‘संस्कृत की संस्कृति’ : सुनना बड़ा महत्त्वपूर्ण है, सुनेंगे नहीं तो बोलेंगे कैसे?

अनुज राज पाठक, दिल्ली

सुनना बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य है। सुनेंगे नहीं तो बोलेंगे कैसे? इस लिहाज से कभी सोचा है क्या कि ‘मूक-बधिर’ शब्द युग्म शब्द क्यों है? दरअस्ल, जो (जन्मजात) बधिर होगा वह मूक भी होगा ही। जो सुनेगा नहीं, वह बोलेगा भी नहीं। क्योंकि सुनने की क्षमता न होने उसके मस्तिष्क में अक्षर, शब्द, वाक्य नहीं पहुँचेंगे। उनका कोष नहीं बनेगा। सम्भवत: इसी कारण ‘मूक-बधिर’ शब्द युग्म यानि जोड़ी में प्रयोग होता होगा।

सुनना कितना जरूरी है, सुनने के महत्त्व को बताते हुए पश्चिम के चिन्तक अर्नेस्ट हेमिंग्वे कहते हैं, “जब लोग बात करते हैं, तो पूरी तरह सुनें। अधिकांश लोग कभी नहीं सुनते।” उनके शब्दों में निहित इस कालातीत ज्ञान को हमें नहीं भूलना चाहिए। इस शोर से भरी दुनिया में, जो लोग सुनने की कला में महारत हासिल कर लेते हैं, वे निस्संदेह अलग ही दिखेंगे। जिन लोगों से उनका सामना होगा और जिस दुनिया में वे रहेंगे, उन पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ेंगे। इसलिए सुनना जरूरी है और इस सुनने के लिए श्रोत्र इन्द्रिय का सक्रिय अवस्था में होना जरूरी है।

सुनने के महत्त्व को भारतीय मनीषी हमेशा से ही समझते रहे। सम्भवत: इसी कारण पूर्व काल में सभी तरह की शिक्षा श्रवण, मनन, निदिध्यासन विधि से दी जाती थी। यह विधि भारतीय उपनिषदकारों की देन है। उस काल में गुरू जो भी व्याख्यान देते थे, वेद मन्त्रों आदि की जो व्याख्या करते थे, धर्म, दर्शन एवं अन्य विषयों के सम्बन्ध में जो जानकारी देते थे, शिष्य उनको ध्यानपूर्वक सुनते थे। उसके बाद उस पर मनन करते थे, चिन्तन करते थे।

हालाँकि भारतीय मनीषियों के लिए यह ‘सुनना’ केवल ध्वनियों को सुनना भर नहीं था। क्योंकि व्यक्ति के लिए अर्थ विहीन ध्वनियाँ किसी कार्य की नहीं। मुझे जो भाषा नहीं आती, उस भाषा की ध्वनियों में निहित अर्थ/भाव समझने में असमर्थता, उन ध्वनियों को मेरे लिए मूल्यहीन कर देती हैं। अत: शब्द और उसका अर्थ समझना महत्त्वपूर्ण है। बिना अर्थ शब्द मुझे मूक ही बना देगें, उनका सुनना या न सुनना एक सामना होगा। 

लिहाजा सुनने के इस महत्त्वपूर्ण तत्त्व को भारतीय ऋषियों ने छह वेदाङ्गो में शुमार होने वाले ‘निरुक्त वेदाङ्ग’ सारगर्भित किया है। इसे ‘निरुक्त वेदाङ्ग’ को वेदों का ‘श्रोत’ अर्थात् कान कहा गया है। कारण कि जिस प्रकार व्याकरण साधु शब्दों का ज्ञान कराता है, वैसे ही ‘निरुक्त’ शब्दों के अर्थों से परिचय कराता है। यह श्रवण इन्द्रिय के समान वेद के शब्दों में निहित अर्थों से परिचय कराता है। जिससे श्रोता के लिए वेद-मंत्र ध्वनि मात्र न रह जाएँ।

श्रोता वेद मंत्रों के अर्थ से परिचित होकर उसके वास्तविक तात्पर्य को जान सके और जीवन उत्कर्ष को प्राप्त कर मोक्ष का मार्गगामी हो। इसीलिए ‘निरुक्त’ केवल वेद में कहे गए शब्दों का संग्रह कर उनका व्याख्यान करता है (छन्दोभ्यः समाहृत्य समाहृत्य समाम्नाताः। (निरु० 1/1)) अर्थात् – “ये शब्द छन्दों या मन्त्रों से चुन-चुनकर क्रम से संग्रह किए हैं, इससे ये ही अन्य शब्दों के अर्थों को बताने में समर्थ हैं।”

यहाँ प्रश्न हो सकता है कि मन्त्रों से ये ही शब्द क्यों संग्रह किए हैं? तो वह इसलिए कि वेद मंत्रों में आए शब्द कोई नए नहीं है। ये शब्द विविध प्रसङ्गों में आए हैं। उनका उन प्रसङ्गों के अनुसार अर्थ का ज्ञान हो, इसलिए केवल वेदमंत्रों के शब्दों का ही अर्थ इसमें बताया गया है। ताकि व्यक्ति अर्थ जान कर उन्हें समझकर आत्मोत्कर्ष कर सके।

इन वेदमंत्रों के शब्दों के अर्थ का ज्ञान कराने वाले निरुक्तों की रचना करने वाले अनेक आचार्य हुए हैं। उनमें सबसे आज सबसे प्रमुख नाम हैं ‘आचार्य यास्क’। वैसे, यास्क से पहले भी अन्य आचार्यों ने ‘निरुक्त’ लिखे हैं। यास्क ने स्वयं बारह निरुक्तकारों का उल्लेख किया है। मगर आज मात्र यास्क का ‘निरुक्त’ प्राप्त होता है। यास्क का समय महाभारत के आस-पास का माना जाता है। क्योंकि महाभारत में आचार्य यास्क का नाम बहुत सम्मान से लिया गया है।

“स्तुत्व मां शिपिविष्टेति यास्क ऋषिरुदारधीः। मत्प्रसादादधोनष्टं निरुक्तमभिजग्मिवान्”॥ (शान्तिपर्व 342/73)
इसका अर्थ है : महाभारत के इस कथन अनुसार भगवान श्री कृष्ण की कृपा या शिष्यत्त्व से यास्क ने ‘निरुक्त’ का ज्ञान प्राप्त किया है। 

#SanskritKiSanskriti
—— 
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)

(अनुज से संस्कृत सीखने के लिए भी उनके नंबर +91 92504 63713 पर संपर्क किया जा सकता है)
——-
इस श्रृंखला की पिछली 10 कड़ियाँ 

18 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी कैसे हो सकती हूँ?
17 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण में ‘गणपाठ’ क्या है? 
16 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : बच्चे का नाम कैसा हो- सुन्दर और सार्थक या नया और निरर्थक?
15 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : शब्द नित्य है, ऐसा सिद्धान्त मान्य कैसे हुआ?
14 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : पंडित जी पूजा कराते वक़्त ‘यजामि’ या ‘यजते’ कहें, तो क्या मतलब?
13 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण की धुरी किसे माना जाता है? 
12- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘पाणिनि व्याकरण’ के बारे में विदेशी विशेषज्ञों ने क्या कहा, पढ़िएगा!
11- संस्कृत की संस्कृति : पतंजलि ने क्यों कहा कि पाणिनि का शास्त्र महान् और सुविचारित है
10-  संस्कृत की संस्कृति : “संस्कृत व्याकरण मानव मस्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना!”
9- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : आज की संस्कृत पाणिनि तक कैसे पहुँची?

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

2 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

4 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

5 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

6 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

7 days ago