शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

समूचे मुगल राजवंश में औरंगजेब-सा गुणी आदमी दूसरा कोई नहीं था। बाबर, अकबर, शाहजहान और दाराशिकोह वगैरा से उसका व्यक्तित्त्व कई मायनों में अधिक समृद्ध था। पर दो भयंकर दोषों से उसका समृद्ध व्यक्तित्त्व बेकार साबित हुआ। वे दोष थे- हद से बहुत ज्यादा अन्धा-धर्मप्रेम और दूसरा- शंकालु स्वभाव। इन्हीं दोषों के कारण उसने उत्कृष्ट तथा निष्ठावान् लोग गँवाए। बहुजनों का असन्तोष मोल लिया। उसके हाथ में बहुत संगठित शासन-तंत्र आया था। लेकिन उसके इसी स्वभाव के कारण वह जर्जर हो गया।

औरंगजेब ने हिन्दू धर्म के विरोध में मुहिम छेड़ दी थी। मुगली राज्य में मौजूद मन्दिरों को तहस-नहस करने का उसने सार्वजनिक हुक्म दे दिया (दिनांक 9 अप्रैल 1669)। इसके लिए उसने एक स्वतंत्र काजी नियुक्त किया। इस विध्वंस के लिए उसने घुड़सवारों का एक दल भेजा। धार्मिक जबर्दस्ती उसके शासन में आम हो गई। इन सरकारी धर्मवीरों ने हाहाकार मचा दिया। पहला झपट्टा पड़ा वाराणसी के काशी विश्वेश्वर पर। दूसरी बारी आई, काशी के ही बिन्दुमाधव की। मथुरा का प्रख्यात श्रीकेशवदेव मन्दिर उखड़ गया। यह मन्दिर बुन्देलखंड के राजा नरसिंहदेव ने 33 लाख रुपए खर्च करके बनवाया था। सौराष्ट्र का सोमनाथ मन्दिर फिर से टूट-फूट गया।

अब इन्हें कौन समझाए कि सभी मजहब एक हैं। मानव जाति उसी एक परमेश्वर की सन्तान है। बहुत मुश्किल था, उन्हें कुछ भी कहना। तीर्थक्षेत्र ध्वस्त हुए। ब्राह्मणस्थान नष्ट हुए। धरती, अम्बर डोल उठे। धर्म छीना गया। इस तरह की औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती की, वहशीपन की खबरें दक्षिण में लगातार आ रही थीं। महाराज बैचैन हो उठे। जंजीरे के सिद्दी को महाराज के शिकंजे से बचाने के लिए औरंगजेब ने उसे नौदलीय तथा आर्थिक सहायता भेजी थी। तभी महाराज समझ गए कि ‘पुरन्दर की सन्धि’ भंग करने का समय आ गया है। भवानी तलवार हाथ में लेने की बेला आ गई है।

मुगल राज्य में 75 फीसदी हिन्दू थे। फिर भी बादशाह वहाँ पर कयामत बरपा रहा था। हिन्दू मन्दिर तहस-नहस कर रहा था। हिन्दू धर्मस्थानों का पावित्र्य नष्ट कर रहा था। महाराज को कभी-कभी हैरत होती थी कि वहाँ के हिन्दू सरदार यह आखिर सह कैसे लेते हैं? ऐसे में जब औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती हद से बाहर हो गई ताे महाराज ने उसके खिलाफ आवाज उठाने की ठानी। उधर, खुद औरंगजेब ने ही ‘पुरन्दर की सन्धि’ धज्जियाँ उड़ा दीं। अब उसके दिमाग में एक बहुत ही भयानक षड्यंत्र ने अँगड़ाई ली। ‘पुरन्दर की सन्धि’ के तहत सम्भाजी राजे को पाँच हजार की मनसब मिली थी। लेकिन वे अभी उमर में बहुत छोटे थे। अत: उनकी तरफ से प्रतापराव गूजर और निराजी रावजी औरंगाबाद में शहजादा मुअज्जम की छावनी में तैनात किए गए थे।

ये लोग मराठी फौज के साथ रहकर वहाँ सैनिकी सेवा कर रहे थे। औरंगजेब ने दिल्ली से मुअज्जम को गुप्त फरमान फरमान रवाना किया। हुक्म हुआ कि इन दोनों को आकस्मिक रीति से कैद कर लो। साथ ही बाकी मराठा फौज का सफाया कर दो। साफ था कि इन सम्मानित मराठों को दिल्ली ले जाकर वहाँ खास औरंगजेबी पद्धति से उनका सफाया होना है। लेकिन फरमान मिलने से पहले ही मुअज्जम को यह खबर मिल गई। अपने पिता का राजनीतिक दाँव उसे पसन्द न आया। उसने चुपके से प्रतापराव और निराजी को फरमान की बात बता दी। साथ ही मशवरा दिया कि फरमान औरंगाबाद पहुँचने से पहले वह भाग निकले। और पूरी मराठा छावनी रात में ही रफूचक्कर हो गई।

मराठों के भाग जाने के आठ दिन बाद मुअज्ज्म को औरंगजेब का गुप्त फरमान मिला। लिखा था, “प्रतापराव और निराजी को कैद कर मराठा छावनी का सफाया करो।” लेकिन अब क्या हो सकता था? चिड़िया तो पहले हो खेत चुग गई थी। मुअज्जम ने पिता को बड़ी नम्रता से लिख भेजा कि अगर “आठ दिन पहले मराठे भाग न निकलते, तो उन्हें गिरफ्तार करने में पलभर की भी देर न होती।” यह पत्र औरंगजेब को मिला (दिनांक 11 दिसंबर 1669) को। दंग रह गया वह। निशाना चूक जाने से परेशान भी कोई कम न हुआ।

वर्हाड़ की जागीर में सम्भाजी राजे के प्रतिनिधि थे रावजी सोमनाथ। प्रतापराव ने उन्हें भी चेतावनी दी, “दगा है, भाग निकलो।” लेकिन रावजी सोमनाथ ने तो कमाल ही कर दिया। भागते-भागते उन्होंने वर्हाड़ के कुछ मुगली थानों पर हमला किया और लाखों की लूट इकट्ठा कर वह राजगढ़ की तरफ भाग निकले। प्रतापराव और भीमाजी भी भीमा नदी के पार हो गए थे। औरंगजेब की इस नई चाल से महाराज को कोई अचम्भा न हुआ। उनके दिमाग में अब चिनगारियाँ फूट रही थीं। मुगलों पर कौन सी नई चालें आजमाई जाएँ, इसी विचार में वह खोए रहते। तलवार पर अब सान चढ़ने लगी थी। मुगलाई से रोज आने वाली खबरें क्रोधजनक थीं। महान ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं की यह पावन भूमि बादशाह भ्रष्ट कर रहा था। यह देखकर महाराज का माथा ठनक उठा।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं

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Neelesh Dwivedi

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