आज के ‘रैपर्स’ और उनके चाहने वालों को शास्त्रीय संगीत का ये ‘रैप’ ज़रूर सुनना चाहिए

टीम डायरी

मौज़ूदा दौर के संगीत की दुनिया में एक लोकप्रिय शैली हुआ करती है ‘रैप’। यानी जिसमें निश्चित लय पर कुछ बोल रखे जाते हैं। ये बोल अमूमन किसी कविता के नहीं, बल्कि कहानी के जैसे होते हैं। युवा पीढ़ी निश्चित तौर पर इस शैली के बारे में और ज़्यादा जानती होगी क्योंकि ख़ासकर युवाओं को यह बहुत पसन्द आती है। इस शैली में गाने वाले कलाकार युवाओं के आदर्श हुआ करते हैं। अलबत्ता, इन्हीं युवाओं से अगर कहा जाए कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गायक भी ‘रैप’ गा सकते हैं तो शायद उन्हें यक़ीन न हो। लिहाज़ा, उन्हें इस बात की पुख़्तगी करने के लिए यह छह मिनट का वीडियो, शुरू से अन्त तक ज़रूर सुनना चाहिए। उन्हें यक़ीन हो जाएगा। तमाम ग़लतफ़हमियाँ दूर हो जाएँगी। या दूसरे शब्दों में कहें तो एक ही झटके में दिमाग़ के तमाम जाले साफ हो जाएँगे।

लंदन में होने वाले ‘दरबार म्यूज़िक फेस्टिवल’ का ये वीडियो है। इसमें दक्षिण भारतीय संगीत की दक्ष गायिका अरुणा साईराम जी अपनी प्रस्तुति दे रही हैं। उसके हर छोटे-बड़े पहलू पर ग़ौर कीजिएगा। वे शुरुआत कर रही हैं ‘तिल्लाना’ से। इसके आगे की बात से पहले बता दें कि उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की पद्धति में एक शैली होती है ‘ख़्याल’। उसमें ‘तराना’ गाया जाता है। कहते हैं कि जाने-माने शाइर और सूफी गायक अमीर खुसरो ने ख़्याल शैली में ‘तराना’ गाने की शुरुआत की थी। वही ‘तराना’ दक्षिण भारत में पहुँचकर ‘तिल्लाना’ हो गया। ‘तराना’ की तरह ‘तिल्लाना’ में भी आम तौर पर कविता या बन्दिश नहीं होती। बस, कुछ गूढ़ गढ़े हुए शब्द होते हैं। 

तो इसी विशिष्टता के अनुरूप वीडियो में अरुणा जी की शुरुआत भी हुई है। सुर, लय, ताल के साथ। पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने ‘तिल्लाना’ की तय विशिष्टता को तोड़ दिया है। अब इसमें यहाँ से, सुनने वालों को एक कथा सुनाई दे रही है। ग़ौर से सुनेंगे, तो इसके बोलों से भगवान श्रीकृष्ण की कथा-स्तुति सुनाई देगी। समझने की क़ोशिश करेंगे तो कालिया-मर्दन का दृश्य दिखाई देगा। श्रीकृष्ण कालिया के फणों पर पैर रखकर नृत्य कर रहे हैं। उसके साथ खेल रहे हैं। और इधर मंच पर अरुणा जी लय और ताल के साथ खेल रही हैं। समान उतार, एक जैसे चढ़ाव। एक सी तेजी और बीच में कभी समान मन्द गति। अब ‘तिल्लाना’ और ‘कलिंग-नर्तन’ की कथा साथ चल रही है।

इस कथा-स्तुति को दक्षिण भारत में ‘कलिंग-नर्तन’ के नाम से ही जाना जाता है। तो ‘कलिंग-नर्तन’ और ‘तिल्लाना’ के इस संग-सफर के दाैरान प्रतीत ये भी हो सकता है जैसे सिर्फ तालवद्य ही चल रहे हैं। सुर पीछे ठिठक गए हैं कहीं। क्योंकि अरुणा जी ने तानपूरा बन्द कर दिया है। वॉयलिन और तानपूरे पर संगत करने वाली कलाकार भी कुछ देर से ठिठकी हुई हैं। लेकिन नहीं। प्रस्तुति के आख़िरी चरण से कुछ पहले अरुणा जी जब तानपूरा फिर शुरू करती हैं तो पता चलता है कि सुर पूरे सटीक तरीके से वहीं साथ में मौज़ूद हैं। सो, अब फिर वॉयलिन भी संगत देने लगा है। लिहाज़ा, अब ठगे रह जाने, ठिठक जाने की बारी सुनने वालों की है। देखिएगा, हॉल गूँज रहा है। 

ये हिन्दुस्तानी शास्त्रीय ‘रैप’ का उन्नत संस्करण है। इसे देख-सुनकर ‘रैप’ और ‘रैपर्स’ के नाम पर कॉलर खड़ी करने वाले यक़ीनन अपनी कॉलरें वापस मोड़ लेंगे। बशर्ते….।

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Neelesh Dwivedi

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