अनुज राज पाठक, दिल्ली
मन्दिरों, मठों और गुरुकुलों के स्वरूप को समझना होगा। पूर्वकाल में गुरुकुल, मन्दिर, मठ भारत में केवल धार्मिक, आध्यात्मिक और शिक्षा केन्द्र नहीं होते थे। ये तीनों समाज की मुख्य गतिविधियों के केन्द्र होने के साथ-साथ मानव निर्माण और समाज निर्माण के केन्द्र भी रहे हैं।
धर्म के बिना मानव मशीन की तरह है। धर्म मानव को समाज में रहने के लिए एक नीति का, सिद्धान्त का काम करता है। वास्तव में धर्म समाज में रहने के लिए आचार संहिता के रूप में काम करता है। धर्म कहता है, ‘त्याग करते हुए भोग कीजिए।’ साथ ही कहता है, ‘अकेले खाना पाप है।’ धर्म का कार्य व्यक्ति को समाज के योग्य बनाना है। सामान्यत: यह धर्म उपदेश मन्दिरों से सहज रूप से प्राप्त होता रहा।
मानव की आत्मिक उन्नति के नियमों का निर्धारण आध्यात्म करता है। सामाजिक उन्नति तभी सम्भव है, जब व्यक्ति आत्मिक उन्नति के प्रति सजग होगा। आध्यात्म आत्मिक उन्नति के मार्गों पर चलने हेतु मार्गदर्शक है। आध्यात्म कहता है, ‘आत्म विद्धि’ अर्थात् स्वयं को बेहतर बनाओ। जब हम स्वयं को उत्कृष्ट बनाने का कार्य करते हैं, तब समाज को स्वत: एक अच्छा नागरिक प्राप्त होता है।
आत्मिक उन्नति हेतु मठ भी कार्य करते रहे हैं। वहाँ समाज हेतु घर त्याग कर आए व्यक्ति आत्मिक उन्नति कर समाज के निर्माण में भूमिका अदा करते रहे। इसी तरह, शिक्षा देने का कार्य गुरुकुलों का होता था। वहाँ आचार्य शिष्य को पुत्रवत् मानकर उसे समाज में रहने और जीवनयापन योग्य बनाने का कार्य करते थे। शिष्य गुरुकुल से निकलकर समाज की समृद्धि में अपना योगदान देते थे। कौशल सीखकर व्यापार आदि से समाज का नेतृत्त्व करते थे।
भारत में इन तीनों के अतिरिक्त भी कई व्यवस्थाएँ रही हैं, जो कहीं न कहीं, इसी तरह के कार्यों को अपनी-अपनी पद्धति के अनुरूप संचालित करती रहीं। इन्हीं में मन्दिर एक विशिष्ट पद्धति से धार्मिक, आध्यात्मिक और शैक्षिक कार्यों के केन्द्र रहे हैं। इन मन्दिरों में संसाधन जुटाने हेतु विविध आन्तरिक व्यवस्थाएं रही हैं। जैसे- मन्दिरों की समस्त व्यवस्थाओं के लिए गौशालाएँ, खेतिहर क्षेत्र, आदि होते थे। इससे मन्दिर के लिए दूध आदि की व्यवस्था होती थी।
लेकिन कालान्तर में ‘कर्णधारों’ और ‘ठेकेदारों’ ने इन तमाम व्यवस्थाओं को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इन व्यवस्थाओं पर बाज़ार हावी हो गया। आज उसी की एक चरम परिणति तिरुपति बालाजी मन्दिर से जुड़े विवाद के रूप में सामने आई है। आज तिरुपति बालाजी जैसे कई मन्दिर धन-धान्य से पूर्ण हैं। लेकिन उनकी आन्तरिक व्यवस्था को स्वतंत्र भारत में लगातार नष्ट-भ्रष्ट किया जाता रहा। और अफ़सोस कि हिन्दू समाज से कोई आवाज़ नहीं उठी!
दूसरे धर्मों के पूजास्थल अपनी स्वतंत्रता बरक़रार रख सके क्योंकि उनकी आन्तरिक व्यवस्था में बाहरी दख़लंदाज़ी अधिक नहीं हुई। जबकि मन्दिर समय के साथ पराधीन होते गए। इस पराधीनता ने मन्दिरों को बाज़ार के साथ-साथ सरकारों की भी कठपुतली बना दिया। इससे उनका अपना स्वरूप, पवित्रता, उनके सिद्धान्त आदि भी लगातार दूषित होते गए। इसके बावज़ूद हिन्दू समाज में कोई जन-आन्दोलन नहीं उठा।
इसका नतीज़ा? आज तिरुपति बालाजी मन्दिर ही नहीं, हिन्दू समाज के तमाम धर्मस्थल पराधीनता की बेड़ियों से जकड़ गए हैं। इस पराधीनता के कारण उन्ही के परिसर में उनकी पवित्रता को खंडित किया जा रहा है। उसका तमाशा बनाया जा रहा है, और कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। दुनिया को धर्म का पाठ पढ़ाने वाले एक जागृत सनातन समाज के लिए कैसी विडम्बना का काल है यह? और कितने शर्म की बात भी?
इस स्थिति को बदले जाने की ज़रूरत है। हिन्दू धर्मस्थलों की स्वतंत्रता हेतु समाज को आन्दोलित होने की आवश्यकता है। अपनी पुरानी व्यवस्था को पुनर्जीवित करना ज़रूरी है। ताकि हमारा समाज, हमारे धर्मस्थल अपने वास्तविक धार्मिक और आध्यात्मिक स्वरूप को फिर पा सकें। अपनी पवित्रता को भी पुन: स्थापित कर सकें। ऐसा हुआ तो यक़ीन मानिए, हमारी आस्थाओं को आहत करने का साहस किसी का नहीं होगा।
—————
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए डायरी पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)
सोचिए, भक्त और भगवान के बीच अगर ‘एचआर’ यानि ह्यूमन रिसोर्स मतलब तमाम सरकारी-निजी कम्पनियों… Read More
महाराष्ट्र सरकार ने अभी, 30 सितम्बर को एक चर्चित फ़ैसला लिया। इसके तहत महाराष्ट्र में… Read More
एक इकोसिस्टम यानि पारिस्थितिकी तब बनती है, जब एक सफल इकाई अपने जैसी ही दूसरी… Read More
ऑनलाइन ऑर्डर लेकर घर-घर तक भोजन आदि खाने-पीने की वस्तुओं की आपूर्ति करने वाली कम्पनी… Read More
साल 1978 में फिल्म आई थी ‘गमन’। उसमें मशहूर गायक सुरेश वाडकर की आवाज़ में… Read More
पहले कुछ चन्द मिसालें देखिए। ताज़ातरीन हैं, लेकिन अपने तरीक़े की कोई इक़लौती नहीं हैं।… Read More