टीम डायरी
फिनलैंड। दुनिया का सबसे ख़ुशहाल मुल्क। छोटा सा देश है। आबादी दिल्ली के मुक़ाबले आधे से भी कम। महज़ 55-56 लाख के आस-पास। इसके बावजूद यह छोटा मुल्क़ दुनिया भर के सामने बीते छह साल से बड़ी-बड़ी मिसाल पेश कर रहा है। वह ख़ुशहाली के सूचकांक (वर्ल्ड हैप्पीनेस इन्डेक्स) में लगातार पहले नम्बर पर बना हुआ है। इसी साल मई में ख़ुशहाली का जो विश्वस्तरीय सूचकांक आया, उसमें इस देश ने फिर अपना यह रुतबा क़ायम रखा है। उसे इस बार 7.8 से कुछ अधिक अंक मिले हैं। मतलब ख़ुशहाली सूचकांक में फिनलैंड का स्कोर 78% के आस-पास रहा।
सो, ज़ाहिर तौर पर दुनिया भर में फिनलैंड की इस उपलब्धि के बाबत उत्सुकता रहती है। और जो लोग उत्सुक रहते हैं, उनके ज़ेहन में सवाल बस, यही होता है कि लगतार “बढ़ते तनाव वाले माहौल में कैसे कर लेते हो यार ये क़माल?” तो फिनलैंड के ही हवाले से बीते दिनों इस सवाल का भी ज़वाब मिला। इसका ज़िक्र #अपनीडिजिटलडायरी पर भी किया गया था। मामला सीधा सा है कि फिनलैंड के लोगों को अपने कामों और उनके नतीज़े में मिलने वाले हासिल की पर्याप्तता (सफीशिएंसी) का पता है। वहाँ आम से लेकर ख़ास तक सभी इस सम्बन्ध सचेत रहा करते हैँ।
यानि वहाँ सभी जानते हैं कि कितना काम करना है और कहाँ रुक जाना है। इस काम के नतीज़े में जो हासिल है, उसमें कितने से उनका गुज़ारा हो जाएगा। इसके बाद और ज्यादा कमाई के लिए हाथ-पाँव नहीं मारना है। बल्कि फुर्सत के लिए मिले वक्त को दोस्तों-यारों, साहित्य-संगीत और मनपसन्द जगहों पर घूमने-फिरने के लिए इस्तेमाल करना है। दिलचस्प बात है कि वहाँ की सरकार भी अपने लोगों की इस सोच, इस कार्यसंस्कृति को प्रोत्साहित करती है। इसकी वजह से किसी को वित्तीय कठिनाई न हो, इसके बन्दोबस्त सुनिश्चित करती है। जहाँ ज़रूरत लगे, वहाँ वित्तीय मदद भी देती है। लिहाज़ा, इसके नतीज़ों में वहाँ ख़ुशहाल वातावरण बना रहता है।
और अब हालिया सुर्ख़ियों की मानें तो फिनलैंड में एक अन्य दिलचस्प काम हुआ है। जिस मोबाइल फोन के बिना आज-कल लोग वक्त बिताने की सोच भी नहीं पाते, उसे वहाँ विशिष्ट परिस्थिति में प्रतिबन्धित कर दिया गया है। दरअस्ल, फिनलैंड में एक द्वीप है उल्का-टैमियो। यह इलाक़ा प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है। इसलिए वहाँ बड़ी तादाद में पर्यटक लगभग हर मौसम में घूमने आते हैं। मगर वहाँ उन्हें मोबाइल फोन और कैमरों के इस्तेमाल की इज़ाजत नहीं होती। स्थानीय प्रशासन ने इसके निर्देश जारी किए हैं। प्रशासन यह सुनिश्चित भी करता है कि लोग द्वीप पर मोबाइल और कैमरों का इस्तेमाल न करें। बजाय इसके यहाँ लोग द्वीप की सुन्दरता का भरपूर लुत्फ़ उठाएँ। उसकी सुनहरी यादों को मोबाइल या कैमरों की जगह अपने ज़ेहन में सहेज कर यहाँ से जाएँ।
ख़ास ये कि इस फ़ैसले पर किसी को ऐतिराज़ भी नहीं। बल्कि विभिन्न तबकों से समर्थन ही मिला है। जैसे- फिनलैंड के स्वास्थ्य एवं कल्याण संस्थान के मनोवैज्ञानिकों का। उन्होंने अपने अध्ययन निष्कर्षों के आधार पर कहा है, “आनन्द के नए अनुभव लेने हैं तो कुछ देर मोबाइल फोन और सोशल मीडिया वग़ैरा से छुट्टी लेना ज़रूरी है। लोगों से आमने-सामने मिलना, बातें करना, प्रकृति की सुन्दरता को निहारना, महसूस करना, ज़ेहन में संजोना। दिली, दिमाग़ी और ज़िस्मानी सेहत बेहतर करने के लिए ऐसे नुस्ख़े तुलनात्मक रूप से अधिक क़ारगर होते हैं।”
सो, ‘रोचक-सोचक’ से इन पहलुओं पर सोचिए, विचारिए और ख़ुश रहिए।
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