चैम्पियन कैसे होते हैं, क्या करते हैं, कैसे सोचते हैं…‘चैम्पियन रोजर फ़ेडरर’ से ख़ुद सुनिए

टीम डायरी

रोजर फेडरर। स्विट्ज़रलैंड के टेनिस खिलाड़ी। बचपन में कभी टेनिस कोर्ट में बॉल-ब्वाय हुआ करते थे। वह लड़का जो टेनिस खेल रहे दूसरे बड़े खिलाड़ियों के लिए कोर्ट से बाहर जाने वाली बॉल को उठाकर लाता है। लेकिन फेडरर जब बड़े हुए तो ऐसे कि पूरे 310 हफ़्तों तक दुनिया के नंबर-एक टेनिस खिलाड़ी रहे। इसमें 237 हफ़्तों तक तो लगातार वह अव्वल रहे। उन्हें कोई वहाँ से हटा नहीं पाया। पूरे करियर में 103 एकल ख़िताब जीते। इनमें क़रीब 20 तो बड़े ख़िताब शामिल हैं, विम्बलडन और यूएस ओपन जैसे। विम्बलडन तो फ़ेडरर ने आठ बार जीता।

इसके बाद 2022 में फ़ेडरर ने टेनिस से संन्यास लिया ताे उसके बाद की ज़िन्दगी भी वे ‘चैम्पियन’ की तरह जी रहे हैं। इसका प्रमाण ये है कि अभी हाल ही में उन्हें अमेरिका की डार्टमाउथ यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी है। जबकि वे जीवन में कभी कॉलेज नहीं गए। कॉलेज तो क्या, टेनिस के लिए उन्होंने 16 साल की उम्र में स्कूल तक छोड़ दिया था। लेकिन अब डॉक्टरेट की मानद उपाधि के साथ ‘डॉक्टर रोजर फ़ेडरर’ कहलाने लगे हैं। यही नहीं दुनियाभर के ग़रीब बेसहारा बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में मददके लिए एक फाउंडेशन भी चलाते हैं।         

डार्टमाउथ यूनिवर्सिटी में मानद उपाधि दिए जाने के दौरान हुए कार्यक्रम में उन्होंने जो भाषण दिया, वह तीन-चार दिनों से दुनियाभर में चर्चा में है। विभिन्न माध्यमों पर सुना और साझा किया जा रहा है। कारण? इसमें रोजर फ़ेडरर ने वे सूत्र बताए हैं कि कोई भी व्यक्ति जीवन में अपने क्षेत्र का ‘चैम्पियन’ कैसे हो सकता है। उन्होंने अपने अनुभवों के उदाहरण से बताया है कि चैम्पियन होते कैसे हैं? वे करते क्या हैं? और सोचते कैसे हैं? महज, तीन बिन्दुओं में उन्होंने तीनों बातों को  समझाया है। सुनिएगा। क्योंकि अपनी दुनिया के ‘चैम्पियन’ तो हम सभी होना चाहते हैं! 

संक्षेप में, फेडरर के बताए तीन बिन्दु कुछ यूँ रहे : 

1. एफ़र्टलेस यानि सरलता या आसानी कुछ नहीं मिलता 

कुछ हासिल करने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है। अपने आप पर भरोसा रखना पड़ता है। जीत के पीछे भागते रहना पड़ता है। बिना थके, बिना हार माने, लगातार। और इस परिश्रम, इस प्रयास की प्रक्रिया के दौरान हमारी सोच सबसे अधिक मायने रखती है। हाँ, इस अथक परिश्रम के नतीज़े में जब उपलब्धियाँ मिलनी  शुरू होती हैं, तो देखने वाले कह सकते हैं कि इनके लिए यह आसान रहा। फ़ेडरर के खेल के लिए भी यह कहा गया। लेकिन वास्तव में कभी, किसी स्तर पर, आसान कुछ नहीं होता। सब कठिन परिश्रम से हासिल करना पड़ता है। 

2. जब आप खेलते हैं, तो जीत-हार सिर्फ़ एक प्वाइंट है 

जब हम अपने खेल के मैदान (वह चाहे किसी भी तरह का हो) में होते हैं, तो जीत-हार सिर्फ़ एक प्वाइंट होता है। हमें उसके बीच में तालमेल बनाते आना ही चाहिए। कई बार हमारे हारने पर देखने वाले कह सकते हैं कि अब इनसे न हो पाएगा। या, इनका समय नहीं रहा अब। या फिर, ऐसा ही कुछ और। लेकिन याद रखिए, अगर हमारी हार एक प्वाइंट है तो सामने वाले की जीत भी एक प्वाइंट ही है। और प्वाइंट टेबल पर प्वाइंट्स कभी भी, किसी भी खेलने वाले के पक्ष में कम या ज़्यादा हो सकते हैं। पलड़े को कभी भी हम अपने पक्ष में झुका सकते हैं। 

3. ज़िन्दगी, अस्ल में, हमारे कुएँ से बहुत बड़ी होती है 

हाँ, रोजर फ़ेडरर के कहने का मतलब यही है। हालाँकि उनके शब्द ऐसे नहीं हैं। उन्होंने अपने अनुभव के हवाले से कहा है, “ज़िन्दगी टेनिस कोर्ट से बहुत बड़ी होती है।” मगर हम इसे अपना वह कुआँ समझें, जिसे अक़्सर अपनी पूरी दुनिया मान बैठते हैं। उसके छूट जाने या उससे दूर होने के ख़्याल से भी बेचैन हो जाते हैं। यह भूल जाते हैं कि ज़िन्दगी समुन्दर की तरह है। हमारे कुएँ से बाहर, बहुत बड़ी। करने के लिए बहुत कुछ होता है, हमेशा। और पाने के लिए भी। इसलिए कुछ खोने का मलाल नहीं, बल्कि पाने की कोशिश करते रहनी चाहिए।

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

जो हम हैं, वही बने रहें, उसे ही पसन्द करने लगें… दुनिया के फ़रेब से ख़ुद बाहर आ जाएँगे!

कल रात मोबाइल स्क्रॉल करते हुए मुझे Garden Spells का एक वाक्यांश मिला, you are… Read More

3 hours ago

‘एशेज़ क्रिकेट श्रृंखला’ और ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ की कहानियाँ बड़े दिलचस्प तौर से जुड़ी हैं!

यह 1970 के दशक की बात है। इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई… Read More

1 day ago

‘ग़ैरमुस्लिमों के लिए अन्यायपूर्ण वक़्फ़’ में कानूनी संशोधन कितना सुधार लाएगा?

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव उतार पर है। इसके बाद आशंका है कि वक़्फ़ संशोधन अधिनियम… Read More

1 day ago

‘मदर्स डे’ माँ घर की कच्ची रसोई में अक्सर, सिर्फ भोजन नहीं प्रेम पकाती है!

माँ घर की कच्ची रसोई में अक्सरसिर्फ भोजन नहीं प्रेम पकाती है। स्नेह की धीमी… Read More

2 days ago

कितना अच्छा होता कि…, दुनिया में कोई जंग ना होती

कितना अच्छा होता कि कोई उम्मीद अधूरी न होती किसी के बदल जाने से तक़लीफ़… Read More

2 days ago

‘मदर्स डे’ : ये जो मैं थोड़ा सा इंसान हो सका हूँ, सब अम्मा का ही करम है!

अम्मा नहीं जानतीं, ‘मदर्स डे' क्या बला है! उन्हें तो बस चूल्हा-चौकी और गृहस्थी के… Read More

2 days ago