सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 20/7/2021

“ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे आपहुँ शीतल होए।” यह दोहा हम बचपन से सुनते-पढ़ते आ रहे हैं। लेकिन इसे अपनाते-अपनाते पचपन के हो जाते हैं। फिर भी ठीक से अपना नहीं पाते। कारण? अच्छे या सद्-व्यवहार से बोलना अत्यधिक कठिन है। जो चीजें हमें सरल दिखती हैं, जरूरी नहीं कि वे सरल ही हों। अगर इतनी सरल होतीं तो बुद्ध को ‘सम्यक-वचन’ पालन का उपदेश नहीं देना पड़ता। इस कठिन सरल व्यवहार के परिणाम को इस कहानी से समझते हैं।

एक राजा थे। वन-विहार को निकले। रास्ते में प्यास लगी। नज़र दौड़ाई तो कुछ दूरी पर झोपड़ी दिखी। उस झोपड़ी के बाहर जल का घड़ा दूर से दिखाई दे रहा था। राजा ने सिपाही को भेजा और झोपड़ी के मालिक से एक लोटा जल माँगकर लाने को कहा। झोपड़ी का मालिक अन्धा था। सिपाही वहाँ पहुँचा और बोला, “ए अन्धे, एक लोटा पानी दे दे।” अन्धा भी अकड़ू किस्म का था। उसने कहा, “चल-चल, तुझ जैसे सिपाहियों से मैं नहीं डरता। तुझे पानी नहीं दूँगा।” सिपाही यह सुनकर निराश लौट आया। इसके बाद राजा ने सेनापति को पानी लाने भेजा। सेनापति ने अन्धे के पास जाकर कहा, “ए अन्धे, पैसा मिलेगा। पानी दे दे।” अन्धे ने फिर अकड़कर मना कर दिया। उसने कहा, “मालूम होता है, तू पहले वाले का सरदार है? मुझे बहलाकर पानी माँगता है। चल जा, नहीं दूँगा पानी।” यह सुनकर सेनापति भी निराश लौट आता है। दोनों ने राजा को पूरी बात बता दी थी। उसके बाद प्यासा राजा खुद अन्धे व्यक्ति के पास जाकर सबसे पहले उसे नमस्कार करता है। हाल-चाल पूछता है। फिर कहता है, “बहुत प्यास लगी है। अगर थोड़ा पानी पीने को मिल जाए, तो बहुत कृपा होगी।”  उस प्रज्ञा-चक्षु व्यक्ति ने यह सुनकर राजा को बहुत सत्कारपूर्वक बिठाया। पानी पीने को दिया। पानी पीने के बाद राजा ने पूछा, “आप को दिखाई नहीं देता, फिर भी आपने सिपाही और सेनापति का अन्तर कैसे कर लिया?” उत्तर में उस व्यक्ति ने बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही कि “वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है।” 

यह स्तर पद का नहीं, अपितु समझ का है। ज्ञान का है, संगति का है। इसीलिए बुद्ध ‘सम्यक-वचन’ का उपदेश देते हैं। यही बोलने का तरीका, वाणी का व्यवहार, मानव की शिक्षा, उसके संस्कारों और व्यवहारों, उसकी संगति उसकी आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है।

वेद में ऋषि बड़ी सुन्दर प्रार्थना करता है, “मधुमन्मे निक्रमणं मधुमन्मे परायणम्। वाचा वदामि मधुमद् भूयासं मधु संदृशः” (अथर्ववेद 1/34/3)। अर्थात्- मेरा पास आना, मेरा दूर जाना, मेरा बोलना ही नहीं अपितु मेरा प्रत्येक क्रियाकलाप मधुर हो जाए। मैं स्वयं मधुर हो जााऊँ। मेरा समस्त कार्य व्यवहार मिठास से भरा हो। किसी के लिए भी कष्टकर न हो।…. इसी तरह भगवान बुद्ध भी अपने अष्टांगिक मार्ग के तीसरे भाग “शील” सदाचार के अन्तर्गत सबसे पहले अंग “सम्यक-वचन” का उपदेश देते हैं।

वाणी अच्छी, बोलना अच्छा, वचन अच्छा तो व्यवहार भी अच्छा होने लगेगा। जब बोलना सुन्दर तो धीरे-धीरे कर्म भी सुन्दर होने लगेंगे।

———-
(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 20वीं कड़ी है।)
——— 
अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं….

19वीं कड़ी : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है

18वीं कड़ी : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है

17वीं कड़ी : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?

16वीं कड़ी : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?

15वीं कड़ी : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?

14वीं कड़ी : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?

13वीं कड़ी : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं?

12वीं कड़ी : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन

11वीं कड़ी : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?

10वीं कड़ी :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?

नौवीं कड़ी : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!

आठवीं कड़ी : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है? 

सातवीं कड़ी : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?

छठी कड़ी : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है

पांचवीं कड़ी : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?

चौथी कड़ी : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?

तीसरी कड़ी : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!

दूसरी कड़ी : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?

पहली कड़ी :भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

6 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

1 day ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago