भाषा के पिछलग्गू हम! चौंकिए नहीं, यदि कभी NATURE ‘नटूरे’ और FUTURE ‘फुटूरे’ हो जाए!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

पहले इस वीडियो को थोड़ा वक़्त दीजिए। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का वीडियो है, ट्रेनों के आने-जाने की नित्य उद्घोषणा का। इस उद्घोषणा को ध्यान देकर सुनिएगा। फिर अपने अनुभव का एक क़िस्सा सुनाता हूँ।   

ताे अब सुनाता हूँ अपना क़िस्सा। स्कूल के दिनों में मैंने एकाध साल छोड़कर अधिकांश पढ़ाई सरकारी स्कूलों से ही की, विशुद्ध रूप से हिन्दी माध्यम से। सो ज़ाहिर है, अंग्रेजी विषय में अन्य छात्रों की तरह मुझे भी दिक़्क़त होती थी। मास्टर साहब से अंग्रेजी शब्दों के उच्चारण को लेकर बहुत डाँट पड़ती थी। मास्टरजी HOUR को बोलते थे ‘ऑवर’ लेकिन हम जैसे बच्चे बोलते थे, ‘हावर’ क्योंकि उसकी स्पेलिंग ‘एच’ से शुरू है। 

अन्य शब्दों के उच्चारण का भी यही हाल था। उनमें NATURE ‘नटूरे’ हो जाता था और FUTURE ‘फुटूरे’। इसी तरह KNOWLEDGE के लिए निकलता था, ‘क्नोलेड्ज’, PSYCHOLOGY के लिए ‘पिसाइकोलोजी’, EDUCATION को बोलते थे, ‘एड्यूकेशन’ और SCHEDULE को कहते थे, ‘स्केड्यूल’। और भी तमाम शब्दों के उच्चारण के साथ ऐसी ही परेशानी थी। अंग्रेजी पढ़ाने के लिए हमें शुरुआती कक्षाओं में जो बाराखड़ी सिखाई गईं थीं, हम उस हिसाब इस भाषा के शब्दों का उच्चारण करते थे। लेकिन मास्टरजी कुछ और बुलवाते थे। 

इस चक्कर में हमारी कभी पिटाई हो जाती, तो कभी मज़ाक बन जाता। बल्कि कभी क्या, मज़ाक अक़्सर ही बन जाता था। मास्टरजी को किसी दिन विषय में कमज़ोर हम बच्चों के मज़े लेने होते तो कक्षा में हमारी तरफ़ इशारा करके कहते, “तो भाई, नटूरे खड़े हो जाओ। तुम्हारे साथी फुटूरे नहीं आए आज। कहाँ हैं?” यह सुनकर कक्षा के सभी बच्चे जोर से हँस देते। पर हम करते क्या? हमें समझ नहीं आता था कि माज़रा क्या है!

वह तो काफ़ी बाद में पता चला कि अंग्रेज चूँकि हम भारतीयों के ‘माई-बाप’ रहे और हम उनके ग़ुलाम, इसलिए उनकी भाषा को हमें वैसे ही बोलना है, जैसे वे लोग बोला करते हैं। ठीक है भाई, धीरे-धीरे किसी तरह उनकी भाषा के शब्दों का उन्हीं के अंदाज़ में उच्चारण करना सीख लिया। आख़िर जीवन की घुड़दौड़ में किसी तरह अपने आप को बचाकर जो रखना था। और जहाँ तक आगे जा सकते थे, वहाँ तक जाना था। 

हालाँकि, कालान्तर में मेरे मन का जाला साफ हो गया। अपनी भाषा हिन्दी के प्रति सम्मान और आत्मीयता तो पहले से थी, मगर दुनियावी चाल के साथ चलने की मज़बूरी का भाव जो मन में समा गया था, उसे एक विद्रोही तेवर ने हटा दिया। तय कर लिया कि नतीज़ा चाहे जो हो, हिन्दी में ही लिखना, बोलना और काम करना है। वह मैं कर रहा हूँ। लेकिन अभी, कुछेक सालों से ख़ुद को सम्भान्त (ELITE) समझने वाले देश के एक तबके की बोलचाल के लहज़े में बदलाव देख रहा हूँ। इस तबके ने हिन्दी को तो अब भी नहीं अपनाया, लेकन लगता है जैसे वह ‘अंग्रेजों की अंग्रेजी’ छोड़ रहा है। उसकी जगह दुनिया में धमक रखने वाले अमेरिका का पिछलग्गू हो चला है। 

अमेरिकियों के बारे में कहते है कि वे जैसी अंग्रेजी लिखते हैं, वही बोलते हैं। इसीलिए EDUCATION को ‘एड्यूकेशन’, CONTENT को ‘कॉन्टेन्ट’, SCHEDULE को ‘स्केड्यूल’ आदि उच्चारित करते हैं। सो, हमारे देश का ‘सम्भ्रान्त तबका’ भी अब यही अंग्रेजी बोलने लगा है। अलबत्ता, बात वहीं तक रहती तो भी ठीक। लेकिन महसूस होता है, देश के सबसे बड़े सरकारी संस्थानों में से एक रेलवे ने भी भाषा के मामले में ‘अमेरिकी हाथी के पीछे उसके बच्चे की तरह’ चलने का फ़ैसला कर लिया है। शायद इसीलिए रेलवे स्टेशनों की उद्घोषणा में SCHEDULE ‘स्केड्यूल’ और HOUR ‘हावर’ हो गया है। और अगर ये सच है तो यक़ीन मानिए, बड़ी दयनीय स्थिति है।

सो मज़ाक के लिए कभी ख़्याल यह भी आता है, फ़ालतू में हम जैसे लोगों ने मास्टरजी के दबाव में आकर अपना अंग्रेजी बोलने का लहज़ा बदला। हम यदि वैसे ही बोलते रहते, जैसा बोल रहे थे तो अब तक शायद देश के इस सम्भ्रान्त तबके से ज़्यादा उन्नत कहलाते और समय से आगे भी। क्योंकि यह तबका भी हो सकता है, कुछ दिनों में NATURE को ‘नटूरे’ और FUTURE ‘फुटूरे’ कहने लगे। अगर ऐसा हो तो चौंकिएगा नहीं!!

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

यदि जीव-जन्तु बोल सकते तो ‘मानवरूपी दानवों’ के विनाश की प्रार्थना करते!!

काश, मानव जाति का विकास न हुआ होता, तो कितना ही अच्छा होता। हम शिकार… Read More

17 hours ago

“अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!”

"अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!" अभी इन्दौर में जब… Read More

3 days ago

क्रिकेट में जुआ, हमने नहीं छुआ…क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश अच्छे से की!

क्रिकेट में जुआ-सट्‌टा कोई नई बात नहीं है। अब से 30 साल पहले भी यह… Read More

4 days ago

जयन्ती : डॉक्टर हेडगेवार की कही हुई कौन सी बात आज सही साबित हो रही है?

अभी 30 मार्च को हिन्दी महीने की तिथि के हिसाब से वर्ष प्रतिपदा थी। अर्थात्… Read More

6 days ago