एआई…, मोबाइल से भी बड़ा ख़तरा बनकर आई… देखिए, पढ़िए कैसे!

टीम डायरी

मोबाइल के बारे में अभी कुछ समय पहले ही जाने-माने अभिनेता अनुपम खेर जी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया है। इसमें वे बता रहे हैं कि मोबाइल यूँ ही हट्‌टा-कट्‌टा नहीं हुआ है। उसने हमारा वक़्त खा लिया है। हमारे रिश्ते-नाते खा लिए हैं। हमारी सामाजिकता खा ली है। पड़ोस से हमारा मेल-जोल खा लिया। हमारी क़िताबें खा गया। इन मायनों में हमें अकेला कर दिया है। दुर्बल कर दिया है। और ख़ुद सबल हो रहा है। नीचे वीडियो है। देखा जा सकता है। महज़ दो मिनट का है।

 

दिलचस्प बात ये कि अनुपम खेर जी से क़रीब एक महीने पहले ‘मोबाइल के जनक’ कहलाने वाले मार्टिन कूपर का भी एक बयान पूरी दुनिया में चर्चित हुआ था। कूपर अभी 94 साल के हैं और लगभग 50 साल पहले मोबाइल को दुनिया के सामने लाने वालों में प्रमुखता से शुमार होते हैं। उन्होंने अपने साक्षात्कार में स्पष्ट तौर पर कहा था, “इन दिनों लोग जिस तरह से मोबाइल का बेतहाशा और ग़ैरज़रूरी इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे मैं बिल्कुल भी ख़ुश नहीं हूँ। मेरे अपने पोते-पड़पोते जिस तरह मोबाइल का उपयोग करते हैं, उसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी।”

अलबत्ता, मोबाइल की बात अभी थमी नहीं कि आज 30 अप्रैल को ही इज़राइल के बुद्धिजीवी, इतिहासकार, लेखक युवाल नोआह हरारी की एक चेतावनी सुर्ख़ियों में आ गई। यह चेतावनी एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) से सम्बन्धित है। उनके मुताबिक, “एआई के ज़रिए इंसानों के दिमाग़ को हैक किया जा रहा है। आने वाले वक़्त में इसके ज़रिए इंसानी दिमाग़ों को किसी भी दिशा में मोड़ा जा सकता है। उनकी राय, उनके विचार, उनकी बुद्धिमत्ता का उपयोग, सब कुछ नियंत्रित किया जा सकता है। उसकी दिशा बदली जा सकती है। सीधे और सरल शब्दों में कहें तो लोगों को वह देखने, सुनने, करने को मज़बूर किया जा सकता है, जिसे वे शायद सामान्य अवस्था में कभी करना नहीं चाहेंगे।”

हरारी के मुताबिक, “ख़तरा सिर्फ़ इतना ही नहीं है। दूसरी तकनीक की तुलना में एआई ज़्यादा ख़तरनाक इसलिए भी है क्योंकि यह अपने आप को ख़ुद ही लगातार विकसित कर सकती है। अपना बेहतर प्रतिरूप तैयार कर सकती है। जबकि दूसरी कोई भी तकनीकी आविष्कार ऐसा करने में अब तक सक्षम नहीं हुआ है। जैसे- मोबाइल फोन को ही लें। यह ख़ुद से अपने आप को विकसित नहीं कर सकता। अपने जैसा दूसरा प्रतिरूप नहीं बना सकता। उसके लिए उसे इंसानी बुद्धिमत्ता पर निर्भर रहना होता है। लेकिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के मामले में ऐसा नहीं है।”

सो, अब इन दो उदाहरणों के आधार पर सोचिए कि कहीं अपने विनाश की कहानी हम ख़ुद ही तो नहीं लिख रहे हैं? और समझ सकें तो समझिए कि आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कहाँ तक और कितना ठीक है?

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Neelesh Dwivedi

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