विलंब से हुआ न्याय अन्याय है तात्

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 12/5/2022

…चलिए केंद्र सरकार ने सबक तो लिया। भले ही 25 साल लग गए। जल्दी भी क्या थी? कौन कहां भागा जा रहा था? हादसा हो ही गया था। जिनकी किस्मत में मौत ही लिखी है, वह कहीं से भी आएगी। जिन्हें मरना था, मर गए। अब गैस लगकर मरे या सड़क हादसे में, क्या फर्क पड़ता है। हमें सरकार में रहकर हादसों से सबक लेना चाहिए। सरकार ने अब जाकर सबक सीखा है।

…गैस त्रासदी मामले में हुई लापरवाही से सबक लेते हुए केंद्र ने नई राष्ट्रीय मुकदमा नीति जारी की है। इसका उद्देश्य सरकार को सक्षम व जिम्मेदार मुकदमेबाज की भूमिका में लाना है। इसमें प्रभावी निगरानी और समीक्षा तंत्र होगा, जो महत्वपूर्ण मामलों में विलंब या अनदेखी को रोकेगा। नीति एक जुलाई से लागू होगी। केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने बुधवार को नीति जारी की।

…नीति के क्रियान्वयन की निगरानी और सरकारी विभागों की जवाबदेही तय करने के लिए अधिकार संपन्न समिति बनाई जाएगी। इसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय स्तर पर अटार्नी जनरल करेंगे। मोइली ने कहा, ‘नई नीति का लक्ष्य हैं कि भोपाल मामले जैसी लापरवाही दोबारा न हो। क्योंकि न्याय में विलंब न्याय का दफनाने के समान है।’

मोइली साहब की मासूम अदा पर मर मिटने का मन कर रहा है। इनके वचन कितने कर्णप्रिय प्रतीत हो रहे हैं भंते। कितना बड़ा ज्ञान देश को दे रहे हैं कृपया देखिए तो। इसे कहीं लिपिबद्ध कराइए। राष्ट्र के शासकों की आने वाली पीढ़ियां इनसे संदेश प्राप्त करेंगी। उनका अमृत वचन है ‘विलंब से हुआ न्याय अन्याय है तात्।’ अब ऐसी त्रासदी की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए शासन अपनी नीति तय कर रहा है।….मन प्रसन्न हो गया, यह शुभ समाचार पढ़कर। इससे राष्ट्र के एक-एक नागरिक को द्वार-द्वार जाकर अवगत कराया जाए। शासन इतिहास की रचना कर रहा है। सुंदर अति सुंदर अनुकरणीय।

…कैबिनेट की बैठक में गैस पीड़ितों के लिए मंत्री समूह की सिफारिश पर फैसला होने से ठीक पहले मुआवजे के मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोपों की सियासत तेज हो गई है। जीओएम द्वारा की गई सिफारिशों पर गुरुवार को कैबिनेट में चर्चा होना है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने बुधवार को मध्यप्रदेश के गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर की जमकर आलोचना की। गौर द्वारा कम मुआवजे पर असंतोष जताने पर सत्यव्रत ने कहा, ‘ गैस त्रासदी (1984) के बाद से सुंदरलाल पटवा, फिर 2003 से उमा भारती, गौर खुद और अब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं। केन्द्र में भी छह वर्षों तक भाजपा सत्ता में रही। गौर साहब बताएं कि इन सरकारों ने पीड़ितों को मुआवजा दिलाने, पीड़ितों की सूची बनाने की दिशा में क्या काम किए?’ पंडितजी की बात है तो गौर करने लायक।

…केंद्र सरकार के मंत्रियों के समूह द्वारा गैस मामले में पुनर्विचार याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर करने संबंधी सवाल पूछे जाने पर अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने कहा कि विधि मंत्री ने सिर्फ जीओएम के समक्ष यह सुझाव रखा था। यह रिपोर्ट पहले मंत्रिमंडल के पास जाएगी। उसे ही सुझाव मंजूर करना है। वाहनवती ने कहा, ‘गैस मामले में 1996 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून के हिसाब से गलत था। मैं फैसले की आलोचना नहीं कर रहा हूं। इसे कानून के हिसाब से गलत बता रहा हूं। फैसले में काफी विरोधाभास हैं। इस मामले में काफी सामग्री ऐसी है जो फैसले के बाद सामने आई है।’

….केंद्र और मप्र सरकार की ओ न्याय की उम्मीद के साथ टकटकी लगाए बैठे गैस पीड़ितों के साथ नाइंसाफी थमने का नाम नहीं ले रही है। केंद्रीय मंत्री समूह की बैठक बाद पीड़ितों के लिए तय हुए मुआवजा पैकेज के बदलते आंकड़े अब उन्हें परेशान कर रहे हैं।

…मंत्री समूह की बैठक के बाद बीती 21 जून को पी चिदंबरम ने जिस पैकेज का जिक्र किया था वह 1300 करोड़ रुपए के अधिक का था। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी के बाद गुरूवार को जो पैकेज घोषित हुआ, उसकी राशि 1265.56 करोड़ रुपए बताई जा रही है। आखिर यह राशि कम कैसे हो गई। बाबूलाल गौर इस संबंध में पूछे जाने पर कहते हैं कि यह केंद्र का टोटल पैकज है। जबकि गैस राहत सचिव एस आर मोहंती अनभिज्ञता जताते हैं।
गौर के कहे अनुसार अगर यह टोटल पैकेज है तो इसमें योजना आयोग की ओर से स्वीकृत प्रदेश सरकार के 982 करोड़ रुपए के एक्शन प्लान की भी कुछ राशि शामिल होनी चाहिए। लेकिन हकीकत क्या है इसके बारे में कोई भी स्पष्ट नहीं बता पा रहा है। गौरतलब है कि एक्शन प्लान के तहत पांच सौ करोड़ रुपए कार्पस फंड और सौ करोड़ रुपए से अधिक की राशि गैस त्रासदी स्मारक के निर्माण के लिए है। इस राशि को अभी मंजूरी मिलना है। इस संबंध में केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की कैबिनेट में स्वीकृत सिफारिशों की संक्षेपिका भी तस्वीर को बहुत साफ नहीं करती है। इसके अनुसार पीडितों के मुआवजे के लिए 650 से 700 करोड़ रुपए, पर्यावरणीय स्वच्छता के लिए 310 करोड़ और प्रभावितों के चिकित्सीय, आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए 272.75 करोड़ रुपए रखे गए हैं। 650 करोड़ रुपए के मुआवजे के साथ यह आंकड़ा 1232.75 करोड़ होता है। अगर मुआवजे का आंकड़ा 700 करोड़ मानें तो यह फिगर 1282.75 करोड़ रुपए होता है। क्यों। इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ  
37. यूनियन कार्बाइड इंडिया उर्फ एवर रेडी इंडिया! 
36. कचरे का क्या….. अब तक पड़ा हुआ है 
35. जल्दी करो भई, मंत्रियों को वर्ल्ड कप फुटबॉल देखने जाना है! 
34. अब हर चूक दुरुस्त करेंगे…पर हुजूर अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे थे? 
33. और ये हैं जिनकी वजह से केस कमजोर होता गया… 
32. उन्होंने आकाओं के इशारों पर काम में जुटना अपनी बेहतरी के लिए ‘विधिसम्मत’ समझा
31. जानिए…एंडरसरन की रिहाई में तब के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की क्या भूमिका थी?
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार… 
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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Neelesh Dwivedi

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