यूरोपीय भाषा दिवस, जिसमें हिन्दी से जुड़े विवादों का समाधान भी छिपा है!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 27/9/2020

अभी इसी महीने की 14 तारीख को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया गया। हर साल मनाया जाता है। लेकिन हर बार हिन्दी के प्रसार के लिए होने वाले सार्थक प्रयासों की जगह भाषायी विवाद ज्यादा सुर्खियाँ बटोरते हैं। इस बार भी यही हुआ। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी का बयान ‘हिन्दी दिवस’ के मौके पर पूरे दिन चर्चा में रहा। उन्होंने कहा था, “हिन्दी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हो भी नहीं सकती।” दक्षिण भारत के किसी राजनेता द्वारा हिन्दी पर की गई ऐसी टिप्पणी कोई नई बात नहीं है। वहाँ दशकों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने-बताने की हर कोशिश का विरोध होता आया है। पर दुखद ये कि ऐसे विरोध के बावजूद हम आज तक किसी भाषायी समाधान पर नहीं पहुँच पाए हैं। हालाँकि ढूँढना चाहें तो ‘यूरोपीय भाषा दिवस’ के आयोजन में हमें समाधान मिल सकता है। यह आयोजन हर साल की तरह इस बार भी 26 सितम्बर को हुआ है। 

भाषायी सरोकार रखने वालों से अपेक्षा की जा सकती है कि वे ‘यूरोपीय भाषा दिवस’ के आयोजन से परिचित हों। लेकिन सम्भव है, बहुत लोग इस बारे में ज्यादा न जानते हों। इसीलिए संक्षेप में बताना जरूरी हो जाता है कि साल 2001 से यह आयोजन हो रहा है। इससे जुड़ी एक वेबसाइट है-  https://edl.ecml.at/  , जिस पर आयोजन से जुड़ी तमाम जानकारियाँ हैं। पहले पन्ने पर इसका शुरुआती परिचय ही दिलचस्प है। एक तरह से हमारी आँखें भी खोलता है। इसके मुताबिक, “यूरोप के 47 सदस्य देशों में 80 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं। यह आयोजन उन्हें उनकी पढ़ाई, लिखाई के साथ किसी भी उम्र में, अधिक से अधिक भाषाएँ सीखने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश है। यूरोपीय परिषद पूरी दृढ़ता से मानती है कि भाषायी विविधता अन्तर-सांस्कृतिक समझ और सम्बन्ध बढ़ाने का बड़ा जरिया है। यह हमारे महाद्वीप की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का मूल तत्त्व है। इसीलिए यूरोपीय परिषद यूरोप में ‘बहुभाषावाद’ को प्रोत्साहित करती है।”

इस परिचय के साथ पहले पन्ने पर ही थोड़ा नीचे खिसकें तो एक खंड मिलता है, ‘मिथ ऑर फैक्ट’ का। यानि ‘भ्रान्ति और तथ्य’। इसका पहला तथ्य ही बहुत-कुछ कहता है क्योंकि वह इस आम धारणा से जुड़ा है कि “मुझे सिर्फ़ मेरी मातृभाषा की जरूरत है, बस।” इस तथ्य की सच्चाई जानने के लिए नीचे दो डिब्बे बने हैं। इनमें से किसी के भी माध्यम से हम एक ही जवाब पर पहुँचते हैं कि “यह धारणा (मातृभाषा की ही जरूरत वाली) सिर्फ़ एक भ्रान्ति है।” इसमें आगे बताया गया है, “अधिकांश यूरोपीय नागरिक मातृभाषा के अलावा अन्य भाषा सीखने में भी रुचि रखते हैं क्योंकि वे इसे शिक्षा, व्यापार, दूसरी संस्कृति को समझने आदि के लिए जरूरी मानते हैं।” इसी खंड में चौथा तथ्य भी रोचक है कि “बच्चों को सिर्फ़ अंग्रेजी आनी चाहिए।” इसे भी महज एक ‘भ्रान्ति’ ही बताया गया है। इस तर्क के साथ कि अगर “वे सिर्फ़ अंग्रेजी जानेंगे तो जाहिर तौर पर एकभाषी रह जाएँगे। दूसरी भाषाओं के समृद्ध अनुभवों से वंचित रहेंगे। इससे उनकी शिक्षा और रोजगार पर विपरीत असर पड़ेगा। वे कई अच्छे अवसर खो देंगे।” इसमें ऐसी और भी कई दिलचस्प जानकारियाँ हैं। तथ्य हैं।

अलबत्ता, हम ऊपर बताए गए महज इन तीन तथ्यों से ही यहाँ अपने भाषायी-विवाद का हल देख सकते हैं। इसके लिए पहले तथ्य पर फिर नजर डालें। यूरोप की तरह भारत, भारतीय उपमहाद्वीप भी ‘भाषायी विविधता’ वाला क्षेत्र है। साथ ही सांस्कृतिक रूप से उतना ही समृद्ध भी। बल्कि उससे कुछ अधिक ही। इसीलिए किसी ‘एक भाषा दिवस’ (भले वह हिन्दी ही क्यों न हों) के आयोजन, उसके प्रोत्साहन और प्रसार की पहल यहाँ कारगर नहीं हो सकती। उम्मीद भी नहीं की जा सकती। बेहतर है, जिस तरह यूरोपीय परिषद ने इस तथ्यात्मक वास्तविकता को स्वीकार किया है, हम भी करें। ‘हिन्दी दिवस’ के बजाय ‘भाषा दिवस’ मनाएँ और बहुभाषावाद को प्रोत्साहित करें। इसकी सफलता और स्वीकार्यता की सम्भावना अधिक हाे सकती है।

दूसरी बात। दक्षिण भारतीय राज्यों के लोग विशेष रूप से, इस तथ्य को स्वीकार करें कि ‘मुझे सिर्फ़ मेरी मातृभाषा की जरूरत है’ वाला भाव सिर्फ़ एक भ्रान्ति है। व्यावहारिक, वास्तविक धरातल पर यह बहुत कारगर धारणा नहीं है। वे उन भाषाओं को भी सहज भाव से अपनाएँ, सीखें, उनमें संवाद करें, जो देश का बहुसंख्य वर्ग बोलता है। फिर भले वह हिन्दी ही क्यों न हो। 

तीसरी महत्त्वपूर्ण बात। अगर हम सिर्फ़ अपनी मातृभाषा से चिपके रहते हैं, तो निश्चित रूप से सांस्कृतिक, पारम्परिक, भाषायी आदान-प्रदान के कई अच्छे अवसरों को खो देते हैं। हमारी शिक्षा, हमारे व्यवसाय का दायरा सीमित हो जाता है। हम अपनी समृद्ध विरासत के कई अहम पहलुओं से अनभिज्ञ रह जाते हैं और हमेशा वैसे ही बने रहते हैं। आधे-अधूरे से। लिहाज़ा, विवाद से बेहतर समाधान के ऐसे विकल्पों को आजमाया जाए।

अन्त में भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य। 1- दुनिया के 189 स्वतंत्र देशों में रहने वाली लगभग सात अरब आबादी करीब 7,000 भाषाओं में संवाद करती है। 2- यूरोप में ही 225 स्वदेशी भाषाएँ बोली जाती हैं। 3- अकेले लन्दन में ही 300 तरह की भाषाएँ (यूरोपीय-गैरयूरोपीय मिलाकर) बोलने वाले लोग रहते हैं। 4- दुनिया की आधी आबादी द्विभाषी या बहुभाषी है। हालाँकि इसका मतलब यह नहीं है कि ये सभी लोग अपने ज्ञानक्षेत्र की सभी भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखते हैं। वे असल में मातृभाषा के अलावा अन्य किसी भाषा/भाषाओं के ‘कुछ सौ’ शब्दों का इस्तेमाल करके ही अपना काम चला रहे होते हैं। क्योंकि हिन्दी सहित कई भाषाएँ ऐसी हैं, जिनके शब्दकोष में 50,000 से ज्यादा शब्द हैं। 5- स्थानीय आबादी द्वारा बोली जाने वाली दुनिया की 10 सबसे प्रचलित भाषाओं में चीन की मन्दारिन पहले नम्बर पर है। जबकि अंग्रेजी तीसरे और हिन्दी चौथे पायदान पर है। दिलचस्प बात ये है कि इस सूची में दो अन्य भारतीय भाषाएँ- ‘बंगाली’ (6वें क्रम) और पश्चिमी शैली वाली पंजाबी- ‘लंहदा’ (10वें नंबर) भी शामिल हैं।

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

भारत ने फेंका पासा और पाकिस्तान का पैर कुल्हाड़ी पर, गर्दन फन्दे में! जानिए कैसे?

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला तो करा दिया, लेकिन उसे शायद ऐसी… Read More

2 days ago

चिट्ठी-पत्री आज भी पढ़ी जाती हैं, बशर्ते दिल से लिखी जाएँ…ये प्रतिक्रियाएँ पढ़िए!

महात्मा गाँधी कहा करते थे, “पत्र लिखना भी एक कला है। मुझे पत्र लिखना है,… Read More

3 days ago

वास्तव में पहलगाम आतंकी हमले का असल जिम्मेदार है कौन?

पहलगाम की खूबसूरत वादियों के नजारे देखने आए यात्रियों पर नृशंसता से गोलीबारी कर कत्लेआम… Read More

3 days ago

चिट्ठी, गुमशुदा भाई के नाम : यार, तुम आ क्यों नहीं जाते, कभी-किसी गली-कूचे से निकलकर?

प्रिय दादा मेरे भाई तुम्हें घर छोड़कर गए लगभग तीन दशक गुजर गए हैं, लेकिन… Read More

4 days ago

पहलगााम आतंकी हमला : इस आतंक के ख़ात्मे के लिए तुम हथियार कब उठाओगे?

उसने पूछा- क्या धर्म है तुम्हारा?मेरे मुँह से निकला- राम-राम और गोली चल गई।मैं मर… Read More

5 days ago

पहलगाम आतंकी हमला : कायराना धर्मनिरपेक्षता का लबादा उतार फेंकिए अब!

लोग कह रहे हैं कि यह, पहलगाम का आतंकी हमला कश्मीरियत को बदनाम करने की… Read More

5 days ago