अनुज राज पाठक, दिल्ली से
शिक्षा या ज्ञान मानव जीवन में हासिल की जाने वाली सबसे उत्कृष्ट और सबसे अद्भुत चीज है। अगर मानव को शिक्षित होने का अवसर मिल जाए तो उसका जीवन स्वत: सार्थक और सुगम हो जाता है। उसके सपने, उसकी इच्छाएँ पूरी करने में शिक्षा सबसे बड़ा साधन होती है।
अतीत में और वर्तमान में भी, शिक्षा हासिल करना सरल नहीं रहा है। प्रत्येक शिक्षा संस्थान शिक्षा ही देता हो ऐसा भी नहीं है। कुछ संस्थान शिक्षा के नाम पर मात्र साक्षरता और सूचनाओं का प्रेषण कर रहे होते हैं। इसलिए शिक्षा की उकृष्टता का पैमाना है, जिसे हासिल करने के बाद मानव बेहतर हो और उसका जीवन सुगम हो सके। इसीलिए मानव को कुशल और उसके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करती कोई शिक्षा संस्था ही प्रशंसा की पात्र होती है।
शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे एक प्रयास की झलक दिल्ली सरकार द्वारा हाल ही में आयोजित दो-दिवसीय रचनात्मक और भविष्योन्मुख कार्यक्रम में दिखाई दी। कार्यक्रम दिल्ली के सभी विद्यालयों के लिए था। भव्य था तथा इसका नाम भी उत्सुकता पैदा कर रहा था। ‘दिल्ली रोबोटिक्स लीग’। इस कार्यक्रम के भारी-भरकम होने का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री स्वयं इस कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए मौजूद थे।
यह सब जिक्र इसलिए कि दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में पूरे देश के सरकारी स्कूलों की तरह वही बच्चे बढ़ते हैं, जो निजी संस्थानों में नहीं पढ़ पाते। इन सामान्य परिवारों से आए बच्चों के लिए रोबोटिक्स सीखना, वह भी सरकारी स्कूल में किसी सपने से कम नहीं। सरकार विद्यालयों में रोबोटिक्स, डिजाइनिंग और कोडिंग जैसे आधुनिक विषय सिखाने के लिए सरकार आईआईटी दिल्ली से नॉलेज पार्टनर के तौर पर सेवाएँ ले रही हैं। इससे बच्चे एक अच्छे वातावरण में और उत्कृष्ट पाठ्यक्रम द्वारा सीखने के अनुभवों को हासिल कर पा रहे हैं।
मेरे जैसे शिक्षकों और सरकारी विद्यालयों के छात्रों के लिए भी यह एक सीखने योग्य और रोमंचकारी अनुभव था। वहाँ उपस्थित सरकारी विद्यालयों के छात्र अपने शिक्षकों के साथ मनोयोग से प्रतिस्पर्धाओं की तैयारी में लगे हुए थे। वहीं दूसरी तरफ अपने छात्रों को परिश्रम करते देख प्रधानाध्यापकों और शिक्षा अधिकारियों का उत्साह भी देखने योग्य था। उस वातावरण को नजदीक से देखने के बाद मुझे लगा कि अब हमारे सरकारी विद्यालयों की छवि में और विद्यार्थियों की सफलता दर में एक बड़ा परिवर्तन शीघ्र ही दिखाई देगा।
कुछ आँकड़ों से इस बात को बेहतर समझा जा सकता है। मसलन यहाँ सरकारी और निजी विद्यालयों की लगभग 350 टीमें प्रतिस्पर्धा हेतु उपस्थित थीं। इनमें से प्रथम तीन विजेताओं में तीनों दिल्ली के सरकारी स्कूलों की टीमें रहीं। बेहतर प्रदर्शन करने वाली पहली 10 टीमों में से आठ दिल्ली के सरकारी विद्यालय की थींं। जबकि प्रतिस्पर्धा में दिल्ली पब्लिक जैसे प्रतिष्ठित विद्यालयों की टीम भी उपस्थित थी।
वहाँ मैंने व्यक्तिगत स्तर पर अनुभव किया कि दिल्ली स्कूलों के शिक्षाधिकारी और शिक्षक निश्चित तौर पर अपने विद्यार्थियों के साथ बहुत परिश्रम कर रहे हैं। यह परिश्रम कर्त्तव्य भाव बोध के कारण है। ऐसा नहीं कि पहले शिक्षक और बच्चे परिश्रम नहीं करते थे। हाँ, अब इनके परिश्रम को हम देख पा रहे हैं तथा अवसरों की उपब्धतता आगे बढ़ने को प्रोत्साहित कर रही।
लिहाजा, आज की दृष्टि से दिल्ली शिक्षा से जुड़े तंत्र की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। अगर ये शिक्षाधिकारी और शिक्षक ऐसे ही कर्तव्यपथ पर अग्रसर रहे, तो सरकारी विद्यालयों के छात्र भविष्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर, देश के बेहतर और सफल नागरिक के तौर पर सेवाएँ अवश्य देगें। मेरी अन्नत शुभकामनाएँ हैं।
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(नोट : अनुज राज पाठक दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी पर नियमित रूप से समसामयिक और जन-सरोकार से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं। डायरी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।)
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