इकोसिस्टम तब बनता है, जब एक सफल इकाई दूसरी को सफल बनाने में लग जाए!

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

एक इकोसिस्टम यानि पारिस्थितिकी तब बनती है, जब एक सफल इकाई अपने जैसी ही दूसरी इकाई को सफल बनाने में लग जाए। उसकी सफलता में योगदान देने लगे। उसे अपने अनुभव का लाभ देने लगे। 

इसका एक उदाहरण नौकरी डॉट कॉम है। यह अपने क्षेत्र की सफल कम्पनी है। लेकिन इसने अपनी सफलता अपने तक नहीं रखी। बल्कि ज़ौमैटो जैसी कम्पनियों को अपने जैसी सफलता प्राप्त करने में मदद की। इसके बाद जब ज़ौमैटो सफल हो गई तो उसने भी दूसरी छोटी और नई-नवेली कम्पनियों को उसी तरह मदद देनी शुरू कर दी, जैसी उसे ख़ुद मिली थी। ज़ौमैटो अब तक चार छोटी और नई कम्पनियों की मदद के लिए लगभग 27.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुकी है। वह क़रीब एक अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश और करने वाली है। 

भारत के सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के शुरुआती दौर में ही बड़ी सफलता पाने वाली इन्फोसिस, विप्रो जैसी कम्पनियाँ को इस चलन की शुरुआत करनी चाहिए थी। लेकिन किसी  कारणवश उनके द्वारा ऐसा नहीं किया गया। शायद उन्हें इसमें कोई अवसर नहीं दिखा होगा। लेकिन अब उम्मीद है कि ज़ौमैटो, ओला, पेटीएम, जैसी कम्पनियों की सफलता से (अन्य छोटी कम्पनियों की सफलता में योगदान देने का) यह चलन भी ज़ोर पकड़ेगा। 

ध्यान दीजिएगा, भारत में प्रतिभाओं की कमी कभी नहीं रही। बस, एक पारिस्थितिकी (इकोसिस्टम) का अभाव था, जो अब आकार लेने लगा है। भारत की नई कम्पनियों के लिए अच्छे दिन आने वाले हैं। 

क्या लगता है? 

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निकेश की मूल पोस्ट 

An ecosystem gets developed when one successful entity stands behind the success of other!

A highly successful internet company Naukri[dot]com (Infoedge) invested in Zomato (and few others).

When Zomato itself became successful it started helping out other startups. They have already invested around $275M in 4 startups so far and plan to take their investments upto $1B👏👏

The initial successful IT companies in India (likes of Infosys and Wipro) should have started this trend but unfortunately they didn’t see the opportunity.

Hopefully with success stories like Zomato, Ola, Paytm etc. this trend will continue.

India always had talent but was missing an eco system which seems to be shaping up now.

Good days ahead for India’s startup ecosystem!

Thoughts? 

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(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

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निकेश के पिछले 10 लेख

34 – ये कहना झूठ है कि जहाँ लड़ाई हो रही है, काम वहीं हो रहा है!
33 – कर्मचारियों से काम लेते हुए थोड़ा लचीलापन तो हर कम्पनी को रखना चाहिए, बशर्ते…
32 – …तब तक ओलिम्पिक में भारत को पदक न मिलें तो शिकायत मत कीजिए!
31 – देखिए, कैसे अंग्रेजी ने मेरी तरक़्क़ी की रफ्तार धीमी कर दी !
30 – हिंडेनबर्ग रिपोर्ट क्यों भारत के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा हो सकती है?
29 – ‘देसी’ जियोसिनेमा क्या नेटफ्लिक्स, अमेजॉन, यूट्यूब, जैसे ‘विदेशी’ खिलाड़ियों पर भारी है?
28 – ओलिम्पिक में भारत को अमेरिका जितने पदक क्यों नहीं मिलते? ज़वाब ये रहा, पढ़िए!
27 – माइक्रोसॉफ्ट संकट में रूस-चीन ने दिखाया- पाबन्दी आत्मनिर्भरता की ओर ले जाती है
26 – विदेशी है तो बेहतर ही होगा, इस ‘ग़ुलाम सोच’ को जितनी जल्दी हो, बदल लीजिए!
25 – उत्तराखंड में 10 दिन : एक सपने का सच होना और एक वास्तविकता का दर्शन!

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