टीम डायरी
सूचना है कि भारत सरकार अब देशभर में एक समान मानक समय (आईएसटी यानि भारतीय मानक समय) लागू करने की तैयारी कर रही है। यह विषय चूँकि केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अधीन है, इसलिए उसने मामले से जुड़े नियम अधिसूचित कर दिए हैं। इनके मुताबिक, पूरे देश में सभी कानूनी, प्रशासनिक, व्यावसायिक और आधिकारिक दस्तावेज़ आईएसटी को आधार मानते हुए तैयार किए जाएँगे। सिर्फ़ ज्योतिष-खगोल विज्ञान, नौवहन (नेविगेशन) और वैज्ञानिक शोधों को इस नियम से छूट मिलेगी। लेकिन वह भी सरकार की पूर्व अनुमति से, कुछ विशिष्ट मामलों में ही। बताया जाता है कि इस बाबत तकनीकी तैयारियाँ अन्तिम चरण में हैं।
और तकनीकी तैयारियों में क्या हो रहा है? फरीदाबाद की राष्ट्रीय भौतिकीय प्रयोगशाला (एनपीएल) में एक केन्द्रीय आण्विक घड़ी (न्यूक्लियर क्लॉक) लगाई गई है। उसे भारत की ‘नाविक’ उपग्रह प्रणाली से जोड़ा गया है। इससे यहाँ की आण्विक घड़ी को ‘नाविक’ से सीधे संकेत प्राप्त होंगे। इसका परीक्षण हो चुका है। इसी तरह की आण्विक घड़ियाँ देश के चार शहरों- बेंगलुरू, अहमदाबाद, भुवनेश्वर और गुवाहाटी में लगाई जा रही हैं। इन घड़ियों को एनपीएल की केन्द्रीय आण्विक घड़ी से जोड़ा जा रहा है। इनमें गुवाहाटी में आण्विक घड़ी लगाने का काम बकाया है। अन्य शहरों में हो चुका है। फिर सभी घड़ियाँ समान रूप से आईएसटी पर मिलाई जाएँगी।
इस तकनीकी व्यवस्था को लागू करने में सरकार और एनपीएल के साथ भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) सक्रिय भागीदारी निभा रहा है। जैसे ही तकनीकी काम पूरा हुआ, आईएसटी से जुड़े नियम लागू कर दिए जाएँगे। यानि अधिक से अधिक दो-तीन महीने मान लीजिए। यद्यपि यहाँ दो-तीन सवाल हो सकते हैं। पहला- ये ‘नाविक’ क्या है? और आण्विक घड़ी क्या बला है? दूसरा- क्या अभी देश में तमाम घड़ियाँ जो अलग-अलग जगहों पर समय बताती हैं, उसमें फ़र्क होता है? इनमें पहले सवाल का ज़वाब यूँ है कि ‘नाविक’ का पूरा नाम है- नेविगेशन विद इंडियन कॉन्सटिलेशन अर्थात् भारतीय तारामंडल के अनुरूप नौवहन या मार्गदर्शन। यह आठ उपग्रहों की एक पूरी प्रणाली है। इन उपग्रहों को इसरो ने 2013 से 2018 के बीच प्रक्षेपित किया था। इन सभी का मिला-जुला नाम ‘नाविक’ 2016 में रखा गया था। यह जीपीएस (वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली) की तरह काम करता है। दुनिया में सर्वाधिक जीपीएस का इस्तेमाल होता है। उसी पर ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) तय है, जो विश्व में मान्य है।
इसके बाद बात करते हैं ‘आण्विक घड़ी’ की तो यह भी एक तरह की घड़ी है। लेकिन यह घड़ी अणुओं की बारम्बारता (फ्रिक्वेंसी) का इस्तेमाल करते हुए समय बताती है। इससे इसके बताए समय की सटीकता इतनी अधिक हो जाती है कि सेकेंड से नीचे मिलिसेकेंड और उससे भी नीचे माइक्रोसेकेंड तक भी ग़लत नहीं होते। मतलब इसे एक बार जिस किसी भी समयमान को आधार मानकर मिला दिया जाए, उसी पर यह बिना किसी ग़लती के चलती रहेगी। अगर चूक हुई भी तो 10 करोड़ साल में मात्र एक सेकेंड की चूक सम्भव है। मतलब एक बार यह पूरी व्यवस्था लागू हुई तो भारतीय मानक समय पूरी सटीकता के साथ सालों-साल तक लागू रहेगा। जीपीएस और जीएमटी पर देश की निर्भरता ख़त्म हो जाएगी। देश के भीतर सभी जगह समय का इक़लौता मानक आईएसटी होगा।
तो अब दूसरा सवाल कि क्या देश में अलग-अलग जगह बताए जा रहे समय में अभी फ़र्क है? तो इसका उत्तर है ‘हाँ’। हालाँकि ऊपरी तौर पर यह समझ में नहीं आता क्योंकि अधिकांश घड़ियाँ सिर्फ़ घंटे या मिनट या फिर अधिक से अधिक सेकेंड की इकाई प्रदर्शित करती हैं। इतने से सामान्य जनों का काम चल जाता है, इसलिए कहीं कोई परेशानी भी नहीं होती। लेकिन जहाँ कहीं भी मिलिसेकेंड या माइक्रोसेकेंड के फ़र्क से भी घटनाओं-दुर्घटनाओं पर असर पड़ता हो, चीजें ऊपर-नीचे हो जाती हों, वहाँ बहुत बड़ा फ़र्क पड़ता है। मसलन- पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जब 1999 में करगिल का युद्ध हुआ तो भारतीय मिसाइलें समय की सूक्ष्मतम गणना में ग़फ़लत की वज़ा से निशाना चूक गईं थीं। इसी के बाद भारत की अपनी ‘नाविक’ प्रणाली लागू करने का फ़ैसला भी किया गया था।
उपग्रहों के प्रक्षेपण, पानी के जहाजों-हवाई उड़ानों के संचालन, आदि में भी इस तरह की ग़फ़लत गुंजाइश बनी रहती है। इसलिए अतिरिक्त सावधानियाँ बरतनी होती हैं। अतिरिक्त इंतिज़ाम रखने होते हैं। देश के भीतर ये तमाम समस्याएँ आईएसटी पूरी तरह प्रभावी होने के बाद ख़त्म हो जाएँगी। हालाँकि यहाँ एक सवाल यह भी हो सकता है कि मिलिसेकेंड या माइक्रोसेकेंड के स्तर पर भी यह फ़र्क आता ही क्यों है?
तो इसका ज़वाब यह है कि घड़ियाँ बनाने वाली कम्पनियाँ अलग-अलग देशों की हैं। उन्हें दुनिया के हर देश में क़ारोबार करना है। इसलिए वे प्रमुख रूप से अपनी घड़ियों की प्रणाली दो सन्दर्भ बिन्दुओं (रिफरेंस प्वाइन्ट) पर निर्धारित करती हैं। पहला- जीएमटी और दूसरा- उनके अपने देश की मानक समय प्रणाली। इसके बाद जिस देश में उन्हें घड़ियाँ बेचनी हैं, वहाँ के समय-सूचक और यदि वहाँ मानक समय प्रणाली है तो उसका समायोजन कर देती हैं। इस तरह चूँकि सन्दर्भ बिन्दु स्थानीय न होकर बाहरी होता है, इसलिए समय की सूक्ष्मतम गणनाओं में फ़र्क रह जाता है।
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