समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल, मध्य प्रदेश
बड़के भाई ‘समानतावादी’…, पाँय लागी।
कैसा है आपका, ये ‘खुला खेल फ़रुक्ख़ाबादी’??
नहीं प्रकृति, कहीं भी समानतावादी।
कहीं मैदान, पठार, चोटी तो कहीं वादी।।
मिट्टी, पत्थर, रेत, हीरे, कहीं मोती।
ऊसर, दलदल, बीहड़, कहीं ऊपजाऊ खेती।।
बताओ भला, कर सकोगे सर्वत्र ‘समान’ मैदान?
हर जगह पठार, या सिर्फ घाटी एक समान??
कैसे होगा धातु, रत्न, स्वर्ण का एक सा वितरण?
सबको मिलेगी कैसे, शस्य श्यामला एक समान??
कोई श्वान कर खेत रखवाली, दूध रोटी पाता।
तो वनचर कुकुर, शिकार कर क्षुधा शान्ति पाता।।
ग्राम सिंह को मिलते जूते, जो करता भड़िहाई।
नाहक बहकाया ‘लघुबुद्धियों’ को, तुमने मार्क्स भाई।।
तुमने तो सिर्फ बेचा था, ‘कमज़र्फ़’ को सांडे का तेल।
क्रान्तिकारी तक़रीरों से तुम्हारे चेले, खेले खूब खूनी खेल।।
कुत्सित विकृत अधमता में जिन्होंने, बदल दी हर भलाई।
‘खुला खेल फ़रुक्ख़ाबादी’, उन्हीं नाती-चेलों का ही है न भाई?
—–
(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ भी लिखा लिया करते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)
—–
समीर की पिछली कविताएँ
2. एक ने मयूरपंख को परमात्मा का स्मृति-चिह्न बना पूजा और दूजे ने…!
1. पुरुष और स्त्री मन के सोचने के भिन्न तरीकों के बीच बहता जीवन!
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More