प्रतीकात्मक तस्वीर
टीम डायरी
कोई अगर दिन का बड़ा वक़्त सोशल मीडिया पर बिता रहा है, तो समझिए उसे इसकी लत लग गई है। वैसे ही, जैसे नशीले पदार्थ की लगती है। बल्कि विशेषज्ञ तो इस लत काे एक तरह की दिमाग़ी बीमारी भी कहने लगे हैं। अमेरिका के कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, सोशल मीडिया पर अधिक देर तक चिपके रहना अपने आप में दिमाग़ी बीमारी तो है। साथ ही इससे अकेलापन, अवसाद, चिन्ता जैसे अन्य मानसिक विकार भी पनपते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस लत और इन मानसिक विकारों के दो प्रमुख कारण हैं। पहला- ‘फोमो’ और दूसरा- फिल्टर। नए दौर की शब्दावली में ‘फोमो’ का मतलब होता है- फियर ऑफ मिसिंग आउट। यानि कुछ खो जाने का, कुछ छूट जाने का भय। यह ‘फोमो’ नाम का शब्द और बीमारी दोनों सोशल मीडिया की देन है। शब्द साल 2004 से चलन में आया, लेकिन बीमारी के लक्ष्ण शायद उससे पहले ही लोगों में दिखने लगे होंगे। इस भय के शिकार लोगों को हमेशा लगा रहता है कि सोशल मीडिया पर आने वाले अपडेट उनसे छूट न जाएँ। कहीं ऐसा न हो कि वे अपडेट न देख सकें और किसी कार्यक्रम में जाने से रह जाएँ। किसी जानकारी से वंचित रह जाएँ, आदि।
विशेषज्ञ बताते हैं कि सोशल मीडिया की लत और उसके कारण होने वाले मानसिक विकारों का दूसरा बड़ा कारण ‘फिल्टर’। यह ऐसी सुविधा है, जिसके माध्यम से लोग चेहरे-मोहरे नैन-नक़्श को काफ़ी हद तक ठीक-ठाक कर लेते हैं। फिर जब उन्हें ख़ुद अपना चेहरा आकर्षक लगता है, तो उसे वे सोशल मीडिया पर रील, आदि के रूप में डाल देते हैं। लोगों की तारीफ़ें बटोरने के लिए और बटोरते भी हैं। हालाँकि ऐसा करना उन्हें पहले-पहल तो अच्छा लगता है, क्योंकि फिल्टर से चेहरे-मोहरे की ख़ामियाँ छिप जाती हैं। लेकिन आगे चलकर यही परेशानी बन जाता है। कारण कि फिल्टर का उपयोग करते-करते कई बार लोग अपने अस्ल चेहरे को नापसन्द करने लगते हैं।
इसीलिए विशेषज्ञ लगातार सुझाव देते हैं कि सोशल मीडिया का अधिक उपयोग न करें। उससे बाहर अस्ल समाज में लोगों से मेल-जोल बढ़ाएँ। दोस्तों के साथ वक़्त बिताएँ। उनके साथ चाय की चुस्कियाँ लें, गप्पें हाँकें। वा्स्तविक तौर पर सामाजिक सम्पर्क और सम्बन्ध बनेंगे। साथ ही साथ मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
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