टीम डायरी
ऐसा बहुत से लोग हैं जो मानते हैं कि दुनिया के सभी सुख पैसों से ख़रीदे जा सकते हैं, हासिल किए जा सकते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि पैसों से सुविधाएँ हासिल की जाती हैं, सुख नहीं। सुख, आनन्द कुछ और ही चीज़ है। वह सुविधाओं के, पैसों के साथ भी हो सकता है और उनके बिना भी। वरना तो दुनिया का हर वह इंसान, जिसके पास खूब पैसा है, तमाम सुविधाएँ हैं, उसके हमेशा सुखी रहने की गारंटी न हो जाती?
प्रमाण के तौर पर एक ताज़ातरीन मिसाल अभी हाल ही में सामने आई है। दुनिया की एक बड़ी कम्पनी है एनवीडिया। अमेरिका में कैलिफोर्निया के सैंटा क्लारा में इस कम्पनी का मुख्यालय है। यह कम्पनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से जुड़े तकनीकी क्षेत्र में काम करती है। इस क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनी बताई जाती है। ताईवानी मूल के अमेरिकी नागरिक जेनसेन हुआंग इसके मालिक हैं। वे अपने कर्मचारियों को ख़ूब पैसा देने के लिए जाने जाते हैं। इतना कि उनकी कम्पनी का लगभग हर कर्मचारी करोड़पति है।
तो दुनियावी क़ायदे के हिसाब से इस कम्पनी के हर कर्मचारी को सुखी होना चाहिए क्योंकि उनके पास न पैसों की कमी है और न सुविधाओं की। लेकिन सच्चाई ये है कि इस कम्पनी का हर कर्मचारी बेहद दुखी है, भयंकर तनाव में है। उसके पास अपने ही पैसे ख़र्च करने का समय नहीं है। सुविधाओं का उपभोग करने का वक़्त नहीं है। और यह बात कम्पनी के कर्मचारियों ने ही सार्वजनिक की है, जिसकी सुर्ख़ियाँ दुनियाभर में बनी हैं।
कम्पनी की एक पूर्व महिला कर्मचारी बताती है, “मैंने पैसों और तरक़्क़ी के लालच में क़रीब दो साल वहाँ काम किया। लेकिन वहाँ का माहौल ऐसा है, जैसे लोगों को प्रेशर कुकर के भीतर डाल दिया गया हो। हर दिन हमें 7 से 10 बैठकों में शामिल होना होता था। उन बैठकों के दौरान चीखना-चिल्लाना, लड़ाई-झगड़े, एक-दूसरे को नीचा दिखाना, सब सामान्य बात होती थी।” इस महिला ने 2022 में एनवीडिया की नौकरी छोड़ी है।
ऐसे ही एक अन्य पूर्व कर्मचारी का कहना है, “वहाँ हमें सप्ताह में सातों दिन काम करना होता था। काम के घंटे भी तय नहीं थे। रोज सुबह से रात को 1-2 बजे तक हम काम करते थे। हमें साप्ताहिक छुट्टी तक नहीं दी जाती थी, अतिरिक्त छुटि्टयों की तो बात ही क्या है।” इन्होंने इसी साल मई में कम्पनी की नौकरी छोड़ी है। इनके जैसे और कई कर्मचारी हैं, जिन्होंने नाम या पहचान ज़ाहिर किए बिना इसी तरह की बातें बताई हैं।
और दिलचस्प बात है कि एनवीडिया के मालिक हुआंग ख़ुद भी एक तरह से इन ख़बरों की पुष्टि करते हैं। उन्होंने कई बार खुलकर यह बात स्वीकार की है कि उन्हें “अपने कर्मचारियों को यातना देना पसन्द है।” इसी साल जून में उन्होंने कहा था, “मैं उन्हें यातना देता हूँ, ताकि उन्हें महानता के शिखर तक ले जाया सके। मैं उन पर भरोसा करता हूँ कि वे महानता का चरम छू सकते हैं। कई खेल प्रशिक्षक भी यही करते हैं।”
अलबत्ता, किसी को लग सकता है कि यह तो सिर्फ़ एक एनवीडिया का मामला है। इसका सामान्यीकरण कैसे किया जा सकता है? तो यहाँ थोड़ा ख़ुद को दुरुस्त करने की ज़रूरत है। आस-पास निगाह घुमाकर सच्चाई देखने और स्वीकारने की ज़रूरत है। ऐसा कर पाएँगे तो ख़ुद ही पता चल जाएगा, थोड़ा कम-ज़्यादा, निजी क्षेत्र के तो लगभग सभी उपक्रमों में यही हाल है। सुख की तलाश में सुविधाएँ जुटाते लोग हर कहीं यातनाएँ झेल रहे हैं।
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