जगन्नाथ पुरी रथयात्रा में हर साल लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं।
टीम डायरी
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की तैयारियाँ चल रही हैं। अक्षय तृतीया से भगवान जगन्नाथ, श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथ बनाए जा रहे हैं। इन रथों के लिए जंगल से दारुब्रह्म नाम के पेड़ की लकड़ियाँ लाई जाती हैं। फिर विधि-विधान से रथों का निर्माण होता है। अभी इन रथों में पहिए लगा दिए गए हैं (देखिए वीडियो) हैं। अन्तिम चरण की कुछ और तैयारियाँ बाकी हैं। इसके बाद हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि (सात जुलाई को) पर भव्य रथयात्रा निकलने वाली है।
यात्रा आषाढ़ माह के ही शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि (इस बार 16 जुलाई) तक पूर्ण हो जाती है। इसके बाद अगले दिन से भगवान अपने मन्दिर में भक्तों को विधिवत् दर्शन देने लगते हैं। लेकिन कई लोग जो नहीं जानते, उनके दिमाग़ में सवाल हो सकता है कि भगवान के तीनों रथों का आगे क्या होता है? तो उत्तर है कि इन रथों को विघटित (डिसमेंटल) कर दिया जाता है। कई अहम हिस्से नीलाम कर दिए जाते हैं। इस शर्त के साथ कि इन्हें ख़रीदने वाला इनका कभी किसी रूप में दुरुपयोग नहीं करेगा। शेष लकड़ी श्रीजगन्नाथ की रसोई में जाती है।
इस तरह, हर साल अपनाई जाने वाली इस पूरी प्रक्रिया के माध्यम से भगवान जगन्नाथ सभी को सीधा सरल सा सन्देश दे देते हैं। निर्माण (रथों की तरह), चरम तक प्रस्थान (रथयात्रा महोत्सव), अवदान (रथों का विघटन) और अवसान (रथों की शेष लकड़ी का अग्नि में समा जाना) के नित्य प्रति चलने वाले चक्र का सन्देश। वे बताते हैं कि उनके सृष्टि-संचालन के रथ का पहिया ऐसे ही घूमता रहता है। ऐसे ही घूमते रहने वाला है।
इस चक्र से कभी कोई नहीं बच सका है। स्वयं भगवान जगन्नाथ भी नहीं। क्योंकि यह भी जानने और याद रखने की बात है कि इसी धर्मनगरी में हर 12 साल के अन्तराल पर भगवान जगन्नाथ, श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा के विग्रह (श्री मन्दिर में रखी काष्ठ प्रतिमाएँ) भी कलेवर बदलते हैं। अर्थात् पुरानी प्रतिमाओं की जगह नई प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। इस आयोजन को ‘नब कलेबर’ उत्सव कहते हैं, जो 2027 में होना है।
लिहाज़ा, जब तक जीवन है, ज़मीन से लगकर रहें। वरना ज़मीन पर लगा तो दिए ही जाएँगे। अलबत्ता, कितने भक्त होंगे जो भगवान के इस सीधे सरल सन्देश को सही अर्थों में आतमसात् कर लेते होंगे? हर साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में लाखों-लाख भक्त पुरी आते हैं। रथों को हाथों से खींचकर, छूकर, प्रणाम-नमस्कार कर जीवन धन्य बनाते हैं। भगवान के दर्शन के लिए भी पुरी में रोज ही भक्तों का ताँता लगता है। लेकिन क्या भक्तों का जीवन सही मायने में तब धन्य नहीं होता, जब वे भगवान का सन्देश सही अर्थ में ग्रहण कर पाते?
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