एकांत कीअकुलाहट : ऐसा न हो कहीं कि मेरी वजह से…

सन्दीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से

कल अचानक वह शख़्स चल बसा, जो हाड़तोड़ मजदूरी करता था। एक जगह सुबह खाते-बही लिखता। फिर दिन भर किसी बन्द पड़ी फेक्ट्री में किसी पुराने अकाउंटेंट की जगह पर पार्ट टाइम लेजर और कैशबुक लिखता। साथ ही स्टोर का सामान गिनता रहता और फिर ढलती शाम शहर की नामी मिठाई की दुकान पर ग्राहकों को नमकीन और मिठाई तौल कर देता। इस तरह ग्यारह बजे घर जाता, मुस्कुराते हुए सायकिल पर।

छोटा सा परिवार था। सुखी थे सब जन। सूखी रोटी में घर चलता था। कल न जाने किसकी नजर लग गई, अचानक सुबह काम के लिए निकल ही रहा था कि घर की कुर्सी पर कमरे में ही वह शख़्स गिर पड़ा और दूर दुनिया की ओर निकल पड़ा। कोहराम मच गया। भीड़ जमा हो गई। जाति और गौत्र के लोग इकठ्ठा थे। किसी को सूझ नहीं पड़ रही थी। कैसे हुए – न शुगर, न बीपी, न हिस्ट्री और न कोई वंशानुगत समस्या।

घर से प्रेत लेकर जब चार कंधों पर जनाजा निकला तो बेटी ने हल्ला मचा दिया कि वह भी श्मशान जाएगी। उसके पापा का बेटा थी वह। लाड़ली थी, पर औरतों और रिश्तेदारों ने परम्परा की दुहाई दी। उसे घर ही रोक दिया। ज़माना बदल तो गया है, जाने में भी दिक्कत नही पर लोग क्या कहेंगे? छोटे शहर और क़स्बे कभी नहीं बदलते। वे रेंगते रहते हैं, अपनी धुरी पर सदैव ही, परम्परा बोध और संस्कृति के साथ।

श्मशान में 40 साल पुराना दोस्त मिला। मुस्कुराया हल्के से। फिर बोला, “तू कैसे जानता था इन्हें, मैं तो पड़ोसी हूँ?” मेरे पास कोई जवाब नही था इस प्रश्न का। लाश को जलाने की तैयारी में समाजसेवी व्यस्त थे। हम दोनों दूर पतरे के नीचे बैंच पर आ बैठे। वह कह रहा था, “मेरा बड़ा बेटा नर्सिंग करके हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स कर जबलपुर के किसी अस्पताल में फ्लोर मैनेजर है। छोटा भी इंदौर एयरपोर्ट पर इंडिगो में काम करता है। जीवन कैसे निकल गया मालूम नही पड़ा।” उसके चेहरे पर दुख और कसक थी। सुकून भी था, किसी विजेता की भाँति। दो जवान बेटों के बाप और वो भी आज के इस दुष्काल में! नौकरी करते बेटों का बाप होने का सुख झलक रहा था।

जलती लाश की लौ में उसका चेहरा दमक रहा था। उसका संघर्ष और उसकी कहानी। उसके अधूरे प्रेम की बातों को पूछने की हिम्मत नही हुई। उसी ने बताया कि जिस नॉवल्टी चौराहे के स्टूडियो पर काम करता था, वह भैया भी अब सुप्त हैं। गोया कि ख़त्म जैसे। क्योंकि उनके इकलौते जवान बेटे ने आत्महत्या कर ली थी। ठीक पास वाली गन्ने की दुकान भी बन्द हो गई। भोले भैया, जो लम्बे बाल रखते थे और सुबह पहले पाँच ग्राहकों को फ्री में रस पिलाते थे, ने आत्महत्या कर ली।

मैं दुखी था। एक लाश सामने जल रही थी और यह मित्र आत्महत्याओं की दास्तान लेकर बैठा था। विष्णु गली से शुरू हुई उसकी यह दास्तान शहर की सातालकर बाखल, सुतार बाखल, कालिदास मार्ग, शामलात रोड, जोशीपुरा, बजरंगपुरा, जेलरोड, लाला लाजपत राय मार्ग से होते हुए पठान कुआँ, मोहसिनपुरा, पोस्तीपुरा, मनियार बाखल, नाथ मोहल्ला होते हुए नई बनी कॉलोनियों में चलने लगी।

हम दोनों के सामने शख़्स, मोहल्ले, लोग, जाति, समाज, वर्ग और जेंडर आ रहे थे। अमीर-गरीब और हर तरह के लोग सामने से गुजरते जा रहें थे। लगभग तीन घंटे हमने हरेक को शिद्दत से याद किया। यह जाना कि यह शहर, ये लोग किस तरह से हमारी स्मृतियों और चेतना में धँसे हुए थे कि बरसों बाद भी कम्बख़्त निकले नहीं और तो और उनकी आत्महत्या को हम किसी उत्सव या पुराण की तरह से याद कर महिमामंडन कर रहे हैं।

हमने सबकी तारीफ़ की, जमकर निंदा की और जी भरकर याद किया। ठहाके लगाए, लगा ही नहीं कि तीन-चार घंटे कब बीत गए। सामने जब सब लोग कपाल-क्रिया के लिए उठे तो हमारे दिमाग़ से बहुत कुछ खाली हो गया था। कुछ जगह खाली हो गई थी। अब कन्फर्म था कि जो लोग इधर बरसों से मिले नहीं, वे संसार त्यागकर कही दूर चले गए थे। इतनी दूर और इतनी चुप्पी से कि मालूम ही नही पड़ा।

जब हम बाहर निकले तो एक उदासी थी चहुँओर। सूरज डूब गया था। पक्षी लौट रहे थे। मैंने मित्र से कहा, “बच्चे जब घर आएं तो आना घर मिलने को। चाय पिएँगे हम सब इकठ्ठे। मस्ती करेंगे।” उसने कहा, “तू भी दुकान पर कभी आ जा, बैठेंगे और गप्प करेंगे।” समझ रहा था वह। अन्त में बोला, “वही और बहुत कुछ बताऊँगा…।” मैं विस्मित था।

एक आदमी जो सुबह मर गया था, अब लाश से गुजरकर राख बन चुका था। अगरबत्ती, घृत और धुएँ की सुवास फैल रही थी सब ओर। हम श्मशान वैराग्य से निवृत्त होकर पुनः मायावी दुनिया मे फँसने जा रहे थे। शीत हवाएँ अपना असर करने लगी थीं।

मैं सोचता हूँ कि ये जो गैस से चलने वाला शव दाहगृह है, जो अभी निर्माणाधीन है, कब तक पूरा होगा? ऐसा न हो कहीं कि मेरी वजह से लोगों को इतना लम्बा इंतिज़ार करना पड़े और आत्महत्याओं की दास्तान शहर के शेष बचे मोहल्लों और कॉलोनियों में से होकर गुजरे!
—– 
(सन्दीप नाईक जी, #अपनीडिजिटलडायरी से बीते काफी समय से जुड़े हुए हैं। समाजसेवा, पर्यावरण-सेवा जैसे मसलों पर लगातार काम किया करते हैं। सक्रिय रहते हैं। सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों में गिने जाते हैं। लिखना-पढ़ना और सिखाना-पढ़ाना उनका सहज शौक है।) 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

अलग समस्या-अलबेला समाधान, उम्र के कारण किराए का घर नहीं मिला तो पीपीटी से पाया!

अलग समस्या का समाधान अलबेले तरीक़े से होता है। यह साबित किया है कि बेंगलुरू… Read More

5 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’: डर गुस्से की तरह नहीं होता, यह अलग-अलग चरणों में आता है!

डर गुस्से की तरह नहीं होता। यह अलग-अलग चरणों में आता है, जिन्हें गिना नहीं… Read More

6 days ago

ज़िन्दगी में कुछ अनुभव हमें विनम्र बना जाते हैं, बताता हूँ कैसे…पढ़िएगा!

ज़िन्दगी में कुछ अनुभव हमें विनम्र बना जाते हैं, बताता हूँ कैसे...पढ़िएगा!  मैं बस से… Read More

1 week ago

वैदिक यज्ञ परम्परा में पशु यज्ञ का वास्तविक स्वरूप कैसा है?

श्रृंखला की पिछली कड़ी और कड़ियों में हमने देखा कि सनातन वैदिक धर्म में श्रौत… Read More

2 weeks ago

कनाडा की राजनीति और महाराष्ट्र का चुनाव, सबक एक- भस्मासुरों से दूरी, है बहुत जरूरी!

एक पौराणिक कथा है, भस्मासुर की। उसका असली नाम वृकासुर था। उसने बड़ी तपस्या से… Read More

2 weeks ago

क्या अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर ले जाना चाहते हैं?

...और ऐसी गैरज़िम्मेदाराना करतूत पर कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं।  हाँ, अमेरिका के… Read More

2 weeks ago