टीम डायरी, भोपाल, मध्य प्रदेश से
बहुत छोटा सा वीडियो है। महज़ ढाई मिनट का। लेकिन इसमें सन्देश बहुत बड़ा है। ऐसा जो कोई साल-दो साल नहीं ज़िन्दगीभर टिके रहने, काम आने वाला है। कक्षा में प्रोफेसर साहब ने 10 सवाल लिखे हैं। इनमें से नौ का ज़वाब उन्होंने सही लिखा। और सिर्फ़ एक आख़िरी यानी 10वें का ग़लत। लेकिन उनके नौ सवालों के सही ज़वाब के लिए उन्हें कोई प्रतिक्रिया तक नहीं मिली। प्रशंसा तो दूर की बात है। लेकिन एक ग़लती के कारण ही उनका मज़ाक बना दिया गया। और मज़ाक बनाने वाले कौन? जो ख़ुद शिक्षा और ज्ञान के मामले में उन प्रोफ़ेसर साहब से कई गुना क़मतर ठहरते हैं। लेकिन इसके बाद अब प्रोफ़ेसर साहब की सुनिए…
वे अपने विद्यार्थियों को अपनी उस एक ग़लती के बहाने समझा रहे हैं कि कैसे अधिकांश लोग ऐसे ही होते हैं। आपकी ग़लतियों पर बड़ी तेजी से प्रतिक्रिया देते हैं। आप में ख़ामियाँ ढूँढ़ते हैं। आपका मज़ाक बनाते हैं। भले वे ख़ुद उस शख़्स से क़मतर ठहरते हों, जिसका वे मज़ाक बना रहे हैं। फिर भी! लोग भूल जाते हैं कि हम सब इंसान ही हैं। हम सभी से ग़लतियाँ होती हैं। फिर भी! लोग अच्छाईयों, अच्छे कामों की प्रशंसा करने में हर वक़्त, कंजूसी करते है। जबकि ऐसा करने से किसी का कुछ जाता नहीं। फिर भी!
जबकि होना ये चाहिए कि लोगों की ग़लतियों का मज़ाक बनाने से जहाँ तक हो सके, बचें हम। उनकी अच्छाईयों की जितनी बन पड़े तारीफ़ करें। उनके अच्छे कामों को प्रोत्साहन दें। इसी से तो हम ख़ुद एक अच्छे इंसान की तरह लोगों को दिल-ओ-दिमाग़ में जगह बना सकेंगे। जिंदगीभर और शायद उसके बाद भी। है न ये रोचक-सोचक?
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