भगाया गया है या भागने पर मजबूर किया गया है। नहीं तो जान पर जोख़िम लेकर कोई ऐसे नहीं निकलता। और फिर वहाँ से, जहाँ वे ‘जीवन की बेहतरी’ कमाने गए थे?”

कुछ ख़बरें हैं। कई बयान और थोड़े तथ्य, जो माँ के इस निष्कर्ष को मज़बूत आधार देते नज़र आते हैं। आज, 16 मई को ही, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में इन्दौर के सम्भागीय आयुक्त आकाश त्रिपाठी का एक बयान प्रकाशित हुआ है। इसमें उन्होंने बताया है, “पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र की सरकारी बसें लगातार मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान के कामगारों को हमारी सीमा पर ला-लाकर छोड़ रही हैं। यहाँ तक कि इन लोगों को मध्य प्रदेश की ग़लत सीमाओं पर लाकर छोड़ा जा रहा है। रीवा, सतना जैसे राज्य के पूर्वी जिलों और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक के लोगों को पश्चिमी मध्य प्रदेश की सीमा पर लाकर छोड़ दिया गया है। ये सब जो भी हो रहा है, ग़लत है। महाराष्ट्र सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए था।”

अलबत्ता सम्भागीय आयुक्त की बात को कोई ‘सरकारी’ कहकर ख़ारिज कर दे तो उसके लिए कामगारों के बयान भी हैं। मुम्बई में काम करने वाले रवीन्द्र गुप्ता उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जा रहे हैं। सिर पर 15 किलोग्राम वज़नी बैग। साथ में दो महिलाएँ, छह बच्चे। सब के सब पैदल चल रहे हैं। दैनिक भास्कर को उन्होंने बताया, “महाराष्ट्र सरकार ने बस से हमारे जैसे हज़ारों लोगों को मध्य प्रदेश की सीमा (बड़वानी जिले में सेंधवा कस्बे के बीजासन घाट) पर छुड़वाया है। हमें बताया गया था कि यहाँ से आगे मध्य प्रदेश सरकार की बसें मिलेंगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। इसलिए हम मजबूरन पैदल घर के लिए निकल पड़े।”

तिस पर इसी अख़बार ने टोल नाकों के कर्मचारियों के हवाले से आँकड़े भी दिए हैं। इनके मुताबिक 14 मई तक, 10 दिनों में क़रीब 25 लाख लोग महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश आ चुके थे। महाराष्ट्र के लगभग एक लाख 20 हज़ार वाहन (ट्रक, छोटे ट्रक, लोडिंग ऑटो, आदि) इन कामगारों को लेकर मध्य प्रदेश की सीमा के भीतर आए थे। इनमें 40 हज़ार के आस-पास तो ऑटो रिक्शा ही थे। ये आँकड़े कहीं से भी मनगढ़न्त नहीं लगते। क्योंकि भोपाल से अजयगढ़ तक और फिर वापसी करते हुए कुल क़रीब 900 किलोमीटर के सफर में हमें हर कदम पर महाराष्ट्र के वाहन नज़र आए थे। मध्य प्रदेश के वाहनों की तुलना में तीन-चार गुना ज़्यादा।

और अब थोड़े से तथ्य। महाराष्ट्र में इस समय जो राजनीतिक दल ‘सरकार’ में बना हुआ है, उसकी राजनीति हमेशा ‘उत्तर भारतीय बनाम मराठी माणूस’ की रही है। उत्तर भारतीय यानि मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग। दूसरी बात, इसी दल के समर्थकों-कार्यकर्ताओं में सबसे बड़ी तादाद ऑटो रिक्शा चालकों की रही है। शुरुआत से ही। तीसरी बात, कोरोना संक्रमण के लिहाज़ से महाराष्ट्र इस समय पूरे देश में सबसे गम्भीर स्थिति में है। और सरकार चलाने के अनुभव के लिहाज़ से मुख्यमंत्री नए हैं। सो सम्भव है, हालात सम्हालने के विकल्प उन्हें बहुत ज़्यादा सूझ न रहे हों। इसीलिए हो सकता है, उन्होंने कम से कम बाहरी कामगारों की देखभाल के दायित्व को झटकने की कोशिश की हो।

हालांकि यह ज़रूरी नहीं कि ये अनुमान सही ही हों। लेकिन अगर ये कड़ियाँ आपस में जुड़ी भी हुईं हैं तो कोई बड़ा अचरज नहीं मानना चाहिए। पर दुःख तो फिर भी माना ही जा सकता है। क्योंकि ऐसे ही तमाम कारणों से आज लाखों-लाख लोग ‘मुल्क के बँटवारे’ जैसे हालात सहने पर मजबूर हैं। उस वक़्त जैसे लोग नए बने मुल्कों की सरहदों के इधर-उधर खदेड़े जा रहे थे, वैसे ही आज प्रान्तों की सीमाओं के इस तरफ़-उस तरफ़ धकेले जा रहे हैं। कुछ हालात, कुछ लाचारी, कुछ सियासत, कुछ मजबूरी। सब मिलकर बस इन्सानी ज़िस्मों को इधर से उधर खदेड़ने में लगे दिखते हैं। मानो कि इनकी अपनी कोई बिसात ही न हो।

अगला किस्सा अगली किस्त में…

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(तस्वीर : पहली- देश बँटवारे के वक़्त ‘मुल्क’ जाने के लिए लगे जमावड़े की। दूसरी- आज के दौर में मध्य प्रदेश के बीजासन घाट पर ‘देस’ जाने को जुटे कामगारों की। तस्वीरें इन्टरनेट से साभार ली गई हैं।)

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