ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
कुछ इंसान अंतरात्मा के बिना ही जन्म लेते हैं। ऐसे लोगों को बस खत्म कर देने की जरूरत होती है। नाथन रे को पूरा भरोसा था कि उसने रोजी मैडबुल में इस किस्म के शख्स को ढूँढ लिया है। लेकिन जेल निरीक्षण अधिकारी नाथन रे जिस तरह बिना सूचना के, हड़बड़ी में बैकाल जेल पहुँचा, उसका इकलौता कारण इतना ही नहीं था। उसे एक अज्ञात शिकायती पत्र मिला था। इसमें विस्तार से बताया गया था कि जेल में कैसी-कैसी खतरनाक गतिविधियाँ चल रही हैं। इस चिट्ठी के तार कहीं से भी जुड़ नहीं रहे थे। लिखाई अस्पष्ट और व्याकुलता भरी थी। फिर भी नाथन रे को यह पत्र सच्चा लग रहा था। इसमें मैडबुल को विकृत और उन्मादी बताते हुए कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। एक जगह तो उसे ‘कमबख्त राक्षस’ तक लिखा गया था। लिखा था कि वह किसी ‘गिरोह के सरगना’ की तरह काम करता है। उसने अपनी तरह के उन्मादी अपराधियों की ‘निजी फौज’ बना ली है। ये लोग जेल के बाहर की दुनिया के लायक नहीं है। आशंका भी जताई गई थी कि किसी भयानक किस्म के अपराध की साजिश चल रही है। हालाँकि इसका खुलासा उसमें नहीं किया गया था कि वह किस किस्म का अपराध है। यह पत्र मिलने के बाद नाथन रे को जब आधिकारिक रूप से जेल में छापा मारने की इजाज़त नहीं मिली तो उसने अपने स्तर पर ही जोखिम लिया। फैसला किया और डिलीवरी वैन की तरह तैयार की गई एक गाड़ी में औचक निरीक्षण और तथ्य जुटाने के लिए जेल पहुँच गया।
कुछ देर में ही पुराने प्रतिद्वंद्वी आमने-सामने थे। उन्होंने एक-दूसरे को शक भरी निगाहों से देखा। बदबूदार हवा और घिनौने आदमी की संगति से नाथन को बेचैनी महसूस हो रही थी। उसका दम घुट रहा था। इस घुटन से छुटकारा पाने के लिए उसने एक कड़वी सी दवा मुँह में भर ली। पर वह इतनी तीखी थी कि जैसे ही वह पेट में पहुँची, उसे भयानक टीस सी उठी। इससे वह पीछे को गिरने को हुआ क्योंकि जोर का झटका लगा था। लेकिन फिर जैसे-तैसे सँभला और थोड़ी राहत भी महसूस हुई। दिमाग में दूर कोने से उठ रही उसकी बेचैनी भी थोड़ी शांत हुई।
“क्या मैं जान सकता हूँ कि अब कौन सा छोटा-मोटा बहाना मिला है, जिसे लेकर आप यहाँ निरीक्षण के दौरे पर आ धमके हैं?” इस सवाल के साथ मैडबुल की भारी-भरकम गरजदार आवाज ने शांति भंग की। उस वक्त ऐसा लगा जैसे कोई शिकारी कुत्ता शिकार को देखकर गुर्रा रहा हो। जबकि नाथन अब भी सोच में डूबा था। वह मैडबुल को देखकर सोच रहा था कि यह पहले की तुलना में कुछ ज्यादा ही हट्टा-कट्टा हो गया है। समय बीतने के साथ ही उसकी छाती और बाहों पर खूब चरबी चढ़ आई थी।
हाथों में चाबुक लिए मैडबुल की तस्वीर नाथन के जेहन में लगभग उभर ही आई थी। उस चाबुक की नोक पर मढ़ी धातु की फर्श पर रगड़ पड़ने से होने वाली हल्की आवाज भी वह सुन पा रहा था।
“काश, मैं कह पाता कि मुझे बड़ी खुशी हुई।”
“मैंने सुना है, हमारे नियमित निरीक्षक बिरजीत ममांग साहब घूस लेने के मामले में निलम्बित कर दिए गए हैं।”
“गलत काम के नतीजे ऐसे ही होते हैं,” हामी भरते हुए नाथन ने जवाब दिया।
“होने ही चाहिए, अगर कोई निरा बेवकूफ है तो जरूर उसके लिए ऐसे ही नतीजे होने चाहिए। बेवकूफ इंसान ही दौलत देखकर अपने होश-ओ-हवास गँवा देते हैं। खैर, मुझे मालूम है कि आप यहाँ बिरजीत ममांग के बारे में बात करने तो आए नहीं हैं? है न?”
“बैकाल के हालात के संबंध में एक गंभीर शिकायत दर्ज कराई गई है।”
“फिर कोई सामाजिक कार्यकर्ता? ये सामाजिक कार्यकर्ता भी बहुत भावुक होते हैं! उनकी कल्पनाएँ भी जब-तब उछाल मारती रहती हैं। वे जो सच्चाई बयाँ करते हैं, उस पर भरोसा करने से पहले हर किसी को पूरी जाँच-पड़ताल कर लेनी चाहिए। पूरी पुख्तगी किए बिना उन पर भरोसा नहीं करना चाहिए। मैं खुद को और अपने लोगों को भी ऐसी भावनात्मक बातों पर भरोसा करने की इजाजत नहीं देता। अगर आप मुझसे पूछें तो मैं यही कहूँगा कि ऐसी बातों पर भरोसा करना जुए का दाँव खेलने जैसा है।” मैडबुल इस वक्त एकदम सामान्य लग रहा था लेकिन नाथन उसे बहुत अच्छी तरह जानता था। वह जानता था कि वह अभी ऐसे व्यक्ति के साथ खड़ा है, जिसके दिमाग में जहर भरा हुआ है।
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
11- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : तुझे पता है वे लोग पीठ पीछे मुझे क्या कहते हैं…..‘मौत’
10- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : पुजारी ने उस लड़के में ‘उसे’ सूँघ लिया था और हमें भी!
9- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मुझे अपना ख्याल रखने के लिए किसी ‘डायन’ की जरूरत नहीं!
8- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह उस दिशा में बढ़ रहा है, जहाँ मौत निश्चित है!
7- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुअरों की तरह हम मार दिए जाने वाले हैं!
6- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : बुढ़िया, तूने उस कलंकिनी का नाम लेने की हिम्मत कैसे की!
5. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : “मर जाने दो इसे”, ये पहले शब्द थे, जो उसके लिए निकाले गए
4. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मौत को जिंदगी से कहीं ज्यादा जगह चाहिए होती है!
3 मायावी अंबा और शैतान : “अरे ये लाशें हैं, लाशें… इन्हें कुछ महसूस नहीं होगा”
2. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वे लोग नहीं जानते थे कि प्रतिशोध उनका पीछा कर रहा है!
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