तस्वीर में दुनिया की वे जगहें जहाँ इस वक्त लड़ाई चल रही है। अमेरिका इन लड़ाईयों को भड़काने में लगा है।
समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
…और ऐसी गैरज़िम्मेदाराना करतूत पर कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं।
हाँ, अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्राध्यक्ष जो बाइडेन ने यूक्रेन को लम्बी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की औपचारिक अनुमति दे दी है। इस तरह उन्होंने दुनिया को एक बड़ी अनिश्चितता की ओर धकेल दिया है। सीधे सरल शब्दाें में कहें तो यूक्रेन के माध्यम से नाटो (उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन, जिसका नेतृत्त्व अमेरिका करता है) ही रुस पर लम्बी दूरी की मिसाइलों से हमला कर रहा है। इसके मद्देनजर स्कैण्डेनेवियन देश अपनी प्रजा रसद-राशन जमा करने और युद्ध के लिए तैयार होने की सूचनाएँ जारी कर रहे हैं।
रूस ने भी ज़वाबी तेवर दिखा दिए हैं। उसने यूक्रेन के साथ लगभग ढाई-तीन सालों से जारी युद्ध में पहली बार इन्टरकॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) दागी है। इसकी पुष्टि ख़ुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने की है। इस तरह उसने स्पष्ट दे संकेत दिया है कि वह ज़रूरत पड़ने पर अमेरिका को भी निशाने पर ले सकता है। क्योंकि आईसीबीएम की 5,000 से भी अधिक किलोमीटर दूर तक मार करने की क्षमता रखती है। परमाणु हथियार भी ले जा सकती है। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए अमेरिका, ग्रीस, इटली और स्पेन ने यूक्रेन की राजधानी कीव स्थित अपने दूतावास बन्द करने का निर्णय ले लिया है। यूरोपीय देश भावी युद्ध की आशंका के लिए तैयार हो रहे हैं। आखिरकार सबको पता है कि ऐसे मिसाइल हमलों के मायने क्या हैं।
इस तरह, जहाँ कल तक दुनिया का सबसे संवेदनशील इलाका फलिस्तीन-इजराइल-ईरान का था, अब यकायक यह तमगा यूक्रेन-बाल्टिक सागर क्षेत्र को हासिल हो चुका है। इसके बावज़ूद इतनी गैरज़िम्मेदाराना हरकत पर कोई मीडिया, राष्ट्राध्यक्ष कुछ बोलने को तैयार नहीं, यह तथाकथित विचारक बौद्धिक लोगों की नैतिक विवशता दर्शाता है। बेशक, ऐसी कमियों के कारण ही यह वर्ग अपनी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता खो रहा है।
सवाल है कि चुनाव में नकार दी गई पार्टी के सेवानिवृत्त हो रहे राष्ट्राध्यक्ष (बाइडेन) को आख़िर इतना बड़ा फैसला लेने की क्या जल्दबाज़ी है? ऐसी क्या बात है, जो अमेरिकी उदारपन्थी तबका और मजबूत संस्थाओं के लिए प्रख्यात देश अमेरिका के नीति निर्धारक इतनी बड़ा जोखिम लेने को तैयार है। इस कदर हताश क्यों है? ज़वाब के लिए हमें अमेरिका की स्थिति, वहाँ के ताकतवर और उस रहस्यमय संस्थागत तंत्र की कार्यप्रणाली, उसके हितग्राहियों को देखना होगा।
स्थितियों की बात करें ताे यह एक ऐसा मंजर है, जहाँ अमेरिकी स्वप्न अवसान में है। वह एक दु:स्वप्न की ओर ताक रहा है। अमेरिकी मुद्रा सालों से अपनी वैश्विक मुद्रा के दर्जे का फायदा उठाकर, अनाप-शनाप डॉलर छापकर मौजमस्ती करे के बाद अब स्थिति सुधार के लिए बाध्य है। चीन तेजी से प्रभुत्व बढ़ा रहा है। दूसरे देश भी इस संक्रमणकाल में अपने हितों को सुरक्षित करने लिए ऐसे कदम उठा रहे हैं, जिनसे अमेरिकाप्रणीत विश्वव्यवस्था का सन्तुलन बिगड़ रहा है।
ऐसे में डोनाल्ड ट्रम्प की राष्ट्राध्यक्ष के रूप में जीत एक बहुत बड़ी घटना है। जिस विश्वास से उन्हें खारिज किया जा रहा था और अमेरिकी जनता ने जिस मजबूती से उनमें विश्वास जताया, वह विशेष ध्यान देने योग्य है। उन्हें अमेरिका ने एक राष्ट्रवादी, मेहनतकश, उत्पादकता केन्द्रित, पारिवारिक मूल्य आधारित राष्ट्र खड़ा करने के लिए चुना है। ये वही मूल्य हैं जिन पर अमेरिका खड़ा हुआ है। डेमोक्रेट्स एक अति-उदारवादी, विश्वभर से जुड़ाव रख वित्तीय और नीतिगत संस्थाओं के माध्यम लाभ कमाने वाले तंत्र का पक्षधर है।
मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि ट्रम्प अमेरिकी विकास के दौर की नीतियाें पर अमेरिका को खड़ा करना चाहते हैं और डेमोक्रेट्स विकसित हो चुके अमेरिकी की नीतियों पर। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स की नीतियाँ मुख्यत: इन दो पक्षों के हिसाब से थी। यह विडम्बना ही है कि वैश्विक जुड़ाव के पक्षधर उदारपन्थी धड़ा ही आज दुनिया को बाँटने वाले युद्ध में धकेल रहा है। इसने ही नैतिकता और तमाम मामलों पर कलम चलाने वाले बुद्धिजीवियों की स्याही सूख गई है और वाचाल विश्लेषकों के मुख में दही जम गया है।
अमेरिका की जनता ने एक उत्पादकता आधारित अर्थव्यवस्था के लिए मत दिया और और वैश्विकवाद काे नकारा है। उस पर बहुत से लोगों के करियर, हित और भविष्य टिके हुए हैं। ऐसे में बाइडेन का यूक्रेन को अमेरिकी सेना के तकनीकी मिसाइल तंत्र से हमले करने की अनुमति रूस पर परोक्ष हमले का आदेश है। जबकि डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषणों में यूक्रेन युद्ध को बन्द कराने का वादा किया था। सम्भवत: इसीलिए बाइडेन रायता फैलाकर व्हाइट हाउस में आगन्तुक ट्रम्प का स्वागत करना चाहते हैं। यह डोनाल्ड ट्रम्प के स्वागत के लिए बारूदी सुरंगें बिछाकर जाने जैसा है। इससे यह बात तो सिद्ध होती ही है कि यह तबका बेहद हताश है। इससे यूरोप, अमेरिका सहित सारी दुनिया एक अस्थिरता के दौर में प्रवेश करेगी। सम्भवत: यूरोप को पहली बार नाटो सुरक्षा कवच की कीमत भी चुकानी पड़े।
इसके अलावा मध्य-एशिया में इजरायल-फलिस्तीन-ईरान युद्ध से उपजी अस्थिरता का असर भी सबसे पहले यूरोप पर ही पड़ेगा। आगन्तुक अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प को चुनौतियों के नए पहाड़ों से मार्ग निकालना होगा। यहाँ वैश्विक स्तर पर नेतृत्त्व करने के लिए उनकी परीक्षा निजी वैयक्तिक गुणों के आधार पर होगी। भावी सरकार के लिए ट्रम्प जिन लोगों का चयन कर रहे हैं वो यकीकन पुराने संस्थागत तंत्र को बदलने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। वे वैचारिक रूप से उन मूल्यों के लिए खड़े हैं जिन्हें ट्रम्प फिर से स्थापित कर महान् अमेरिका के सपने को साकार करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें सबसे बड़ी चुनौती देश के अन्दर से पुराने संस्थागत तंत्र और उनके सहयोगी किरदारों से है, जिन्हें अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने में ऐतिराज नहीं। यह स्थिति अमेरिका के लिए तो चिन्ता का विषय है ही दुनिया के लिए भी उतनी चिन्ताजनक है।
—-
(नोट : समीर #अपनीडिजिटलडायरी की स्थापना के समय से ही जुड़े सुधी-सदस्यों में से एक हैं। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं।)
दोहरे चरित्र वाले लोग लोकतांत्रिक प्रणाली और अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसी सुविधाओं को किस तरह… Read More
एक कामकाजी दिन में किसी जगह तीन लाख लोग कैसे इकट्ठे हो गए? इसका मतलब… Read More
क्रिकेट की इण्डियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के फाइनल मुक़ाबले में मंगलवार, 3 जून को रॉयल… Read More
एक वैष्णव अथवा तो साधक की साधना का अनुशीलन -आरम्भ आनुगत्य से होता है, परिणति… Read More
अभी 31 मई को ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस’ मनाया गया। हर साल मनाया जाता है।… Read More
कभी-कभी व्यक्ति का सिर्फ़ नज़रिया देखकर भी उससे काम ले लेना चाहिए! यह मैं अपने… Read More