ऋषु मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
इतना आसान नहीं होता है सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में कोई समारोह करा पाना। चाहते तो हम भी हैं कि हमारे बच्चे अच्छे-अच्छे, सुन्दर और फैन्सी कपड़ों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करें। लेकिन हमारे बच्चों की पारिवारिक स्थिति इतनी चमकीली नहीं, जितनी चमकीली आप और हम समझते हैं। ज़्यादातर कपड़ों की व्यवस्था हमें स्वयं ही करना होती है। जैसे- अभी कुछ दिन पहले हमने अपने विद्यालय में एक ऐसे ही आयोजन के दौरान किया। बच्चों की खुशी और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए किया गया हमारा यह प्रयास कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। लेकिन बच्चों और पूरे स्टाफ की एक हफ्ते की मेहनत ने मुझे भावविभोर कर दिया। हालाँकि मैं तो अपने काम से कभी सन्तुष्ट नहीं रहती। हमेशा कमी दिखती है। लेकिन बच्चों के प्रयास और स्टाफ के समर्पण में रत्तीभर भी कमी नहीं दिखी।
बच्चों ने सभी कार्यक्रमों में प्रतिभाग कियाा। वैसे, दो-तीन बच्चों को डांस सिखाना और ग्रुप में सिखाना..दोनों में काफ़ी फर्क़ है। लेकिन हमारा मानना था कि ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे प्रतिभाग करें, ताकि सभी को आगे आने का मौका मिले। सभी के अभिभावक अपने बच्चों को कार्यक्रम में देखने के लिए उत्सुक हों और विद्यालय आएँ। अभिभावकों में उत्साह बढ़ रहा है। इसीलिए, मैं बस इतना चाहती हूँ कि जिन मजदूरों ने अपनी मेहनत और पसीने से इस विद्यालय को बनाया हैं, उनके बच्चे जब इस विद्यालय में पढें तो उन्हें किसी तरह की ग्लानि न हो। बल्कि फख्र हो कि वो अपने क्षेत्र के सबसे सस्ते और सबसे सुविधासम्पन्न विद्यालय में पढ़ते हैं।
इस लेख को पढ़ रहे मित्रों को मेरा सुझाव है, कभी अपने गाँव जाएँ तो आस-पास के किसी सरकारी प्राथमिक विद्यालय के बच्चों से जाकर अवश्य मिलें l निश्चित रूप से यदि आप थोड़े भी संवेदनशील हैं, तो उनसे मिलकर अपने दुःख-दर्द भूल जाएँगे l हो सके, तो इस बार उन्हीं के संग वेलेंटाइन डे मना लें। अच्छा लगेगा।
मैं तो अपने सारे तीज त्यौहार इन्हीं के साथ मनाती हूँ। अभी बेटे का जन्मदिन था। उसे अपने विद्यालय बच्चों के साथ ही मनाया। इसी बहाने बच्चों के साथ पार्टी हो गई। हो गया न एक पंथ दो काज।🍀🌻
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(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का एक धवल पहलू भी सामने आ सके।)
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ऋषु जी के पिछले लेख
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1- “मैडम, हम तो इसे गिराकर यह समझा रहे थे कि देखो स्ट्रेट एंगल ऐसे बनता है”।
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