शिवाजी ‘महाराज’ : अग्नि को मुट्ठी में भींचा जा सकता है, तो ही शिवाजी को जीता जा सकता है

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

राजसभा में सिहासनारोहण आदि विधि और बाकी समारोह लगभग चार घंटे चला। इसके बाद महाराज शोभायात्रा के लिए तैयार हो गए। राजसभा के बाहर हाथी घोड़े थे। राजसभा में एक झक सफेद एक हाथी लाया गया। महाराज छत्रपति उस पर आरूढ़ हो गए। लवाजिमें के साथ प्रवेश द्वार तक आए। बाद में वह एक अन्य हाथी पर अम्बारी (हौदा) में बैठ गए। इस हाथी को सुन्दर गहनों से सजाया गया था। हाथी के महावत बने थे सरसेनापति हम्बीर राव मोहिते। अम्बारी में महाराज के पीछे, सोने का पंखा लेकर बैठे थे प्रधानमंत्री मोरोपन्त। आगे-पीछे राजचिह्न, झंडे लेकर चोबदार चल रहे थे। महाराज का नाम लेकर ऊँचे स्वर में उनकी जयजयकार कर रहे थे। पीछे हजारों सैनिक थे।

अपने-अपने रुतबे के अनुसार अष्टप्रधान तथा अन्य बड़े-बड़े पदाधिकारी चल रहे थे। एकदम सामने राजनौबतें बज रही थीं। गेरुए झंडे का हाथी शान से चल रहा था। उसके पीछे-पीछे घुडदल, पैदल सेना महाराज की निजी सेना, साँड़नी के सवार, कोतवाली के घोड़े, वाद्यसमूह, कर्णे, सींग, डफ, नौबतें, सब धीरे-धीरे चल रहे थे। वाद्यों की, हथियारों की खनखनाहट और जयघोषों की समिश्र तीव्र आवाज से दिशाएँ गूँज रहीं थीं। बीच-बीच में जय-जयकार की ध्वनि उभर रही थी “महाराज सिंहासनाधीश्वर क्षत्रिय कुलावतंस शिवछत्रपति महाराज की जय” महाराष्ट्र की सकल सौभाग्यकांक्षिणी भूमि आज दुल्हन बनी थी। शरमा रही थी। पिछली ढाई-तीन सदियों से वह अनगिनत जरासन्धों की बन्दीशाला में सड़ रही थी। आज शिवराज के साथ उसका विवाह हो गया था। शिवराजे आज भूपति बने थे।

मराठों की भूमि, मराठों के राजा और मराठों का निशान आज बुलन्दी पर था। जुलूस में महाराज का हाथी हौले-हौले डोलता हुआ चल रहा था। जुलूस पूरी शान-ओ-शौकत के साथ भगवान के दर्शन करने और नगर परिक्रमा करने निकला। फिर आहिस्ता-आहिस्ता वापस आया। राजमहल के दरवाजे पर स्त्रियों ने महाराज के ऊपर से निम्बारा उतार दिया। बाद में राजस्त्रियों ने महाराज की आरती उतारी। तब महाराज ने उन्हें कीमती वस्त्र और आभूषण दिए। रायगढ़ आनन्द सागर में ऊब-डूब रहा था। यह परमानन्द था। शिवाजी महाराज सार्वभौम हिन्दवी साम्राज्य के छत्रपति बने थे। साम्राज्य को राजधानी थी रायगढ़। रायगढ़ के घरों, चौबारों, छज्जों और चौराहों पर आनन्द की रौनक थी। घर-घर के सामने रंगोली हँस रही थी। दरवाजों पर फूलों के हार, बन्दनवार झूल रहे थे। और इस सबके बीच शोभायात्रा से लौटे शिवाजी सोच रहे थे कि स्वराज्य को अब सुराज्य कैसे बनाया जाए।

महाराष्ट्र में समर्थ रामदास स्वामी का बखाना हुआ आनन्द का साम्राज्य आनन्द वन भुवन छा गया। रायगढ़ पर अयोध्या, मथुरा, माया, द्वारिका, काँची, उज्जयिनी उतर आईं। रायगढ़ पर आज न्याय, ममता, समता, सद्धर्म और सुसंस्कृति का बलाढ्य छत्रसिंहासन प्रकट हो गया। सारी परकीय सत्ताएँ जल-भुनकर कराह उठीं। हाय! यह कैसा कलियुग आया है। शिवाजी राजा तख्तनशीन सार्वभौम बादशाह हुआ। अब करें भी तो क्या करें? क्या सरिता के पति, सागर का जल नापा जा सकता है? भरी दोपहर का सूरज देखा जा सकता है? अगर वैश्वानर अग्नि को मुट्ठी में भींचा जा सकता है, तो ही शिवाजी नृप को जीता जा सकता है। हाय। अब हम क्या करें? कहाँ मुँह छिपाएँ?

शिवाजी के राज्याभिषेक के आनन्द में देवी-देवता, तीर्थस्थान, ढोर-डंगर, माँ-बच्चे, बहू-बेटियाँ और पूरी दुनिया ही झूम उठी। सबकी आँखों से आनन्द के आँसू बह निकले। साधु-सन्तों को सज्जनों को मोक्ष से भी अधिक ऐसा परब्रह्मानन्द हुआ। एक विरक्त जोगी, रामजी का दास (समर्थ स्वामी) खुशी से फूला न समाया। आज उसके रघुवरजी की जय हो गई। रामदास की कुबड़ी और जपमाला को धनुषवाण का बल प्राप्त हुआ। उसकी वाणी सार्थक हुई थी। समर्थ रामदास स्वामी की खुशी का ओर-छोर नहीं था। महाराष्ट्र के आनन्द साम्राज्य में वह रामराज्य का सुख उठा रहे थे। 
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
51- शिवाजी ‘महाराज’ : राजा भए शिव छत्रपति, झुक गई गर्वीली गर्दन
50- शिवाजी ‘महाराज’ : सिंहासनाधीश्वर, क्षत्रियकुलावतंस महाराज शिवछत्रपति
49- शिवाजी ‘महाराज’ : पहले की शादियाँ जनेऊ संस्कार से पहले की थीं, अतः वे नामंजूर हो गईं
48- शिवाजी ‘महाराज’ : रायगढ़ सज-धज कर शिवराज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहा था
47-शिवाजी ‘महाराज’ : महाराष्ट्र का इन्द्रप्रस्थ साकार हो रहा था, महाराज स्वराज्य में मगन थे
46- शिवाजी ‘महाराज’ : राज्याभिषिक्त हों, सिंहानस्थ हों शिवबा
45- शिवाजी ‘महाराज’ : शिव-समर्थ भेंट हो गई, दो शिव-सागर एकरूप हुए
44- शिवाजी ‘महाराज’ : दुःख से अकुलाकर महाराज बोले, ‘गढ़ आया, सिंह चला गया’
43- शिवाजी ‘महाराज’ : राजगढ़ में बैठे महाराज उछल पड़े, “मेरे सिंहों ने कोंढाणा जीत लिया”
42- शिवाजी ‘महाराज’ : तान्हाजीराव मालुसरे बोल उठे, “महाराज, कोंढाणा किले को में जीत लूँगा”
41- शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती

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