टीम डायरी
देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितम्बर को ‘शिक्षक दिवस’ दिवस के रूप में मनाया गया। हर साल की तरह इस बार मीडिया और सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों पर आदर्श शिक्षकों की तमाम प्रेरक कहानियाँ कही-सुनी गईं। कई पुरानी कहानियाँ दोहराई गईं। इन कहानियों के ज़रिए शिक्षण कार्य को ऊँचे पायदान पर पहुँचाने वाले शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की गई।
यह सब होना भी चाहिए था। लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जो हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। वहाँ शिक्षक दिवस से ठीक एक दिन पहले 4 सितम्बर काे शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढ़ रही बच्चियों को विरोध का झंडा बुलन्द करना पड़ गया। वह भी ऐसे कि गुस्से में उन्होंने अपनी एक ‘शिक्षक’ (यहाँ शिक्षिका पढ़िए) के कमरे के काँच तोड़ डाले। पंखे और फर्नीचर वग़ैरा तहस-नहस कर दिया। इसके बाद बाहर जाकर धरने पर बैठ गईं। इस दौरान कई छात्राएँ भी उमस के कारण बेहोश हो गईं। बीमार हो गईं।
बवाली विरोध करने वाली छात्राओं की एक ही माँग थी कि जिन शिक्षिका के व्यवहार पर वे लम्बे समय से एतिराज़ जता रही हैं, उन्हें तुरन्त विद्यालय से हटाया जाए। आख़िरकार सरकार को छात्राओं की बात माननी पड़ी। वह शिक्षिका हटाई गईं। इसके बाद मामला शान्त हुआ। लेकिन पीछे एक तीखा शोर ज़रूर छोड़ गया। इन सवालों के साथ कि शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच का नाज़ुक रिश्ता आख़िर कैसे इस मोड़ पर पहुँच गया? जब शिक्षक दिवस के मौके पर हर विद्यालय में बच्चे अपने शिक्षकों को सम्मानित करने की तैयारियाँ कर रहे थे, उसी समय एक विद्यालय में छात्राएँ अपनी शिक्षिका से छुटकारा पाने के लिए बवाल करने के स्तर तक उतरने को क्यों मज़बूर हो गईं?
क्या भोपाल का यह मामला अकेला है, या इक़लौता होने वाला है, जब शिक्षक और विद्यार्थियों के रिश्ते में दूरियाँ बढ़ती दिखें? और अगर इस सवाल का ज़वाब ‘नहीं’ में है, तो सोचिए कि मर्यादा आख़िर क्यों भंग हो रही है? क्या सिर्फ़ बच्चे ही ग़लत रास्ते पर हैं या शिक्षकों से भी ग़लती हो रही है? क्योंकि ऐसे कई समाचार लगातार आते रहते हैं, जब शिक्षक या गुरु अपने ‘पद की गरिमा’ का दुरुपयोग कर छात्र-छात्राओं का शोषण करते पाए गए। और ऐसे मामले तो इफ़रात सुनने में आते हैं, जब शिक्षक या शिक्षिका किसी छात्र या छात्रा से अपनी खुन्नस निकालते हुए, अनुशासन बनाए रखने के नाम पर दुर्व्यवहार करते हुए पाए गए। तो उन्हें सम्मान भला क्यों और कैसे मिले?
विचार कीजिए, ऐसे प्रश्नों पर विचार के लिए ‘शिक्षक दिवस’ से बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता। इसलिए कि शिक्षक दिवस सिर्फ़ विद्यार्थियों द्वारा अपने शिक्षकों को सम्मान देने का मौक़ा भर नहीं है। शिक्षकों द्वारा यह विचार करने के लिए अहम पड़ाव भी है कि विद्यार्थियों के मन में उनका सम्मान कैसे बना रहे, कैसे बढ़े।
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