‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

अंबा ने आड़ लेने के लिए छलाँग लगा दी।

उसके पास अब 8-10 कारतूस ही बचे थे। तभी, बाईं ओर से एक गोली और आई। हमलावर घायल था या नहीं, पर वह गोलियाँ दागता जा रहा था। साथ ही, उसकी बंदूक से उठता धुआँ बता रहा था कि उसने ऊँची जगह पर आड़ ले रखी है, यही कोई 50 गज की दूरी पर।

ऐसे ऊँचाई पर रहते हुए अगर वह उस पर गोलियाँ चलाता रहा तो वह मुश्किल में घिर सकती थी। लिहाजा, उसने वह थैला खोल लिया, जिसमें बंदूक से दागे जाने वाले गोले रखे थे।

वह अभी उनमें से एक गोला निकाल ही रही थी कि सामने से दूसरी गोली सनसनाती हुई आई और पत्थर से जा टकराई। उससे बचने के लिए वह फुर्ती से पीछे लेट गई। फिर तेजी से गोले वाला खोल उठा लिया।

यही कोई 20 गेज के खोल में गोले अच्छी तरह से रखे थे। अंबा को अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हुआ! वह बहुत भारी था। अंबा ने उसका ढक्कन पकड़ा और अँगूठे की मदद से बारूद भरकर उसे चार्ज कर दिया। एक बार में 20 ग्रेन बारूद। इस तरह 80 ग्रेन बारूद भरा। बंदूक के लिए यह बहुत भारी सामग्री थी।

वह मुस्कुरा उठी। उसकी बंदूक अब एक छोटी तोप बनने वाली थी। वह जानती थी कि भारी गोला तेजी से और दूर तक मार करता है। इस तरह वह अब 200 गज दूर तक तबाही मचा सकती थी। उसके नथुनों में धुआँरहित विस्फोटक की गंध भर गई थी। घाटी की काली मिट्‌ भी उस पर लिपटी थी। सिर में भीषण दर्द हो रहा था। भौंहें सूजकर दोगुने आकार की हो गई थीं। इसके बावजूद उसकी मुस्कुराहट बढ़ गई थी। शायद उसे अब इस संघर्ष से जिंदा बच निकलने की संभावना नजर आने लगी थी।

अचानक उसे लगा कि उसकी पूरी थकान गायब हो चुकी है। अब उसे पहले अपने साथ हुए हर छल-कपट का हिसाब चुकता करना था। सो, उसने बॉक्स से एक गोला निकाला। एक हाथ से बंदूक की नली को आड़ के खाँचे में रखा और दूसरे हाथ से गोले के खोल में अधिक छर्रों के साथ ज्यादा बारूद भर दिया। फिर खोल को अच्छे से बंद किया, बंदूक में गोले को डाला और घाटी की ओर फायर कर दिया। सामने पत्थर से गोले के टकराते ही तेज धमाके के साथ हर तरफ धुआँ-धुआँ हो गया। पत्थर टुकड़े-टुकड़े हो गया।

तुरंत ही उसे नजदीक से एक परिचित आवाज सुनाई दी, “साली चुड़ैल, क्या बस इतना ही है तेरे पास!?”

“पास आ जा कुत्ते। तुझे खुद पता चल जाएगा।” उसने जोर की आवाज में पलटकर जवाब दिया।

“अरे रे रे रे! मैं तो डर गया! तूने मुझ पर ये जो केक का गोला फेंका है, उससे तो डर गया मैं?” मथेरा ने उसका मजाक उड़ाया। फिर बोला, “अभी ये कंकड़-पत्थर फेंक रही है, फिर नौटंकी दिखाएगी।”

“साले हरामी, दम है तो खुद आकर देख क्यों नहीं लेता? हो सकता है तू ही सही हो, या फिर गलत भी।” अंबा ने उसे चुनौती दी।

“हमारी भी यही मंशा है। और चुड़ैल, जिस तरह हम तलाशी लेते हैं न, उससे तू खुश तो बिल्कुल नहीं होगी।” उसकी आवाज से उसके खूनी इरादे साफ झलक रहे थे।

“वह सब मैं देख लूँगी कुत्ते। पर तू क्यों डर रहा है? छिप क्यों रहा है?” उसने जोर से चीखकर उसे उकसाया। ताकि वह बाहर निकले और वह उसे हमेशा के लिए मौत की नींद में सुला सके। मगर उसे आश्चर्य था कि वह और उसके आदमी बाहर निकलने में इतना वक्त क्यों लगा रहे हैं! कितना और समय लगाएँगे? लिहाजा उसने थोड़ी देर इंतिजार किया और फिर अगला गोला दाग दिया। फायर होते ही हवा में गोले के छर्रे ऐसे बिखर गए, जैसे अफीम के बीज बिखेरे गए हों।

“सुन लड़की। हम आपस में एक सौदा कर लेते हैं।” मथेरा ने इसी बीच चीखकर कहा।

यह सुनते ही वह सोचने लगी- इसे सौदा करने की जरूरत क्यों आन पड़ी? वह शायद अपनी रणनीति बनाने के लिए थोड़ा समय लेना चाहता है।

वह सिर्फ मुझे मारना चाहता है- उसने सोचा – मेरे शरीर के किसी अंग, शायद सिर को मेरी मौत के सबूत के तौर पर मैडबुल के सामने ले जाने की तैयारी में है। तभी, उसे फिर माथेरा की पेशकश सुनाई दी। लेकिन उसे यह पेशकश नहीं माननी थी। वे धोखेबाज लोग थे।

लेकिन वे उसे आखिर ले किसलिए जाएँगे? ऐसा सोचते हुए उसे गुस्सा भी आ रहा था। शायद वे उसे बेवकूफ समझते थे, जिसे दुनियादारी की समझ ही नहीं है। वह उन चालबाज हरामियों पर भरोसा नहीं कर सकती थी। वे उसे जिंदा पकड़कर ले जाएँगे और गाँववालों के सामने उसे मार डालेंगे। जिससे गाँववाले डरकर अपनी जमीनें छोड़कर चले जाएँ। अलबत्ता, ऐसे ख्याल उसे दिमाग लाने की अभी जरूरत नहीं थी।

अब उसने अगला गोला निकाल लिया। इससे वह बाजी पलटने वाली थी। यह ज्यादा नहीं तो कम से कम 70 गज तक तो मार कर ही सकता था। सो, उसने बंदूक की नली टिकाकर अपना निशाना साध लिया।

“बता, क्या शर्तें हैं तेरी?” उसने सवाल किया।

“मेरी तरफ से ज्यादा कुछ नहीं होगा” जवाब में मथेरा की आवाज आई।

“तो सामने आकर बात कर। देर किस बात की?”

“तेरा कोई गलत इरादा तो नहीं है न? तू मेरे सिर में गोली तो नहीं मार देगी?”

“बार-बार एक ही बात बोलना बंद कर।”

“तो मैं क्या मानूँ, तू सौदे के लिए तैयार है?”

“दिक्कत ये है कि तू इस सौदे पर कायम रहेगा क्या?”

फिर थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई।

वह देर क्यों कर रहा था? वह जानती थी कि इसकी एक ही वजह है, वह उसे बातों में लगाए रहेगा और उसके साथी चुपचाप ऊपर से आकर उस पर हमला बोल देंगे। उसके बाईं तरफ थोड़ी दूरी पर रेत और पत्थर सरक कर घाटी में गिरे भी थे।

तभी उसने देखा कि मथेरा पूरे आत्मविश्वास के साथ पत्थर की आड़ बाहर निकल आया। पहाड़ों के अभ्यस्त अपने मजबूत पैरों से वह कभी छोटे तो कभी लंबे डग भरते हुए बढ़ने लगा। शायद वह अंबा की बंदूक की जद का अंदाजा लगाना चाहता था या फिर उसने मान लिया था कि उसके पास गोला-बारूद बचा ही नहीं है।

“तुझे क्या लगता है डायन, तेरा गोला-बारूद मेरी गोलियों से ज्यादा असरदार है? या ये कि तेरी हडिडयाँ मेरी गोलियों को रोक पाएँगीं? सुन, तेरा शरीर छोटे-मोटे झटके भले बर्दाश्त कर लेता हो, मेरे हमले की लहर नहीं झेल पाएगा। मेरी गोलियों का सामना करना उन लड़कियों के बस में तो बिल्कुल भी नहीं है, जो डायन होने का नाटक किया करती हैं!”

“मुफ्त का ज्ञान देने के लिए शुक्रिया। वैसे, तेरे कुत्तों को इसकी ज्यादा जरूरत है।”

“अरे देखो, इसके मुँह में तो जुबान भी है! डायन बोलती भी है!”

“तुझे और तेरे आदमियों को तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि तुम सब अब भी साँसें ले रहे हो। पूरे एक हिस्से में सही सलामत हो। तो, अभी तेरे आदमी मेरे पीछे आते रह सकते हैं। मगर इससे कुछ होगा नहीं। तू और तेरे आदमी केवल थकेंगे और थकते ही जाएँगे। और तुझे पता है, इससे भी भयानक बात क्या है? तू या तेरे लोग अगर जिंदा बच भी गए तो अपना हाथ, पैर या शरीर का कोई न कोई हिस्सा गँवाकर ही यहाँ से लौटेंगे।”

“अच्छा, अगर तू इतनी ही बहादुर है तो हम कायरों से दुबक कर क्यों बैठी हैं? वैसे तू जानती है, मुझे क्या लगता है? तेरे पास अब गोलियाँ नहीं बची हैं और तू डरी हुई है। इसीलिए हताश होकर अपनी बंदूक से ये छोटे-मोटे छर्रे वाले गोले दाग रही है।”

अंबा ने इस बार कोई जवाब नहीं दिया। इसके बजाय वह पहाड़ी बकरी की तरह तेजी से घाटी के ऊपरी हिस्से में चढ़ गई। वहाँ तक पहुँचने में उसका शरीर पसीना-पसीना और गर्मी से लाल हो गया।

#MayaviAmbaAurShaitan
—-
(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
—- 
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

56 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : समय खुशी मनाने का नहीं, सच का सामना करने का था
55 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पलक झपकते ही कई संगीनें पटाला की छाती के पार हो गईं 
54 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जिनसे तू बचकर भागी है, वे यहाँ भी पहुँच गए है
53 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम कोई भगवान नहीं हो, जो…
52 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा, ज़हर को औषधि, औषधि को ज़हर बना देती है
51 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : न जाने यह उपहार उससे क्या कीमत वसूलने वाला है!
50 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे लगा, जैसे किसी ने उससे सब छीन लिया हो
49 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा ज्यादा हो जाए, तो दवा जहर बन जाती है
48 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायनें भी मरा करती हैं, पता है तुम्हें
47 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह खुद अपना अंत देख सकेगी… और मैं भी!

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

2 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

4 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

5 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

6 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

7 days ago