खुशी दूसरों की मदद करने से मिलती है, तो क्या हम भारतीय किसी की मदद नहीं करते?

टीम डायरी

अभी शुक्रवार, 21 मार्च को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक कार्यक्रम हुआ। उसका नाम था, ‘हैप्पीनेस सेमिनार’। इसमें कुछ नामी चिकित्सक भी आए। उन्होंने बताया कि आजकल होने वाली बीमारियों में से लगभग 70% तक मूल रूप से मानसिक तनाव के कारण हो रही हैं। जैसे- सिर में बहुत तेज दर्द उठना, दिल की बीमारी, आँतों में जलन या सूजन, पेट में गैस की तक़लीफ़, उच्च रक्तचाप, कई तरह के त्वचा रोग, आदि। इन सभी बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है, बशर्ते इंसान ख़ुश रहे, तनावमुक्त रहे। 

सो, अब सवाल है कि भाई ख़ुश और तनावमुक्त कैसे रहा जाए, जब जीवन में हर क़दम पर तनावयुक्त स्थितियाँ नज़र आती हों तो? इसके ज़वाब में एक अध्ययन के निष्कर्षों पर ग़ौर किया जा सकता है। ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से यह अध्ययन रिपोर्ट जारी की गई। इसके मुताबिक, इंसान को सबसे ज़्यादा ख़ुशी तब मिलती है, जब वह समाज में एक-दूसरे के साथ निकटता से जुड़ा रहता है। दूसरा- तब भी, जब वह किसी अन्य की मदद करता है। मतलब बहुत पैसा या सुख-सुविधा जुटा लेने से ख़ुशी नहीं मिलती। 

ठीक है, इस बात को भी मान लेने में कोई दिक़्क़त नहीं। लेकिन फिर हम भारतीय ख़ुश क्यों नहीं हैं? हम तो वैसे भी दुनिया में शायद सबसे अधिक सामाजिक नागरिक माने जाते हैं। हमारे यहाँ एक-दूसरे की मदद करने का भी रिवाज़ है। फिर भी हमें नाख़ुश लोगों में शामिल क्यों किया जाता है? यह सवाल इसलिए क्योंकि अभी हाल ही में ‘वैश्विक ख़ुशहाली रपट’ आया। इसमें एक ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स’ यानि खुशहाली का वैश्विक सूचकांक भी दिया जाता हैइस सूचकांक में दुनिया के 147 देशों में भारत का स्थान 118वाँ माना गया है।

सूचकांक में पाकिस्तान, ईरान, इराक़, यूक्रेन, रवांडा, उज़बेकिस्तान, लीबिया, फिलिस्तीन, लेबनान, जैसे देश भी भारत से ज़्यादा ख़ुशहाल माने गए। इनमें यूक्रेन, लेबनान, फिलिस्तीन, लीबिया, जैसे देश तो सीधे तौर पर युद्ध या उसके जैसी परिस्थिति में हैं। बताए गए अन्य देशों में ईरान को छोड़ दें, तो सब आर्थिक मोर्चे पर भयंकर चुनौती का सामना कर रहे हैं। लगभग सभी देशों में आन्तरिक अशान्ति है। इन पर कर्ज़ का भारी बोझ है। भारत के मुक़ाबले बहुत ख़राब स्थिति में हैं ये। फिर भी वहाँ रहने वालों को भारतीयों से अधिक ख़ुशहाल माना गया!

तो क्या ख़ुशहाली का वैश्विक सूचकांक बनाने वालों की रपट गड़बड़ है? क्या उनके अध्ययन-मापदंडों में खोट है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि सच में भारत का समाजिक ताना-बाना कमज़ोर हो रहा है? और हम भारतीय एक-दूसरे की मदद करने के बज़ाय अब सिर्फ़ धन, समृद्धि और सुविधाओं पर ध्यान दे रहे हैं? 

इनमें से किसी भी सवाल का जवाब अगर ‘हाँ’ में है, तो यह चिन्ता का विषय है। उस पर तुरन्त चिन्तन, मनन, समाधान की ज़रूरत है। 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

गाँव की प्रेम पाती…,गाँव के प्रेमियों के नाम : चले भी आओ कि मैं तुम्हारी छुअन चाहता हूँ!

जी हाँ मैं गाँव हूँ, जो धड़कता रहता है हर उस शख्स के अन्दर जिसने… Read More

12 hours ago

जयन्ती : डॉक्टर हेडगेवार की कही हुई कौन सी बात आज सही साबित हो रही है?

अभी 30 मार्च को हिन्दी महीने की तिथि के हिसाब से वर्ष प्रतिपदा थी। अर्थात्… Read More

1 day ago

अख़बार के शीर्षक में ‘चैत्र’ नवरात्र को ‘शारदीय’ नवरात्र लिखा गया हो तो इसे क्या कहेंगे?

आज चैत्र नवरात्र का प्रथम दिवस। स्वतंत्रता पश्चात् ऐसे कई नवरात्र आए भगवती देवी की… Read More

2 days ago

मध्य प्रदेश पर ‘राज करने वालों’ ने राजधानी भोपाल के राजा का तालाब चुरा लिया!

अद्भुत क़िस्म के लोग होते हैं ‘राज करने वाले’ भी। ये दवा देने का दिखावा… Read More

5 days ago

क्या ज़मीन का एक टुकड़ा औलाद को माँ-बाप की जान लेने तक नीचे गिरा सकता है?

भारत अपनी संस्कृति, मिलनसारता और अपनत्त्व के लिए जाना जाता है। इसलिए क्योंकि शायद बचपन… Read More

5 days ago

‘डिजिटल अपनाओ, औरों को सिखाओ’, क्या इसलिए एटीएम से पैसा निकालना महँगा हुआ?

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने एटीएम से नगद पैसा निकालने की सुविधा को महँगा कर… Read More

6 days ago