36 लाख का बाथटब, 12 लाख का कमोड…समझिए, नेता ऐसे बर्बाद करते हैं हमारा पैसा!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्‌टनम शहर से लगे एक गाँव की पहाड़ी पर 61 एकड़ के क्षेत्र में फैला महलनुमा परिसर। इस परिसर में कुछ-कुछ दूरी पर बनी तीन बडृी-बड़ी इमारतें। इन इमारतों का नाम है, गजपति, कलिंग और वेंगी। इनमें से हर इमारत में 12-12 शयनकक्ष हैं, ऐसा बताया जाता है। इमारतों के स्नानघरों में नहाने के लिए 36-36 लाख रुपए के टब लगे हैं। जबकि दीर्घशंका से निवृत्त होने के लिए जो बैठकी है, जिसे अंग्रेजी भाषा में ‘कमोड’ कहते हैं, उसकी प्रत्येक की कीमत है लगभग 12 लाख रुपए। यही नहीं, इमारतों में लगभग 200 महँगे झूमर आदि लगे हैं। जगह-जगह इतालवी मार्बल की सज्जा है। दीगर सजावटी सामान है, वह अलग। 

कलिंग नामक इमारत में लगभग 300 लोगों की बैठक-व्यवस्था वाला आलीशान सभागार है। पूरे परिसर में केन्द्रीयकृत वातानुकूलन व्यवस्था है। वह भी 200 टन की। जबकि निरन्तर बिजली की आपूर्ति के लिए 100 किलोवॉट का विद्युत सबस्टेशन अलग से बनाया गया है। यही नहीं, हर इमारत में यह सुनिश्चित किया गया है कि उसके लगभग हर कमरे से पहाड़ी के सौन्दर्य के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी के समुद्र का सुन्दर नज़ारा दिखाई देता रहे। इस पूरे परिसर को बनाने में कुल लागत आई है, लगभग 450 करोड़ रुपए की। और इसे बनवाया किसने है? आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे जगन मोहन रेड्‌डी ने! सरकारी ख़जाने यानि जनता के पैसों से। 

सो, सवाल यह हो सकता है कि आख़िर इसे बनवाया क्यों गया? क्या मुख्यमंत्री को ख़ुद रहना था इसमें? या फिर किसी पर्यटन केन्द्र के रूप में इसके विकसित किए जाने की योजना थी? तो, इन सवालों का ज़वाब अब तक भी किसी के पास नहीं है। राज्य में चूँकि सरकार बदल चुकी है। तेलुगुदेशम पार्टी के नेता चन्द्रबाबू नायडू अब मुख्यमंत्री हैं। और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्हें अब तक सूझ ही नहीं रहा है कि वे इस आलीशान ‘महल-परिसर’ का करें क्या? कैसे जनता के इतने सारे पैसों को सही उपयोग में लाया जाए? 

अलबत्ता, यह एक मामला नहीं है। अभी पिछले साल की ही बात है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने ऐसे ही काम से ख़ूब सुर्ख़ियाँ बटोरी थीं। उन्होंने भी मुख्यमत्री के तौर पर रहने के लिए आवंटित अपने बँगले की नए सिरे से साज-सज्जा कराई थी। इस पर सरकारी ख़ज़ाने के 45 करोड़ रुपए ख़र्च कर दिए थे। इसमें से लगभग 11.30 करोड़ रुपए से आन्तरिक सजावट हुई। महँगे पत्थर लगवाए गए, क़रीब 6.02 करोड़ रुपए के। लगभग 2.85 करोड़ रुपए के अग्निशमन उपकरण और बिजली का नया सामान लगाया गया, 2.58 करोड़ रुपए से। सिर्फ नए पर्दे लगाने पर ही एक करोड़ रुपए ख़र्च कर दिए गए, ऐसी ख़बरें आई थीं। 

यहाँ ग़ौर कीजिए कि केजरीवाल वही मुख्यमंत्री हैं जो अपने प्रदेश की जनता से यह वादा करके सत्ता में आए थे कि वे तो आम आदमी हैं। सरकार भी आम आदमी की तरह चलाएँगे। मुख्यमंत्री के रूप में न कोई बड़ा बँगला लेंगे, न सरकारी गाड़ी और न कोई सुरक्षा आदि। लेकिन जैसे-जैसे वे राजनेता के रंग में रचते-बसते गए, सब बातें पीछे छूट गईं। बस, रह गया तो ‘स्याह-सफ़ेद’। अंग्रेजी ज़ुबान में कहें तो ‘ब्लैक एंड व्हाइट’।

इसीलिए यह बात हमेशा याद रखिए, हिन्दुस्तान ही नहीं दुनियाभर के राजनेताओं के पास बस, यही दो रंग हुआ करते हैं, ‘सफ़ेद और काला’। वे सफ़ेद पहनकर हमें अपनी ओर आकर्षित करने की क़ोशिश करते हैं। लेकिन उनके ‘सफ़ेद’ के पीछे छिपे ‘काले’ को हमें पहचानना, समझना होता है। अपनी समझ के आधार पर ऐसे नेताओ को सबक सिखाना होता है। लोकतंत्र में चुनाव हमारी इसी समझ को परखने का अवसर है। 

दो राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। कुछ अन्य राज्यों में अगले बरस होने वाले हैं। एक जागरूक मतदाता के रूप में हमें इस अवसर को भुनाना चाहिए। अपनी समझ को परखना और उसे प्रदर्शित करना चाहिए। अन्यथा ये राजनेता हमारे मेहनत के पैसों को यूँ ही अपने ऐश-ओ-आराम बर्बाद करते रहेंगे।

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Neelesh Dwivedi

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