क्या हम पारसियों और उनके नए साल के बारे में जानते हैं? जान लीजिए, न जानते हों तो!

ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा दिल्ली से

आज पारसियों की एक कहानी याद करते हैं। ये लोग पहले ईरान में रहा करते थे। फिर जब 1300 साल पहले ईरान पर अरब मुसलमानों ने हमला किया तो खुद को बचाने के लिए इनका एक दल समुन्दर के रास्ते भारत में गुजरात के तटीय इलाके पर आ पहुँचा। वहाँ उस वक्त जादव राणा का राज था। उन्हें ‘जदी राणा’ भी कहते थे। उन्हें जब पता लगा कि ये लोग यहाँ अपने नए जीवन की शुरुआत करने आए हैं तो उन्होंने उनका छोटा सा इम्तिहान लिया। उन्होंने एक कटोरे को दूध से भर दिया और उसे भिजवाकर उन लोगों तक सन्देश कहलवाया कि, “हमारे राज्य में और किसी की गुंजाईश नहीं है। जैसे इस कटोरे में और किसी चीज की नहीं है।” यह सुनते ही पारसियों के सरदार ने दूध में शक्कर डाली और राजा को कहलवाया, “हम आपके राज्य में कुछ इस तरह घुल मिल जाएँगे, जैसे यह शक्कर।” इस हाजिर जवाबी से खुश राजा ने उन लोगों को अपने राज्य में जगह दे दी। उस जगह का नाम उन लोगों ने ‘संजान’ रखा।

हालाँकि इस नाम के पीछे एक और कहानी बताई जाती है। यह कि ये लोग ईरान में जहाँ से आए थे, उस शहर का नाम ‘सिंदान’ था। तो उन्होंने अपने नए ठिकाने का उसी से मिलता-जुलता नाम ‘संजान’ रखा। यहाँ अग्नि मन्दिर भी स्थापित किया। उसका नाम ‘अताश बहराम’ रखा गया। इसमें ईरान से लाई पवित्र अग्नि स्थापित की। उसे ‘ईरान शाह’ कहा गया। इस मन्दिर की भी कहानी है। बताते हैं कि पारसी शरणार्थी सबसे पहले ईरान से हिन्दुस्तान के दीव (दमन-दीव) में आकर टिके थे। वहाँ वे करीब 19 साल रहे और इस बीच लगातार गुजरात के तटीय इलाकों के राजा ‘जदी राणा’ से शरण माँगते रहे। आखिर में उनकी कोशिश रंग लाई। लेकिन जैसे ही वे दीव से आगे के लिए निकले, रास्ते में समुद्री तूफान ने उन्हें घेर लिया। तब उन्होंने अपने आराध्य से प्रार्थना की कि अगर हम बच गए तो अपने नए ठिकाने पर एक अग्नि मन्दिर स्थापित करेंगे। उनके दैव ने उनकी सुनी और वे सब बच। इसके बाद उन लोगों ने भी अपना वादा निभाया और संजान को ठिकाना बनाते ही वहाँ मन्दिर बनाकर पवित्र अग्नि की स्थापना की।

कालान्तर में हमलों आदि की वजह से पारसियों को ‘संजान’ भी छोड़ना पड़ा। वे पवित्र अग्नि ‘ईरान शाह’ को लेकर कुछ सालों तक गुजरात के ही बहरोट, वंसदा, नवसारी आदि जगहों पर भटकते रहे। फिर आखिर इसी राज्य के उदवाड़ा को उन्होंने ठिकाना बनाया। वहीं मन्दिर बनाकर ‘ईरान शाह’ को भी स्थापित किया। यहाँ वह पवित्र अग्नि आज भी प्रज्ज्वलित है। हालाँकि संजान, बहरोट, वंसदा और नवसारी में भी पारसी लोग बसे हुए हैं। और ये सभी स्थल उनके प्रमुख ठिकानों में गिने जाते हैं। हिन्दुस्तान की प्रगति में भी पारसियों का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। टाटा, मिस्त्री, दारूवाला, पूनावाला, वाडिया, गोदरेज, ऐसे जितने भी बड़े कारोबारियों या कारोबारी समूहों के नाम हमने सुने होंगे, वे सब पारसी हैं। होमी जहाँगीर भाभा जैसे वैज्ञानिक और आर्देशिर ईरानी जैसे फिल्मकार भी पारसी थे। ऐसी लम्बी सूची है। लेकिन इसके ठीक उलट पारसी समुदाय के लोगों की कुल आबादी की बात करें, तो वह सूची लगातार छोटी होती जाती है। यह आबादी कम होती जा रही है। आज इनकी कुल आबादी महज 57,264 (साल 2011 की जनगणना के अनुसार) के आस-पास बताई जाती है। यह भारत में कुल आबादी का 0.0006 फीसदी है| 

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इनकी आबादी लगातार घटने के कारण क्या हैं? इतना अहम समुदाय, जिसने कभी हिम्मत नहीं हारी। जिसने कभी किसी के सामने घुटने नहीं टेके। जिसने हमेशा अपने देश की प्रगति में बढ़-चढ़कर योगदान दिया। वही समुदाय आज अपना अस्तित्त्व, अपनी पहचान खो देने की कगार पर क्यों है? और इस समुदाय के बारे में किसी को कोई ज्यादा फिक्र क्यों नहीं है? इन सवालों के जवाब ढूँढने होंगे। क्योंकि ये लोग हिन्दुस्तान के दूध में शक्कर की मिठास घोलने वाले लोग हैं। इस ‘मिठास’ को बचाकर रखना होगा।

और हाँ, आज ये बातें इसलिए याद आ गईं कि 16 अगस्त की तारीख से हिन्दुस्तान का पारसी समुदाय अपना नया साल शुरू करता है। चूँकि यहाँ के पारसी ‘शाही कैलेंडर’ को मानते हैं। उसमें नए साल की शुरुआत 16 अगस्त से होती है। वैसे, दुनिया की बाकी जगहों पर इस समुदाय के बीच ‘पारसी कैलेंडर’ प्रचलित है। इसमें साल का पहला दिन 21 मार्च को होता है। अलबत्ता, ये भी शायद कम लोग जानते होंगे। यह अफसोस की ही बात है। 

खैर! पारसी समुदाय का नया साल मुबारक। खुदा करे, पारसी खूब तरक्की करें और हिन्दुस्तान की तरक्की में अपना किरदार अदा करते रहें। 

जय हिन्द। 
——
(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 11वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
——-
ज़ीनत के पिछले 10 लेख
12- त्यौहार सिर्फ़ अमीरों का ही नहीं, बल्कि हर गरीब का भी होता है, लोगों के बारे में साेचिए
11- भरोसा रखिए… वह क़िस्मत लिखता है, तो वही उसे बदल भी सकता है
10. जिसने अपने लक्ष्य समझ लिया, उसने जीवन को समझ लिया, पर उस लक्ष्य को समझें कैसे?
9- क्या स्कूली बच्चों को पानी पीने तक का अधिकार नहीं?
8- शिक्षक वो अज़ीम शख़्सियत है, जो हमेशा हमें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है
7- हो सके तो अपनी दिनचर्या में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का प्रयोग करें, ताकि….
6- खुद को पहचानिए, ताकि आप खुद ही खुद से महरूम न रह जाएँ
5- अनाज की बरबादी : मैं अपने सवाल का जवाब तलाशते-तलाशते रुआसी हो उठती हूँ
4- लड़कियों को भी खुले आसमान में उड़ने का हक है, हम उनसे ये हक नहीं छीन सकते
3- उड़ान भरने का वक्त आ गया है, अब हमें निकलना होगा समाज की हथकड़ियाँ तोड़कर

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है

आज, 10 अप्रैल को भगवान महावीर की जयन्ती मनाई गई। उनके सिद्धान्तों में से एक… Read More

35 minutes ago

बेटी के नाम आठवीं पाती : तुम्हें जीवन की पाठशाला का पहला कदम मुबारक हो बिटवा

प्रिय मुनिया मेरी जान, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूँ, जब तुमने पहली… Read More

1 day ago

अण्डमान में 60 हजार साल पुरानी ‘मानव-बस्ती’, वह भी मानवों से बिल्कुल दूर!…क्यों?

दुनियाभर में यह प्रश्न उठता रहता है कि कौन सी मानव सभ्यता कितनी पुरानी है?… Read More

2 days ago

अपने गाँव को गाँव के प्रेमी का जवाब : मेरे प्यारे गाँव तुम मेरी रूह में धंसी हुई कील हो…!!

मेरे प्यारे गाँव तुमने मुझे हाल ही में प्रेम में भीगी और आत्मा को झंकृत… Read More

3 days ago

यदि जीव-जन्तु बोल सकते तो ‘मानवरूपी दानवों’ के विनाश की प्रार्थना करते!!

काश, मानव जाति का विकास न हुआ होता, तो कितना ही अच्छा होता। हम शिकार… Read More

5 days ago