टीम डायरी
एक और साल ख़त्म होने को है। बस, कुछ घंटे बचे हैं 2024 की विदाई में। इसके बाद 1 जनवरी 2025 की सुबह देश के कई हिस्सों में सूरज भले बाद में निकले, लेकिन लोग पहले घरों से निकल पड़ेंगे। सब नहीं, तो अधिकांश लोग ज़रूर निकलेंगे और उनमें से सभी का अगला ठिकाना होगा आस-पास का कोई छोटा-बड़ा मन्दिर। सबके मन में इच्छा होगी कि साल के पहले दिन सबसे पहले भगवान के दर्शन करें। इसके बाद कोई और काम शुरू करें। अच्छी बात है। इसमें कोई बुराई नही। लेकिन गड़बड़ी तब शुरू होती है, जब भगवान के मन्दिर में भी हम-आप अपना अहम् साथ लेकर चले जाते हैं। भगवान के घर में भी अपने पैसों का दम्भ दिखाने से नहीं चूकते हैं।
यक़ीन न हो, थोड़ा समय निकालिए और देश के विभिन्न बड़े मन्दिरों की वेबसाइटों को ज़रा खँगालकर आइए। चाहे शिरडी साईं मन्दिर की वेबसाइट हो या तिरुपति बालाजी, उज्जैन महाकाल, काशी विश्वनाथ या फिर ऐसे ही किसी अन्य बड़े मन्दिर की। हर वेबसाइट पर ‘वीआईपी दर्शन’ की बुकिंग वाला एक कोना ज़रूर मिलेगा। और वहाँ 1 जनवरी के ‘वीआईपी दर्शन’ के लिए अब तक शायद ही कोई जगह खाली मिलेगी। यह भी सम्भव है कि कुछ मन्दिरों के प्रबन्धन ने भीड़ की अधिकता के कारण 1 जनवरी के लिए यह सुविधा बन्द की हो। लेकिन तब भी, साल के शुरुआती 4-5 दिनों के लिए तय मानिए कि हर मन्दिर में ‘वीआईपी दर्शन’ की पर्चियाँ ख़त्म हो चुकी होंगी।
‘वीआईपी’, मतलब बहुत-बहुत ख़ास लोग। कितनी विचित्र बात है न? भगवान के सामने सिर झुकाने के लिए जाते समय भी ख़ास-ओ-आम की हमारी मानसिकता जाती नहीं। अपने आप को ‘ख़ास’ मानकर, बताकर हम अपना सिर ऊँचा ही रखना चाहते हैं, चाहे जो हो जाए। और सच मानिए, हमारी इसी सोच या कहें कि दिमाग़ी फ़ितूर का फ़ायदा कुछ ‘ओछे’ क़िस्म के लोग भरपूर उठाते हैं। इसका ताज़ा उदाहरण अभी उज्जैन के महाकाल मन्दिर से ही सामने आया है। पुलिस ने वहाँ ‘वीआईपी दर्शन’ घोटाले का पर्दाफ़ाश किया है। उसमें 6 आरोपियों को ग़िरफ़्तार किया है। इनमें से 5 आरोपी पहले ही पकड़े जा चुके थे। जबकि 1 ने अभी सोमवार को ही आत्मसमर्पण किया है।
आत्मसमर्पण करने वाले आरोपी का नाम रीतेश शर्मा है। वह महाकाल मन्दिर में भस्म आरती के दौरान की जाने वाली व्यवस्थाओं का प्रभारी था। बताया जाता है कि ये सब आरोपी मिलकर ‘भस्म आरती’ के दौरान महाकाल के ‘वीआईपी दर्शन’ की टिकटों की कालाबाज़ारी करते थे। जाे जानकारी सामने आई उसके मुताबिक, महाकाल मन्दिर में ‘वीआईपी दर्शन’ की टिकट या रसीद 200 रुपए की निर्धारित है, लेकिन ये आरोपी मिलकर लोगों से एक रसीद के बदले 1,100 से 3,000 रुपए तक वसूल लेते थे। इसमें भी दिलचस्प बात ये कि इस घोटाले का सिलसिला लम्बे समय से चल रहा था, पर महाकाल के किसी ‘तथाकथित भक्त’ को कभी इस पर एतिराज़ नहीं हुआ!
तो अब बताइए, तुच्छ कौन हुआ? जिन्होंने घोटाला किया वे, या फिर जो घोटालेबाज़ों को हजारों रुपए का ‘भ्रष्ट चढ़ावा’ चढ़ाकर महाकाल के सामने भी ‘वीआईपी’ बनकर, तनकर खड़े हुए वे? नए साल के पहले दिन इस सवाल के मार्फत अपना आत्मविश्लेषण कर अपने में सुधार कर सकें, तो यक़ीन मानिए नव वर्ष की शुरुआत इससे बेहतर कुछ और नहीं हो सकती। भगवान के दर्शन से भी बेहतर साबित होगी ये पहल!!
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