महाकवि शूद्रक के कालजयी नाटक पर विशेष श्रृंखला।
अनुज राज पाठक, दिल्ली से
चारुदत्त चांडालों द्वारा वध हेतु ले जाया जाता है। वह अपनी मृत्यु की सम्भावना से दुखी नहीं है। अपितु कलंकित होकर मृत्यु का ग्रास बन रहा है, इसलिए दुःखी है। (न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितं यशः)
नगर में अलग-अलग चौराहों पर चारुदत्त के वध की घोषणा हो रही है। उन्हीं घोषणाओं को शकार के महल में बँधा हुआ स्थावरक सुन लेता है। वह महल से किसी तरह छूटकर चांडालों के पास जाता है और चारुदत्त के निर्दोष होने की गवाही देता है। लेकिन शकार के कहने पर चांडाल उसकी बात को सत्य नहीं मानते। स्थावरक कहता है, “मेरी दासता के कारण मेरी बात पर कोई विश्वास नहीं कर रहा है। दासता ऐसी बुरी होती है कि सत्य कहने पर भी कोई भरोसा नहीं करता।” (ईदृशो दासभावः यत्सत्यं कमपि न प्रत्यायति)।
शकार इस बात से बहुत निराश है कि जन-समुदाय चारुदत्त को दोषी क्यों नहीं मान रहा है। समस्त जन-समुदाय चारुदत्त के जीवन के लिए प्रार्थना करता सा दिखाई देता है। तभी एक भिक्षुक के साथ वसंतसेना भीड़ को देखकर वहाँ पहुँच जाती है। वह जानना चाहती है कि यह भीड़ क्यों है? भिक्षुक जानकारी लेकर बताता है, “आप की हत्या के अपराध में चारुदत्त को वध हेतु ले जाया जा रहा है।” इससे वसंतसेना दु:खी होकर तुरंत चारुदत्त के पास पहुँच जाती है। वह चांडाल से कहती है, “इन्हें न मारें। मेरी हत्या के अपराध में इन्हें दंड दिया जा रहा है, लेकिन मैं जीवित हूँ।”
चांडाल प्रसन्न है कि उसके हाथों चारुदत्त का वध नहीं हुआ। उसे चांडाल लंबी आयु की शुभकामनाएँ देते हुए वहाँ से समस्त घटना का वर्णन राजा पालक को बताने हेतु निकल जाते हैं।
इधर, वसंतसेना को देखकर आश्चर्य के साथ चारुदत्त उसके गले लग जाता है। तभी अचानक शर्विलक वहाँ पहुँच सूचना देता है कि राजा पालक को मित्र आर्यक ने मार डाला है। अब राजा आर्यक है। राजा आर्यक ने आज्ञा दी है कि चारुदत्त को छोड़ा दिया जाए। साथ ही, उन्हें वेणा नामक नदी के किनारे स्थित कुशवती नगरी का राज्य दान में दिए जाने की भी घोषणा की गई है।
शर्विलक के आदेश से सैनिक शकार को पकड़कर ले आते हैं। शकार तब चारुदत्त से शरण की याचना करता है। चारुदत्त इसके बदले में शकार को मुक्त कर देता है। वहीं चारुदत्त के वध की ख़बर सुनकर उसकी पत्नी प्राण त्याग को उद्धत हो रही होती हैं। लेकिन जल्दी-जल्दी पहुँचकर चारुदत्त उसे भी प्राण त्यागने से रोक लेता है।
आर्यक राजा बन जाता है। उसने चारुदत्त के प्रति दयाभाव रखने वाले चांडाल को सभी चांडालों का प्रमुख बन दिया है। शर्विकल सेना प्रमुख बनाया जाता है। स्थावरक को दासता से मुक्त कर दिया जाता है। सभी हर तरह से प्रसन्न होकर मंगल गान करते हुए अपने-अपने घर चले जाते हैं।
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(अनुज राज पाठक की ‘मृच्छकटिकम्’ श्रृंखला हर बुधवार को। अनुज संस्कृत शिक्षक हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखते हैं। दिल्ली में पढ़ाते हैं। वहीं रहते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। इससे पहले ‘भारतीय-दर्शन’ के नाम से डायरी पर 51 से अधिक कड़ियों की लोकप्रिय श्रृंखला चला चुके हैं।)
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पिछली कड़ियाँ
मृच्छकटिकम्-19 : सुखी व्यक्ति के शत्रु भी मित्र हो जाते हैं, वहीं दु:ख में मित्र भी शत्रु
मृच्छकटिकम्-18 : सत्य कहिए, सत्य बोलने से सुख प्राप्त होता है
मृच्छकटिकम्-17 : विपत्ति के समय मनुष्य पर छोटे-छोटे दोष से भी बड़े अनिष्ट हो जाते हैं
मृच्छकटिकम्-16 : प्रेम में प्रतीक्षा दुष्कर है…
मृच्छकटिकम्-15 : जो शरणागत का परित्याग करता है, उसका विजयलक्ष्मी परित्याग कर देती है
मृच्छकटिकम्-14 : इस संसार में धनरहित मनुष्य का जीवन व्यर्थ है
मृच्छकटिकम्-13 : काम सदा प्रतिकूल होता है!
मृच्छकटिकम्-12 : संसार में पुरुष को मित्र और स्त्री ये दो ही सबसे प्रिय होते हैं
मृच्छकटिकम्-11 : गुणवान निर्धन गुणहीन अमीर से ज्यादा बेहतर होता है
मृच्छकटिकम्-10 : मनुष्य अपने दोषों के कारण ही शंकित है
मृच्छकटिकम्-9 : पति की धन से सहायता करने वाली स्त्री, पुरुष-तुल्य हो जाती है
मृच्छकटिकम्-8 : चोरी वीरता नहीं…
मृच्छकटिकम्-7 : दूसरों का उपकार करना ही सज्जनों का धन है
मृच्छकटिकम्-6 : जो मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार बोझ उठाता है, वह कहीं नहीं गिरता
मृच्छकटिकम्-5 : जुआरी पाशों की तरफ खिंचा चला ही आता है
मृच्छकटिकम्-4 : धरोहर व्यक्ति के हाथों में रखी जाती है न कि घर में
मृच्छकटिकम्-3 : स्त्री के हृदय में प्रेम नहीं तो उसे नहीं पाया जा सकता
मृच्छकटिकम्-2 : व्यक्ति के गुण अनुराग के कारण होते हैं, बलात् आप किसी का प्रेम नहीं पा सकते
मृच्छकटिकम्-1 : बताओ मित्र, मरण और निर्धनता में तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?
परिचय : डायरी पर नई श्रृंखला- ‘मृच्छकटिकम्’… हर बुधवार
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