कला में कलाकार अपनी ‘जीवन-ज्योति’ डालता है, कोई मशीनी-बुद्धि यह कैसे करेगी?

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

दो वाक़िये बताता हूँ। पहला- अपने अनुभव का। यह कोई 20 बरस पहले की बात है। उन दिनों शारदीय नवरात्रि की तैयारियाँ चल रही थीं। भोपाल में कई जगहों पर छोटी-बड़ी मूर्तिशालाओं में मूर्तिकार माँ दुर्गा की प्रतिमाओं को आकार देने में लगे थे। उस दौरान ऐसी ही एक मूर्तिशाला में मेरा जाना हुआ। वहाँ सभी प्रतिमाएँ लगभग पूरी तरह तैयार थीं। दो-तीन दिनों के भीतर उन्हें उनके निर्धारित स्थलों तक पहुँचाया जाना था। इसके बावज़ूद प्रतिमाओं में वह बात नज़र नहीं आती थी, जो अमूमन दुर्गा पूजा पांडालों में उन्हें देखते समय महसूस होती है। 

इस पर मैंने वहाँ काम कर रहे एक मूर्तिकार से पूछ लिया, “अभी इनमें कुछ काम बाकी है क्या?” ज़वाब में पहले तो वह झिझका, मगर फिर बताया, “महालया के दिन इन्हें आख़िरी रूप देंगे।” “महालया?” मैंने पूछा। “हाँ, अमावस्या।” “तो तब क्या करेंगे आप?” “आप उसी दिन आना। ख़ुद पता चल जाएगा।” लिहाज़ा, मैं महालया के दिन फिर वहाँ पहुँचा। लेकिन तब तक मूर्तिकार अपना काम कर चुके थे शायद। क्योंकि उस मूर्तिशाला की तमाम मूर्तियाँ उस वक़्त ऐसी लग रही थीं, जैसे अभी बोल पड़ेंगी। एकदम जीवन्त। मानो किसी ने उनमें जान फूँक दी हो। 

मैंने उन मूर्तिकारों से फिर पूछा, “आपने क्या किया इन मूर्तियों में। ये तो अब बिल्कुल सजीव लगती हैं।” वे मुस्कुरा दिए। बताया कुछ नहीं। सब मूर्तियों को उनके नियत स्थानों में पहुँचाने की क़वायद में लगे रहे। अलबत्ता, यह सवाल मेरे ज़ेहन में अटका रह गया। मैं अपने तरीक़ों से उत्तर तलाशता रहा। कुछ वक़्त के बाद वह मिला भी। मालूम चला कि महालया के दिन मूर्तिकार माँ दुर्गा की मूर्तियों को ‘चक्षु दान’ किया करते हैं। इसे बंगाली में ‘चोखु दान’ भी कहते हैं। यानि अपनी आँखों की जीवन-ज्योति को मिट्‌टी की उन प्रतिमाओं में स्थापित करना।

हालाँकि इस उत्तर के मिल जाने के बाद मेरे मन में यह भी ख़्याल आया कि क्या सिर्फ़ मूर्तिकला में ही कलाकार अपनी कला को इस तरह जीवन्त करते हैं? तो गुज़रते वक़्त के साथ इसका ज़वाब मिला कि ‘नहीं’, हर तरह की कला जीवन्त होती ही तब है, जब कलाकार उसमें अपनी ‘जीवन ज्योति’ उड़ेलता है। अन्यथा हर गीत-संगीत सदाबहार न हो जाता? बरसों-बरस याद रह जाने वाला? हर तरह की चित्रकारी, क़लमकारी (लेखन), दस्तकारी, शिल्पकारी, आदि कालजयी न हो जाती? देश, काल, परिस्थिति की सीमाएँ तोड़कर ज़ेहन में न बैठ जाती? 

लेकिन ऐसा नहीं होता न? चन्द कलाएँ, चुनिन्दा लेखन, आदि ही होता है, जिसे कालजयी कहा जाता है। क्योंकि उसमें लेखक, कलाकार, ने अपनी जीवन-ज्योति डाली होती है। इसलिए वे जीवन्त होती हैं। अद्भुत होती हैं। अतुलनीय होती हैं। तो अब सवाल ये कि कलाकारी के इस मूल तत्त्व को क्या कभी कोई मशीनी-बुद्धि समझ पाएगी? क्या वह कभी इस क़िस्म के चमत्कार कर सकेगी? मशीनी-बुद्धि (आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस) के समर्थकों और वक़ालत करने वालों को उत्तर ढूँढ़ना चाहिए। हालाँकि ये उत्तर मिल ही जाएँगे, इसमें संशय पूरा है। 

इस बात की पुष्टि के लिए दूसरा वाक़िआ सुनिए। अभी दो-चार रोज पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रांस की राजधानी पेरिस में थे। वहाँ उन्होंने एआई एक्शन समिट (कृत्रिम बुद्धिमत्ता कार्रवाई सम्मेलन) को सम्बोधित किया। उन्होंने अपने सम्बोधन की शुरुआत एक तज़ुर्बे से की। उन्होंने कहा कि अगर एआई से कहा जाए कि वह उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बना दे, तो सम्भव है कि वह हमें सीधे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाकर दे देगी। ऐसा इसलिए क्योंकि एआई को उपलब्ध कराई जानकारियाँ/तथ्य (डेटा) अभी अधूरे, एकपक्षीय हैं।

हालाँकि भविष्य की भी कोई गारंटी नहीं कि एआई का कोई मंच विविध विषयों पर, सभी मामलों में निष्पक्ष, सर्वपक्षीय, सन्तुलित जानकारियों और तथ्यों के साथ हमारे बीच होगा। तो फिर ऐसी मशीनी-बुद्धि के बारे में यह कहना कि वह आने वाले वक़्त में अद्भुत कलाकारियों, कलाकृतियों का माध्यम बन सकता है, निरर्थक हवाबाज़ी हुई न? अलबत्ता, फिर भी कुछ मशीनी-बुद्धि समर्थक लोग हैं, जो मानते और तर्कों के साथ बताते भी हैं कि एआई जल्द ही कला, संगीत, भाषा को नए सिरे से परिभाषित करने वाली है! मानते रहें, बताते रहें, क्या जाता है! 

—-

इस लेख को भी पढ़ा जा सकता है

उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाने को कहा तो एआई ने सीधे हाथ वाले की बना दी!

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

भारत को भी अब शिद्दत से ‘अपना भारतीय एलन मस्क’ चाहिए, है कोई?

अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन ने जिस तेजी से ‘डीप स्टेट’ (जनतांत्रिक नीतियों में हेरफेर करने… Read More

5 hours ago

जयन्ती : गुरु गोलवलकर मानते थे- केवल हिन्दू ही पन्थनिरपेक्ष हो सकता है!

बात साल 1973 की है, राँची की। कार्यकर्ताओं के मध्य बैठक में अपने भाषण में… Read More

1 day ago

अब कोई ओटीपी देता नहीं, इसलिए बदमाश छीन लेते हैं, 12-13 तरीक़े हैं इसके, देखिए!

नीचे दिए गए वीडियो में बहुत ज़रूरी जानकारी है। वर्तमान डिजिटल दौर में हर व्यक्ति… Read More

2 days ago

इस देश को ‘दुनिया का सबसे बड़ा भीड़-तंत्र’ बनने से बचाइए ‘सरकार’, बचाइए!

पिछले साल आठ नवम्बर को बेंगलुरू के सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन संस्थान के जनसंख्या शोध… Read More

3 days ago

गाने वाली घड़ी की कहानी ‘प्रहर’ का सफ़र, भारत भवन से अब दक्षिण वृन्दावन!

बीते क़रीब 10 दिन पहले की बात है, फरवरी के पहले ही हफ़्ते की। महज… Read More

5 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह ‘नवजागरण’ बड़ा तकलीफदेह था!

# नवीनीकरण # हर बार जब हम कोई शिकार करते, तो वह दिल से हमारा… Read More

6 days ago