केल्हौरा की कहानी बताती है कि गाँव के भीतर से ही जल, जंगल, ज़मीन की सूरत बदल सकती है!

टीम डायरी, 12/12/2020

ये एक छोटे से गाँव की बड़ी कहानी है। देखी जा सकती है, सुनी जा सकती है और गुनी भी। यानि इस पर विचार किया जा सकता है। इससे सीखा जा सकता है। इसकी मिसाल पर अमल किया जा सकता है। 

 

यह कहानी मध्य प्रदेश के सतना जिले के मझगवाँ विकास खंड के गाँव केल्हौरा की है। इस गाँव में 1990 के दशक तक पानी न के बराबर था। गाँव के लोग खेती के लिए पूरी तरह मानसून पर निर्भर थे। जंगल उजड़े थे। पहाड़ियाँ सूनी थीं। लेकिन इसके कुछ सालों बाद चन्द लोग आए। उन्होंने कुछ अनोखे प्रयास किए। प्रयोग किए। थोड़ी अपनी कही और गाँववालों को सिखाई। कुछ उनकी सुनी और ख़ुद सीखी। बस देखते-देखते गाँव की सूरत बदल गई। गाँव के भीतर उपलब्ध संसाधनों से। गाँववालों के प्रयास से। 

 

इस वीडियो में केल्हौरा की कहानी डॉक्टर भरत पाठक सुना रहे हैं। वे उन लोगों में शामिल रहे हैं, जिनके प्रयासों, प्रयोगों ने इस गाँव की सूरत बदली। इन लोगों ने भारत रत्न नानाजी देशमुख के मार्गदर्शन में यह काम किया था। आज नानाजी सदेह इनके बीच नहीं हैं, लेकिन उनका ग्राम्यदर्शन, ग्रामस्वराज, ग्रामोदय ऊँचे गुम्बद, शिखरों के साथ साकार मौजूद है।

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