समान पृष्ठभूमि के दो पहलू दिखाती फिल्में
टीम डायरी
अभी हर तरफ़ एक बेहद सफल फिल्म ‘12वीं फेल’ के चर्चे हैं। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी श्री मनोज शर्मा के जीवन की सच्ची कहानी पर आधारित यह फिल्म प्रेरित करती है। ज़िन्दगी में तमाम असफलताओं, ख़ामियों को भुलाकर नई शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित करती है। जी-जान लगाकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने का रास्ता भी दिखाती है। हालाँकि इसके बावजूद कुल तस्वीर का यह सिर्फ़ एक पहलू ही दिखाती है। वह है क़ामयाबी का, जो लाखों में लोगों में से कुछ गिने-चुने लोगों को ही मिलती है।
जबकि दूसरा बेहद अहम पहलू है नाक़ामयाबी का। हाथ से अपने सपनों के छूट जाने का। यह पहलू हजारों-लाखों के लोगों के हिस्से में आता है। और इसके बाद सैकड़ों लोग तो इतने निराश हो जाते हैं कि वे अपनी जीवन-लीला समाप्त करने पर आमादा हो जाते हैं। कर लेते हैं। यहीं से कहानी शुरू होती है, इस दूसरी फिल्म ‘प्लूटो’ की, जिसका वीडियो नीचे दिया गया। यूट्यूब पर ‘सोशल फुटेज’ नाम का चैनल है। इसे वहीं से लिया गया है, साभार।
‘सोशल फुटेज‘ यूट्यूब चैनल की टीम ने ही इस ‘छोटी सी बड़ी’ फिल्म ‘प्लूटो’ को बनाया है। छोटी सी इसलिए क्योंकि यह शॉर्ट फिल्म श्रेणी में शुमार है। और ‘बडी’ इसलिए कि यह ज़िन्दगी का बड़ा सबक देती है। सबक, ‘प्लूटो की तरह बनने का’, जिसे इस धरती के वैज्ञानिकों ने पूर्ण ग्रह की श्रेणी हटाकर अधूरे या छोटे ग्रह की पंक्ति में रख दिया है। पर दिलचस्प सवाल ये कि इससे प्लूटो को क्या फ़र्क पड़ा? कुछ नहीं न? हमें भी नहीं पड़ना चाहिए। हमारे ख़ाते में आईं सफलताएँ और असफलताएँ सब हमारी हैं। इस पर दूसरे लोग क्या कहते हैं, इससे हमें फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए।
हाँ, एक बात और। बहुत से लोगों को लगता है कि जिसे किसी विषय की जानकारी न हो, उसे उस बारे में मशवरा नहीं देना चाहिए। उसे इसका हक़ नहीं है। कुछ हद तक शायद यह ठीक भी हो। लेकिन पूरी तरह नहीं। क्योंकि कई बार किसी चाय वाले का दिया मशवरा भी कलेक्टर बनने की तैयारी कर चुके युवक को ज़िन्दगी जीने की नई राह दिखा सकता है। यह कोई बड़ी बात नहीं है। यक़ीन न आए तो इस ‘छोटी सी बड़ी फिल्म’ में देख लीजिए।
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