‘मायावी अंबा और शैतान’ : तुझे पता है वे लोग पीठ पीछे मुझे क्या कहते हैं…..‘मौत’

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

भाड़े के अपने रंगरूटों के सामने उसने अपना भारी-भरकम हाथ बर्फ से भरी बाल्टी में डाल दिया। गले से लेकर पीठ तक उसकी खाल मानो झुलस रही थी। हलक की गहराई से निकलती आवाज भर्रा रही थी। इस वक्त उसने बिजली की तेजी से एक लाल चितकबरे साँप को हाथों में दबोच लिया था।

“शैतान का बच्चा! देखो, कैसी आसानी से पकड़ लिया!”, कोई चीखा। इधर, नम गुलाबी आँखें दुश्मन पर एकटक जमी हुईं थीं। उस साँप ने फन लहराकर नुकीले जहरीले दाँतों से कई प्रहार किए थे।

इन इलाकों में यह साँप ‘नन्ही मौत’ कहलाता था। उसने फिर अपना फन उठाकर जहरीले दाँतों से बहुत सारा जहर उगला। लेकिन आदिम कबीले के मुखिया की तरह रहस्यमय रूप से उस शख्स का चेहरा अब भी सपाट ही रहा। वह चट्‌टान को काटकर बनाई गई मूर्ति की तरह अब भी संयत खड़ा था। उसकी पीठ पर लटका कोट गिद्ध के पंखों की तरह महसूस होता था। उसके जिस्म पर जहाँ भी साँप के काटने से जख्म हुए, उनमें भयानक जलन हो रही थी। ऐसी कि उसकी जगह कोई आम इंसान होता तो अब तक मर जाता, क्योंकि साँप ने भरपूर जहर उसके शरीर में उड़ेल दिया था।

लेकिन रोजी मैडबुल कोई आम इंसान नहीं था।

उसका नामकरण उसकी माँ के नाम पर किया गया था। उसे जन्म देते समय ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। वह ऊँची-पूरी कद-काठी वाला इंसान था। उसकी माँसपेशियाँ शरीर को चीरकर बाहर आती हुई दिखती थीं। एक समय वह पेशेवर मुक्केबाज बनने की सोचा करता था। उसकी त्वचा लहरदार और आँखें पतली थीं। मुँह पर एक रक्तहीन चीरा लगा हुआ था। और अभी, जब उसके हाथ में साँप ने हिलना-डुलना बंद कर दिया, तो उसने अपनी पकड़ ढीली कर आराम से उसे जमीन पर छोड़ दिया।

अब बारी दूसरों की थी।

मंच पूरी तरह तैयार था। मैडबुल ने उन 24 युवाओं के सामने ग्लेडिएटर (रोमन साम्राज्य के मशहूर तलवारबाज) की तरह अपने हुनर का प्रदर्शन किया था, जो अपनी किस्मत खुलने के इंतजार में थे। उसने दिखाया था कि आगे इन लोगों को क्या-कुछ करना पड़ सकता है। तभी प्रशिक्षक ने सफेद कपड़े से ढँक कर रखी गई आकृति से आवरण हटा दिया। वह एक नग्न लाश थी, औंधी पड़ी हुई।

“इस लाश के टुकड़े-टुकड़े कर दो।”

“क्या ….?” जवाब में एक युवक के मुँह से निकला। उसकी आँखें फटी रह गईं थीं। उसे भरोसा नहीं हुआ कि उससे क्या करने के लिए कहा गया था।

“कोई दिक्कत है क्या लड़के?”, रोजी ने अपने भारी-भरकम हाथों से माथे पर गिर आए बालों को सँभालते हुए पूछा।

“मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है।”

“दिन ही खराब है। खासकर ये जानकर कि इनमें से एक भी मर्द नहीं।”

“ऊँह.. ये जरूरी है क्या? ये तो पहले ही मर चुका है।”

“ए छोकरे, तुझे पता है वे लोग पीठ पीछे मुझे क्या कहते हैं…..‘मौत’। तुझे यकीन है इस बात पर?” मैडबुल की सपाट ठंडी आवाज किसी धारदार हथियार की तरह हवा को चीरती महसूस हुई।

“न…..नहीं, सर।”

“.….तो यकीन कर ले। यही बेहतर है, तेरे लिए। और अब कर, जो करने के लिए कहा गया है।”

मैडबुल ने कमर में बँधी अपनी रिवॉल्वर पर हाथ फिराते हुए हुक्म दिया। ये पाँच गोलियों वाली .32 कैलिबर की स्लोकम रिवॉल्वर थी। अन्य हथियारों की तरह यह हमेशा उसके साथ रहती थी। उसका रौब बढ़ाती थी। उसने अब उस लड़के के हाथ में एक तेज धार वाली दराँती पकड़ा दी था।

“क्या तुम ये मान रहे हो कि लोगों को मारना आसान नहीं है?”

लाश के सामने खड़ा लड़का जैसे-तैसे अपनी उबकाई रोकने की कोशिश कर रहा था।

“या फिर ये कहने वाले हो कि तुमने कभी सोचा नहीं था कि वाकई किसी को मारना होगा।”

“इन डरपोक लड़कों में रैड-हाउंड्स बनने का गुरदा नहीं है,” एक प्रशिक्षक ने खिखियाते हुए कहा।

“तुम में से कितनों ने इससे पहले किसी को जान से मारा है?” मैडबुल ने पूछा। इसी बीच, जब एक प्रशिक्षक ने ‘औरत’ कहकर उन लड़कों की खिल्ली उड़ाई, तो कुछ सहमे हुए हाथ ऊपर उठे।

कर्नल खुद को विधाता से कम नहीं समझता था। शायद इसीलिए इंसाफ और नैतिकता की परंपरागत समझ के परे जाकर काम किया करता था अक्सर। कई बार वह जिन्हें मारता, उन्हें भी मारने से पहले अपने ज्ञान की घुट्टी पिलाया करता था।

“छोटे लड़के अफसर बनते हैं। शानदार बाल कटवाते हैं। तुम लोगों की वर्दी पर कड़क इस्त्री होती है। तुम्हारी कमर पर महँगी बंदूक बँधी होती है। फिर अचानक तुम लोगों को लगता है कि तुम्हें कमांडो बनना है। और कड़क जवान बनना है। लेकिन सच्चाई जानते हो, क्या है? तुम सिर्फ दिखावटी सैनिक हो। तुम खुद को माँसाहारी बताते हो। लेकिन खून देखते ही तुम्हारी पतलून गीली हो जाती है। तुम यहाँ आए ही क्यों हो भाई? लोगों को लँगड़ा-लूला बना देना, उन्हें धमाकों से उड़ा देना कोई पाप नहीं है। और लड़ाई भी, सिर्फ किसी के गले में मुक्का जड़ देने या छाती में घूँसा मार देने को नहीं कहते हैं। यह बेहद घिनौना और क्रूर काम है। चिथड़े-चिथड़े होकर उड़ती लाशें, उनके सड़े हुए बिखरे टुकड़े, सिर से बाहर निकला भेजा, फूटी आँखें, कटे-फटे अंग और पेट से बाहर आईं फूली हुई आँतें। ये सब देखना पड़ता है। क्या तुम देख सकते हो?”

“मुझे नहीं पता …।”

इतना सुनते ही मैडबुल ने लड़के के पैर में गोली मार दी। वह दर्द से ऐसे चीख उठा, जैसे उसे सूली पर चढ़ा दिया गया हो। वह बह निकले खून को रोकने की कोशिश करने लगा।

“बाहर करो इसे। मेहरबानी होगी हम पर।”

“रैड हाउंड होना सम्मान की बात है। हर कोई यह काम नहीं कर सकता। इसलिए अपनी क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर समझने की बेवकूफी मत करना। यहाँ लक्ष्य हमेशा सामने होता है, लड़को। जीते-जागते इंसानों की सूरत वाले लक्ष्य। मौत सामने नाचती है। मुँह से झाग उगलते, चीखते-चिल्लाते हुए दुश्मन सामने से मारने के लिए आता है। जान हथेली पर लेकर। छाती में गोली खाने के लिए तैयार होता है वह। महज एक सेकंड में उसका काम-तमाम होगा। उसे मार देने में कोई बुराई नहीं है। ये लड़ाई का मैदान है। यहाँ या तो तुम मारोगो, या मरोगे। कोई और रास्ता है क्या?”

इसके बाद बारी एक दुबले-पतले लड़के की आई। उसने दराँती इस तरह हाथ में ली जैसे कोई पुरस्कार मिला हो उसे। फिर उसने उससे लाश को बुरी तरह गोदना शुरू कर दिया। वह अपनी क्रूरता साबित करने का पक्का इरादा कर चुका था।

“आँखें खोल, आँखें” तभी मैडबुल ने हुक्म दिया। रंगरूट ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। फिर भावरहित चेहरे से उन चीरों को देखा जो उसकी दराँती के वार से उस लाश पर दिखने लगे थे। उन्हें देखकर उसकी रीढ़ में सिहरन सी दौड़ गई, पर उसने जाहिर नहीं होने दिया।

“नहीं, मेरी तरफ नहीं। उसे देखो। देखो। अब मारो।” यह सुनते ही उस लड़के के चिकने-चुपड़े चेहरे पर पसीना छलक आया। फिर भी वह रुका नहीं।

“बहुत बढ़िया। तुम बहुत आगे जाओगे।”

अपनी तारीफ से फूले हुए उस लड़के में जैसे क्रूरता का नया जुनून भर गया। अब उसने दराँती को चारों तरफ लहराना शुरू कर दिया। अब वह उन चुनिंदा रंगरूटों में से था, जिन्हें उनकी क्रूरता और नीचता की प्रवृत्ति की वजह से चुना गया था। उसे क्रूरता और धूर्तता से ही अपना प्रभाव छोड़ना था। और मौका पड़ने पर विपरीत परिस्थितियों में फँसने से बचाव का कौशल भी दिखाना था। सो, अब वह लड़का मैडबुल की निजी सेना रैड हाउंड्स का नया और सबसे युवा सदस्य बनने वाला था। वैसे, सरकार के लिए इस सेना का कोई अस्तित्त्व नहीं था। इन रंगरूटों को मैडबुल की निजी सेना में शामिल करने का मकसद सरकार को बताया ही नहीं गया था। बताया भी नहीं जा सकता था, क्योंकि वह मकसद ऐसा था कि उसे कभी सरकार की हरी झंडी मिल नहीं सकती थी।

“शाबाश, अब तुम रैड हाउंड्स के महत्त्वपूर्ण सदस्य बनने के रास्ते पर हो। तुम्हारा स्वागत है!”

मैडबुल संतुष्ट था कि उसे अब अपनी सेना के लिए ऐसे कुछ घटिया, गंदे और क्रूर सदस्य मिल गए हैं। उसका मानना था कि हत्या करते समय व्यक्ति को पूरी तरह अविचलित और व्यवस्थित रहना चाहिए। वह इस बात पर पुरजोर भरोसा रखता था कि जान लेने का कोई मौका छोड़ना नहीं है।

हालाँकि अभी माहौल बन ही रहा था कि माथेरा ने बीच में दखल दिया। माथेरा, मैडबुल का सहायक। हमेशा मैडबुल के लिए कोई बुरी खबर ही लाता था। इसलिए उसका नाम ही उसने ‘बुरी खबरों का खबरी’ रख दिया था। इस बार भी उसने बताया, “जेल निरीक्षण अधिकारी नाथन रे बैकाल पहुँच चुके हैं।” नाथन रे का नाम आते ही मैडबुल का लहजा एकदम से बदल गया। उसके तेवर सख्त हो गए। इस किस्म के बदलाव को पढ़ने के लिए मानव स्वभाव समझने वाले किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं थी। पुराने और खास प्रतिद्वंद्वी नाथन रे का सामना करने के ख्याल से कर्नल के चेहरे पर आक्रोश और जोड़-तोड़ के मिले-जुले भाव कोई भी पढ़ सकता था।

“कर्नल, क्या मैं साँप को आजाद कर दूँ?”

“किसके लिए?” घायल साँप को आराम से फिर पकड़ते हुए मैडबुल ने पूछा। छुए जाते ही बैगनी रंग के उस साँप ने अपने नुकीले दाँत दिखाते हुए फन उठाया। लेकिन उसने अपने भारी-भरकम हाथों से उसकी गरदन दबोच ली। इसके बाद उसे तब तक मसलता रहा, जब तक वह मर नहीं गया।

“मौत को बहुत ज्यादा इंतजार नहीं कराना चाहिए। उसकी लालसा का ख्याल करो,” मारने के बाद साँप को जूतों तले कुचलते हुए मैडबुल ने कहा।

“खून की प्यास ऐसी ही होती है। उसे पूरी तरह तृप्त होना चाहिए।” 
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

10- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : पुजारी ने उस लड़के में ‘उसे’ सूँघ लिया था और हमें भी!
9- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मुझे अपना ख्याल रखने के लिए किसी ‘डायन’ की जरूरत नहीं!
8- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह उस दिशा में बढ़ रहा है, जहाँ मौत निश्चित है!
7- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुअरों की तरह हम मार दिए जाने वाले हैं!
6- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : बुढ़िया, तूने उस कलंकिनी का नाम लेने की हिम्मत कैसे की!
5. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : “मर जाने दो इसे”, ये पहले शब्द थे, जो उसके लिए निकाले गए
4. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मौत को जिंदगी से कहीं ज्यादा जगह चाहिए होती है!
3  मायावी अंबा और शैतान : “अरे ये लाशें हैं, लाशें… इन्हें कुछ महसूस नहीं होगा”
2. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वे लोग नहीं जानते थे कि प्रतिशोध उनका पीछा कर रहा है!
1. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : जन्म लेना ही उसका पहला पागलपन था 

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