स्कूल से घर लौटते वक्त अक्सर मानसरोवर पार्क के पास की झुग्गियों पर नज़र पड़ जाया करती है। इनके बारे में इतना कभी नहीं सोचा।…
View More बेहतर है कि इनकी स्थिति में सुधार लाया जाए, एक कदम इनके लिए भी बढ़ाया जाएCategory: चहेते पन्ने
पूरा ‘अस्पताल’ आसमान से ज़मीन पर गिरा दिया और कुछ भी टूटा-फूटा नहीं!!
ये बदलते भारत की कुछ और जीवन्त तस्वीरें हैं। लेकिन जैसा कि अमूमन होता है, इनमें कोई मसाला नहीं है इसलिए ये सुर्ख़ियाँ भी तुलनात्मक…
View More पूरा ‘अस्पताल’ आसमान से ज़मीन पर गिरा दिया और कुछ भी टूटा-फूटा नहीं!!दादी के बटुए से निकला पुस्तकों का होटल – ‘आज्जीचं पुस्तकांचं होटेल’
दादी-नानाी के बटुए से क्या-कुछ नहीं निकलता। क़िस्से-कहानियाँ निकलते हैं। घर चलाने, रिश्ते निभाने, सेहतमन्द रहने के नुस्ख़े निकलते हैं। कभी-कभी तो बहुत ज़बर्दस्त आइडिया…
View More दादी के बटुए से निकला पुस्तकों का होटल – ‘आज्जीचं पुस्तकांचं होटेल’पूछती हो, तुम्हारा प्रेम क्या है? सुनो…
पूछती हो, तुम्हारा प्रेम क्या है? सुनो! तुम जानती हो मुझे शायद मुझसे बेहतर ही।चंद शौक, यादों और नापसंदगियों की दास्तां है।। और तुम भी…
View More पूछती हो, तुम्हारा प्रेम क्या है? सुनो…‘जल पुरुष’ राजेन्द्र सिंह जैसे लोगों ने राह दिखाई, फिर भी जल-संकट से क्यूँ जूझते हम?
गर्मियों के मौसम देश के किसी न किसी हिस्से में ‘पानी की कमी’ की ख़बरें अक्सर पढ़ती हूँ। मिसाल के तौर पर बेंगलुरू में पानी…
View More ‘जल पुरुष’ राजेन्द्र सिंह जैसे लोगों ने राह दिखाई, फिर भी जल-संकट से क्यूँ जूझते हम?‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘परिवार दिवस’- क्या हम ‘परिवार’ की भारतीय अवधारणा समझते हैं?
नए दौर के चलन के मुताबिक, आज 15 मई, बुधवार को ‘परिवार दिवस’ मना लिया गया। हालाँकि कोई भी दिवस मनाना मेरे लिए बस इतना…
View More ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘परिवार दिवस’- क्या हम ‘परिवार’ की भारतीय अवधारणा समझते हैं?भगवान सबके पास नहीं हो सकते, इसलिए माँ बनाई, उसके लिए रोज 10 मिनट दीजिए
माता के समान कोई छाया नहीं। कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं। नमस्कार, आप सभी को।…
View More भगवान सबके पास नहीं हो सकते, इसलिए माँ बनाई, उसके लिए रोज 10 मिनट दीजिएआओ कोई ख़्वाब बुनें : ऐसे सिद्धान्तों के साथ जीवन मुश्किल है, पर हम लगे हैं कि…
मनोज कुयटे और कोमल कुयटे महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के संग्रामपुर तालुका के रहने वाले हैं। मनोज ने टाटा सामाजिक संस्थान, मुम्बई से जल नीति…
View More आओ कोई ख़्वाब बुनें : ऐसे सिद्धान्तों के साथ जीवन मुश्किल है, पर हम लगे हैं कि…एक फ्रेम, असीम प्रेम : हम तीन से छह दोस्त हो सकते थे, नहीं हो पाए
आज फेसबुक पर याद गली में चला गया। वहाँ कुछ बरस पुरानी यादें ताज़ादम होने को बेताब दिखीं। देखा कि चार बरस पहले आज ही…
View More एक फ्रेम, असीम प्रेम : हम तीन से छह दोस्त हो सकते थे, नहीं हो पाएमाँ की ममता किसी ‘मदर्स डे’ की मोहताज है क्या? आज ही पढ़ लीजिए, एक बानगी!
बाज़ारवाद के हिसाब ‘मदर्स डे’ या माँ का दिवस मई महीने के दूसरे रविवार (इस बार 12 तारीख़) को होता है, तो होता होगा। क्योंकि…
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