मेरे प्रिय अभिनेताओ, मैं जानता हूँ, कुछ चिट्ठियों के ज़वाब नहीं आते, पर ये लिखी जाती रहेंगी!

दीपक गौतम, सतना मध्य प्रदेश

मेरे प्रिय अभिनेताओ

इरफान खान और ऋषि कपूर साहब! मैं आप दोनों से कभी नहीं मिला, लेकिन यूँ लगता ही नहीं कि आपसे कोई वास्ता नहीं है। आपको दुनिया को अलविदा कहे पाँच साल गुजर गए। सच कहते हैं लोग कि वक़्त के पंख लगे होते हैं। आपसे रू-ब-रू मुलाक़ातें भले न हुई हों, लेकिन आपका पर्दे पर जिया हर किरदार मेरे दिल के करीब रहा है। मैं फिल्म समीक्षक नहीं हूँ। बस, आपके अभिनय का मुरीद हूँ। इसलिए आपके किरदारों के माध्यम से आपसे हुए ज़ेहनी जुड़ाव के मार्फ़त ही आपको पत्र संप्रेषित कर रहा हूँ। मैं आपकी फिल्मों के नाम लेकर एक-एक किरदार पर भी बात कर सकता हूँ, लेकिन आप दोनों की अदाकारी के किस्से मेरे हिस्से में जितने भी आए हैं, वो अब यहाँ दर्ज़ करने में ये पत्र बहुत लम्बा हो जाएगा। मुझे पता है कि इस ख़त का कोई ज़वाब नहीं आएगा, लेकिन मेरा लिखा एक-एक शब्द आप दोनों को शब्दांजलि है। उम्मीद है कि आप दोनों जहाँ भी होंगे, अपनी ख़ुशबू लुटा रहे होंगे, क्योंकि आपके किरदारों में जो अभिनय की ख़ुशबू रची बसी थी, वो कभी ख़त्म नहीं हो सकती। मुझे लगता है कि आपने अभिनय को नहीं चुना, बल्कि अभिनय ने आप दोनों को चुना था। जैसे कुछ कहानियाँ अपने किरदारों को खुद चुनती हैं, ठीक वैसे ही अभिनय ने आपको चुना। मेरे लिए आप दोनों के जिए किरदारों से जुड़ना एक रूहानी सा एहसास रहा है। 

मेरे प्रिय अभिनेताओ

मुझे लगता है कि एक कलाकार जितने किरदार जीता है, उसके दुनिया से जाने के बाद वे सारे किरदार उसके चाहने वालों के आस-पास तैरने लगते हैं। जैसे वहाँ की हवा, वह उन तमाम यादों का धुआँ हो, जिसमें फिलवक़्त आप साँस ले रहे हैं। मेरे लिए अपने चहेते कलाकारों को याद करना तो कुछ ऐसा ही है। उनके जीवित रहते तो हम उन्हें देखते-सुनते हुए यादों का समन्दर रचते रहते हैं, लेकिन उनके जाने के बाद बस उस एक धुन्ध में होते हैं, जो छटती नहीं है। उनके बोलने का अन्दाज, हाव-भाव, उनके पर्दे पर जिये किरदार सब, आस-पास नाचते रहते हैं। मन के पर्दे पर एक अलग ही तरह की फ़िल्म चल रही होती है, जिसकी रील सालों से भीतर थोड़ा-थोड़ा करके जमा हो रही थी। और अब उस फिल्म का पटाक्षेप होने जा रहा है, उसका आख़िरी दृश्य जैसे कुदरत ने फिल्मा दिया है। बस, यही उसका अन्त है।

मेरे प्रिय अभिनेताओ

आप जैसे कलाकारों के जाने के बाद मन बहुत भारी हो जाता है। इसलिए नहीं कि हमारे चहेते कलाकारों के अभिनय ने हमारे अन्दर घर कर लिया है या उनके जिये किरदार हमारी रूह पर अपने दस्तख़त करके चले गए हैं। इसलिए भी नहीं कि दुनिया में घटी कुछ सच्ची घटनाओं पर बनी फिल्मों से वे हमसे और हमारे अन्तस से रू-ब-रू हुए थे, या कभी हमें गहरे तक झकझोरा था। वह इसलिए कि उनके हर जिये किरदार को एक आम दर्शक ढाई या तीन घंटे में कई बार ख़ुद भी पूरा का पूरा जी जाता है। वह उससे एक ऐसा रिश्ता कायम कर लेता है, जो कभी टूटता ही नहीं। चहेते कलाकार की हर वह देखी फिल्म जिसे हमने जिया हो, वह किरदार जो हमारे दिल के करीब रहा हो, यूँ लगता है जैसे वह आपसे बातें करता है। हम उस किरदार ही नहीं, बल्कि पूरी शख़्सियत से अपना अदद रिश्ता बना लेते हैं। ये अनाम रिश्ता भी केवल हमारा अपना ही है। उसे केवल हम ही जीते हैं। ऐसे रिश्तों को शायद किसी और की जरूरत भी नहीं होती। वह तो ख़ुद ही जिये जाते हैं। एक आम आदमी फिल्मी पर्दे पर अपने चहेते नायकों के साथ कहानी के किरदारों को कुछ ऐसे ही जी जाता है कि उसके जाने के बाद सब कुछ छूट गया सा लगता है, टूट गया सा लगता है। ऐसे रिश्तों का बस, एक आधार होता है, हमारी भावनाएँ जो हमें हर उस किरदार से जोड़ देती हैं, जो पूरी ईमानदारी और सच्चाई से जिया जाता है। कहते हैं कि एक उम्दा किरदार की ख़ुशबू से पूरी कहानी ही महक उठती है। आप दोनों कलाकारों ने कई कहानियों को अपने अभिनय से यूँ गढ़ दिया है कि वे अपने वक़्त में अदाकारी का सबसे खूबसूरत हस्ताक्षर बन गई हैं।

मेरे प्रिय अभिनेताओ

मेरे अन्दर भी अपने चहेते किरदारों और उन कलाकारों के अनाम रिश्तों का ऐसा ही संसार है, जो हर उस अपने कलाकार के दुनिया से जाने के बाद दरक जाता है। जैसे आप दोनों के जाने के बाद हुआ था। बीते कुछ सालों में इसमें कई दरारें पड़ गई हैं। साल दर साल अपने कई चहेते कलाकारों का जाना हमेशा अवसाद भरा रहता है। आपका जिया हर वो किरदार जो हमारे दिलों के करीब है, उससे ये अनाम रिश्ते हम सभी ने बनाए हैं। मेरे जैसे और भी कई होंगे, जिन्होंने बिना जवाब पाने की इच्छा के अपने किरदारों से कभी बतकही भी की होगी तो कभी मन ही मन ढेर सारी चिट्ठियां भी लिखी होंगी। ये और है कि लिखी गई ऐसी चिट्ठियों के कभी जवाब नहीं आते …!! मैं भी बस उसी कड़ी में आप दोनों को ये एक और खत लिख रहा हूं।

मेरे प्रिय अभिनेताओं, जवाब पाने की इच्छा के बिना भी ये चिठ्ठियां हमेशा लिखी जाती रहेंगी, क्योंकि संवेदनाओं का संसार बड़ा निराला है। भावनाएँ बहुत प्रबल होती हैं। वे कुछ भी करा सकती हैं। जैसे मेरे हाथ से यह चिट्ठी लिखवा डाली, यह जानते हुए भी इसका कोई ज़वाब कभी नहीं आना है। लेकिन क्या करें, ऐसे अनाम रिश्तों की शायद यही खूबसूरती है कि वो खामोशी से अपने पूरे हासिल के साथ बीत जाते हैं। जाते-जाते सबक दे जाते हैं कि कभी अलविदा न कहना…!

– आप दोनों की अदाकारी का एक मुरीद

© दीपक गौतम

#irfankhan #rishikapoor #स्मृतिशेष 

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(दीपक मध्यप्रदेश के सतना जिले के गाँव जसो में जन्मे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में ‘मास्टर ऑफ जर्नलिज्म’ (एमजे) में स्नातकोत्तर किया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में कार्यरत रहे। साथ में लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए रचनात्मक लेखन भी किया। इन दिनों स्वतंत्र लेखन करते हैं। बीते 15 सालों से शहर-दर-शहर भटकने के बाद फिलवक्त गाँव को जी रहे हैं। बस, वहीं अपनी अनुभूतियों को शब्दों के सहारे उकेर देते हैं। उन उकेरी अनुभूतियों काे #अपनीडिजिटलडायरी के साथ साझा करते हैं, ताकि वे #डायरी के पाठकों तक भी पहुँचें। यह पत्र भी उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।) 

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