मायावी अम्बा और शैतान : वे तो मारने ही आए थे, बात करने नहीं

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

गोलियों और संगीनों के साथ जब वे पहली बार उनके पीछे लगे, तभी से वह लोग भाग रहे थे। रुके नहीं थे। हालाँकि गोलियाँ उनकी चीखों से भी दोगुनी रफ्तार से दागी जा रही थीं। उनके शरीरों को छेदते हुए भीतर धँस रहीं थीं। हड्डियों का उनका ढाँचा छिन्न-भिन्न कर रहीं थीं। उनकी खोपड़ी खोल रहीं थीं। उनके जिस्मों से खून की धार ऐसे बह रही थी, जैसे रेशम के कीड़े से लाल रेशम निकलता है। फिर भी वे रुके नहीं थे।

मुखिया लामा का बेटा बगल के दरवाजे से भागा और नदी में कूद गया। उस पार जाने की कोशिश करने लगा कि तभी सैनिकों ने उसे देख लिया। उस पर गोलियाँ चला दीं। वह जख्मी हो गया। पानी के तेज बहाव के साथ बहने लगा तो घबराकर एक चट्‌टान का सहारा लेकर किसी तरह बाहर आ गया।

“गोली मत मारना..गोली मत चलाना… मैं आ रहा हूँ, मैं समर्पण कर रहा हूँ।”

वह जान बख्श देने की भीख माँग रहा था। उसके घावों से खून बह रहा था। लेकिन सैनिकों ने उस पर दया नहीं की। वे उसे घसीटकर कर्नल के पास ले गए। कुटिल मुस्कान के साथ कर्नल मैडबुल ने उस पर बंदूक तान दी। फिर एक तेज आवाज हुई और मुखिया के बेटे का चेहरा फट गया। कर्नल के बाकी सैनिक भी कुछ देर तक उस पर निशाना साधते रहे। गोली दागते रहे। मानो गोली चलाने का अभ्यास कर रहे हों। वे सब पागल हो गए। उस लड़के जिस्म के भीतरी हिस्सों को नोचकर निकालने लगे। इसके बाद उसके शरीर के खोल में बारूद भरने लगे। जैसे वह कोई तकिया हो और उसमें वे रुई भर रहे हों। वे मुखिया लामा की पत्नी को भी पकड़ लाए। जब वह घर की खिड़की से कूदकर भागने की कोशिश कर रही थी, तभी पकड़ी गई। उस वक्त वह दूसरी मंजिल पर थी। उसे देखते ही सैनिक उस पर टूट पड़े। खींचकर उसे कर्नल के पास नीचे ले आए।

“इसे घर के भीतर ले जाओ।” इतना सुनते ही सैनिक उसे ले जाने लगे। बचाव में उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। जानवरों की तरह वह सैनिकों को काटने लगी। मगर तभी बंदूक के हत्थे से उसके सिर पर जोर की चोट पड़ी। एक तरह से उसके लिए अच्छा ही हुआ क्योंकि इसके बाद जो कुछ हुआ, उसे देखने के लिए कम से कम वह होश में तो नहीं थी। जब उसे होश आया, तो उसने खुद को निर्वस्त्र हालत में पाया। उसकी कमर के नीचे का हिस्सा खून से लथपथ था। चेहरे पर नोचने और जाँघों पर काटने के निशान थे।

“ये कालीन देखा तुमने? ये भालू के चमड़े से बना है। सब खराब कर दिया।” इसके बाद मैडबुल ने कुछ देर सोचा और फिर गोलियों से उस औरत का शरीर छलनी कर दिया। उसके हाथ में बच्चा था। वह छूटकर पानी में जा गिरा। कुछ देर छटपटाया। नन्हे शरीर में कैद आत्मा को बचाने के लिए उसने अपने छोटे-छोटे हाथ पानी में मारने शुरू कर दिए। कुछ ही पलों में जीवन का सबसे बड़ा सीख लिया उसने। अस्तित्त्व बचाने के लिए संघर्ष का सबक। उसका संघर्ष देख मैडबुल ने हुक्म दिया, “बच्चे को कोई भी गोली नहीं मारेगा।”

“अगर ये तैर कर किनारे आ गया, तो यह जिंदा रहेगा”, महानता सी दिखाते हुए उसने ऐलान किया।

तो अब सैनिकों में शर्त लगने लगी – पानी उथला है। केवल आधा फीट ही तो गहरा होगा। वह बच सकता है। बच जाएगा। बचने-न बचने की संभावना आधी-आधी ही लगती है…।

इस बीच, बच्चा तैरता रहा। लगातार संघर्ष करता रहा। जान बचाने के लिए जूझता रहा। तभी उसने ऊपर की ओर देखा और गहरी साँस छोड़ी। वह एकटक मैडबुल को देख रहा था। मानो आँखों ही आँखों में उससे खुद को बचा लेने की मिन्नत कर रहा हो। उसका शरीर पानी में अब भी ऊपर-नीचे हो रहा था। जूझते-जूझते वह लगभग किनारे तक आ गया था। वह नवजात बच्ची थी। मैडबुल ने उसे देखा और अचानक ही छोटे-मोटे शिकार पर निशाना लगाने के काम आने वाली अपनी चमचमाती बंदूक निकाल ली। उसमें गोलियों की जगह छह इंच की कीलें भरीं और उस बच्ची पर फायर कर दिया। एक कील सीधे उस नवजात की गर्दन में जाकर धँस गई। खून की तेज धार से पानी लाल हो गया। किनारे आने से पहले ही उसकी जान निकल गई।

वे तो यहाँ मारने ही आए थे। बात करने के लिए नहीं। और मारने के लिए उन्हें कोई कारण नहीं चाहिए था।

मैडबुल के आदमियों ने तो हत्याओं से भी ज्यादा बर्बरता की। उन्होंने जिनको शिकार बनाया, उनके शरीरों को चीर-फाड़ दिया। उनकी अंगूठियाँ निकालने के लिए अँगुलियाँ तोड़ दीं। जबकि गाँव वाले तो वैसे भी अपने गहने उन्हें सौंप देने को तैयार थे। फिर भी ऐसा लगता था, जैसे हड्डियों के टूटने की आवाज सुनकर उन सैनिकों को मजा आता था। उन्होंने सोने की बालियाँ निकालने के लिए कान काट दिए। बाल नोंच डाले। कुछ ग्रामीण जान बचाने के लिए पेड़ों की खोह में जा छिपे। पर उनकी यह कोशिश ऐसी साबित हुई, जैसे उन्होंने खुद ही पेड़ों में अपनी कब्र बना ली हो। कुछ अन्य ग्रामीण कीचड़ तक में जा घुसे। लेकिन उस कीचड़ का रंग भी कुछ मिनटों में काले से लाल हो गया।

आखिर में वे एक आदिवासी को जिंदा पकड़ने में भी सफल हो गए। वह हट्टा-कट्‌टा था। उसके चेहरे और शरीर की चमक बता रही थी कि वह खासा भी तंदुरुस्त था। उसे इस हाल में देखकर वे और भड़क गए। उसे रौंद डालने के लिए आतुर हो गए। इरादा कर लिया और उस पर लात-घूँसों की बरसात कर दी। फिर जी भर कर पीटने के बाद एक सैनिक ने उसके कान काट कर अपनी जेब में रख लिए। जैसे कोई ट्रॉफी जीतकर रख लेता है। इतने अत्याचार झेलने के बाद वह आदिवासी अब मर चुका था। यह देख उसकी विधवा दौड़ती हुई आई और रोते-चिल्लाते उन लोगों को कोसने लगी। उन्हें उनके बुरे अंत की बद्दुआएँ देने लगी। लेकिन मैडबुल और उसके आदमियों पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि मैडबुल तो अब तक के अभियान से पूरी तरह संतुष्ट नजर आ रहा था। बस, उसे एक ही मलाल था कि अभियान के लिए हर तरह की गोपनीयता बरतने के बाद भी तनु बाकर एक बार फिर उसके हाथ से निकल भागा था।

“तनु बाकर फिर भाग गया। क्या तुमने हमें धोखा दिया है?” मैडबुल ने सुशीतल की ओर देखकर सवाल किया। वह मौत के भय से पहले ही काँप रहा था।

“मैंने कोई धोखा नहीं दिया। मैं धोखेबाजी नहीं करता। सच कहता हूँ। माँ कसम”, सुशीतल काँपते हुए बोला।

“वाह, क्या बात है। देखो तो जरा, ये कौन कह रहा है! वह, जो अपने ही लोगों के साथ गद्दारी कर चुका है।” यह कहते हुए मैडबुल ने सुशीतल पर नफरत भरी नजर डाली। यह देख सुशीतल भीतर तक हिल गया। उसके चेहरे पर पल भर में ही इतने रंग आए और गए कि कौन सा कब आया और गया, उसे पता भी नहीं चला। खुद को संयत रखने की कोशिश में वह हकलाने लगा।

तभी मथेरा ने कर्नल को भरोसा किया, “हम उसे खोज लेंगे। वह ज्यादा दूर नहीं गया होगा। मौसम एकदम से बदल गया है। वह पहाड़ों में ही कहीं आस-पास छिपा होगा।”

“वह लौटकर नहीं आएगा। क्या करने आएगा यहाँ? उसके कोई परिवार, बीवी-बच्चे तो हैं नहीं। और अब तक तो उसके पास गाँव में हमारी मौजूदगी की खबर भी पहुँच चुकी होगी।”

उसकी बात पर किसी ने प्रतिक्रिया नहीं दी। सब जानते थे कि कोई भी प्रतिक्रिया उसे और गुस्सा दिलाने के लिए पर्याप्त होगी। इसलिए सब चुप रहे। कुछ देर बाद मैडबुल ने ही चुप्पी तोड़ी। उसने मथेरा से कहा कि वह ‘होरी के जंगलों की कथित डायन’ के बारे में पूछताछ करे।

“मुझे उस तथाकथित डायन -पटाला- के बारे में जानना है। आखिर लोग उससे इतना डरते क्यों हैं?”

“मैंने इस बारे में काफी सोचा और इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वह बहुत धूर्त, चालाक महिला है। लोगों को बेवकूफ बनाने की वह कुछ पुरानी तरकीबें जानती है। कोई भी चालाक आदमी थोड़ा दिमाग लगा कर यह सब कर सकता है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो बताओ – क्या वह होरी के पहाड़ों के नीचे से पूरा सोना निकाल नहीं लेती? वह जंगलियों की तरह कुदरत की दया पर कंद, मूल, फल खाकर क्यों रहती? जानवरों को मारकर खाने की उसे क्या जरूरत पड़ती? रानी-महारानी की तरह न रहती? नहीं, वह कोई डायन नहीं है और न वह अंबा ही है। मैं जानता हूँ, इस वक्त वे दोनों हम पर हँस रही होंगी क्योंकि अभी हम उनके बारे में बस बात ही कर रहे हैं। पर आखिर में तो हँसी हमारी ही गूँजेगी और जीत भी।”  

#MayaviAmbaAurShaitan

—-
(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
—- 
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

37 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम्हारे लोग मारे जाते हैं, तो उसके जिम्मेदार तुम होगे
36 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं
35- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : इत्तिफाक पर कमजोर सोच वाले लोग भरोसा करते हैं
34- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी
33- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह वापस लौटेगी, डायनें बदला जरूर लेती हैं
32- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह अचरज में थी कि क्या उसकी मौत ऐसे होनी लिखी है?
31- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब वह खुद भैंस बन गई थी
30- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून और आस्था को कुरबानी चाहिए होती है 
29- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मृतकों की आत्माएँ उनके आस-पास मँडराती रहती हैं
28 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह तब तक दौड़ती रही, जब तक उसका सिर…

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

2 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

4 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

5 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

6 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

7 days ago