टीम डायरी
बुन्देलखंड का मशहूर पर्यटन स्थल खजुराहो। वहाँ की गलियों में रोज़ की तरह एक फ़क़ीर इकतारा लेकर गा रहा है,
“भाभी के परम पयारे। लाला हरदौल। भाभी के परम पयारे।
काए खाँ दोष लगा रए मो खाँ,
किनकी बातन में अब आए, मोरे हाथन ज़हर दिवाए।
लाला हरदौल। भाभी के परम पयारे।।”
इस फ़क़ीर का नाम है मुन्नीलाल। लोग भिखारी समझते हैं। क्योंकि इसकी आजीविका लोगों के दिए पैसों से ही चलते ही। अलबत्ता, उन चन्द सिक्कों के बदले में ये जो कुछ वापस दे रहा है, उसकी कीमत शायद ही कोई समझता हो। मुमकिन है, वह भी नहीं जिसने ये वीडियो बनाया। दरअस्ल, ये फ़क़ीर एक भूलती-बिसराती लोक-परम्परा का सिरा लोगों को पकड़ा रहा है। साथ ही एक सबक भी कि कान के कच्चे होने या चापलूसों की मंडली के प्रभाव में आकर जब हम कोई अविवेकी फ़ैसला करते हैं, तो वह नज़ीर बन जाया करता है। और कई मर्तबा तो ऐसे फ़ैसलों के नतीज़े में दामन पर लगा दाग भी धुलाए नहीं धुलता। बस टीस रह जाती है।
अस्ल में ये फ़क़ीर बुन्देलखंड की रगों में दौड़ती ऐसी ही एक टीस का क़िस्सा बयाँ कर रहा है। सदियों पहले ओरछा रियासत में एक बुन्देला राजा हुआ करते थे। बीरसिंह जू देव। उनके आठ बेटों में सबसे बड़े जुझार सिंह और सबसे छोटे हरदौल। बीरसिंह के निधन के बाद जुझार सिंह ने जब गद्दी सँभाली तो कुछ समय बाद उनके चापलूस दरबारियों- पहाड़ सिंह, प्रतीत राय और एक महिला हीरादेवी ने उन्हें वश में कर लिया। उन्हें भड़काया और उनके कान भरे कि उनकी पत्नी चम्पावती के हरदौल के साथ नाजाइज़ सम्बन्ध हैं। दरअस्ल, इन दरबारियों में एक पहाड़ सिंह ओहदे से सेनापति था और हरदौल को अपने रास्ते से हटाना चाहता था। सो, जब राजा को इन लोगों ने भड़काया तो उन्होंने अपनी पत्नी से पतिव्रता होने का प्रमाण माँगा। इस परीक्षा में उन्हें अपने हाथों से हरदौल को विषाक्त दूध पिलाना था। उन हरदौल को जो अपनी भाभी को माँ का दर्ज़ा देते थे। और वे ख़ुद जिन्हें अपना पुत्र मानती थीं। इसके बावजूद ये ‘माँ-बेटे’ राजा को सन्तुष्ट करने के लिए इस परीक्षा से गुज़रे और इसके नतीज़े में हरदौल की मौत हो गई।
पर कहानी यहाँ ख़त्म नहीं हुई। हरदौल का अभी अन्तिम संस्कार हुआ ही था कि उनकी बहन कुंजावती ओरछा आ पहुँची। दतिया के राजा रणजीत सिंह से उनकी शादी हुई थी। वे अपने भाईयों को बेटी की शादी में निमंत्रित करने आई थीं। लेकिन राजा जुझार सिंह के सिर पर अब भी चापलूस ही सवार थे। लिहाज़ा उन्हीं के बहकावे में उन्होंने बहन को भी तिरस्कृत कर दिया। और कह दिया, “तुम तो हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी न? तो जाओ, श्मशान जाकर उसी से भात (चाक-भात) माँगो।” बहन रोती-बिलखती हरदौल की समाधि पर पहुँची। और दुहाई देकर भात माँगा तो कहते हैं समाधि से आवाज़ आई, “तू चिन्ता न कर बहन। तेरा ये भाई हरदौल, भात लेकर ज़रूर आएगा।”
बताते हैं कि इसके बाद भाँजी की शादी में हरदौल की रूह भात लेकर गई। लेकिन वहाँ भी कुछ लोगों ने जब सन्देह किया, तो हरदौल ने वहीं अपनी एक झलक दिखाकर बहन का मान रखा। बस, इसके बाद से ही पूरे बुन्देलखंड के लोगों के लिए हरदौल ‘देव रूप’ हो गए। और बुन्देली महिलाओं के लिए उनके मान-सम्मान की रक्षा करने वाले भाई, जिन्हें वे आज भी अपने बच्चों की शादी में आमंत्रित किया करती हैं। शादी-ब्याह के वक़्त लोकगीतों के जरिए टेर लगाकर बुलाया करती हैं। इतना ही नहीं, हरदौल को अपनी स्मृतियों में जीवन्त रखने के लिए लोगों ने उनकी समाधि पर मन्दिर तो बनवाया ही है। मध्य प्रदेश के कई गाँव, क़स्बों, शहरों में ‘हरदौल चबूतरे’ भी बनवाए हैं, जो आज भी देखे जा सकते हैं। इस तरह हरदौल तो अमर हो गए, लेकिन जुझार…..? उन पर प्रश्नचिह्न रह गया।
मीडिया और मनोरंजन उद्योग में नामी व इज़्ज़तदार शख़्सियत हैं जनाब सैयद मोहम्मद इरफ़ान। रेडियो-टेलीविज़न से इनका पुराना नाता है। फिल्मी दुनिया पर ख़ासी पकड़ रखते हैं। इनका एक शो ख़ूब मशहूर है, ‘गुफ़्तगू विद इरफ़ान”। इसमें वे बड़े इत्मिनान से कला, साहित्य, संगीत, फिल्म, वग़ैरा से जुड़ी शख़्सियतों के इंटरव्यूज़ लिया करते हैं। राज्यसभा टीवी (अब संसद टीवी) पर क़रीब 10 साल तक यह शो चला। अब ‘ज़श्न-ए-रेख़्ता’ के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आया करता है। ऐसा ख़ुद इरफ़ान साहब से जुड़ी वेबसाइट से पता चलता है। इरफ़ान साहब ट्विटर पर भी सक्रिय हैं। ‘इरफ़ानियत’ के नाम से उनका ट्विटर अकाउंट है। इसमें वे बड़े दिलचस्प और काम के वीडियो वग़ैरा साझा किया करते हैं। ऐसे जो आसानी से हर कहीं नहीं मिलते। लेकिन ऐसे भी, जिन्हें हर कहीं होना ज़रूर चाहिए। इसी क्रम में इरफ़ान साहब ने मुन्नीलाल का यह वीडियो 24 जुलाई को साझा किया था।
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