सांकेतिक तस्वीर
अनुज राज पाठक, दिल्ली
हम अपने नित्य व्यवहार में बहुत व्यक्तियों से मिलते हैं। जिनके प्रति हमारे विचार प्राय: सकारात्मक नहीं हो पाते। हम सड़कों पर चलते-फिरते या कहीं सार्वजनिक जगहों पर बैठते-उठते अक्सर परस्पर दुर्व्यवहार का सामना करते रहते हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ दुनिया अच्छे लोगों से भी भरी पड़ी है। ये वे हैं, जो देवदूत की तरह आते हैं। हमारी सहायता करते हैं। इसके बाद पुनः अपने-अपने नियमित कार्यों में लग जाते हैं।
अभी कुछ दिन पहले की बात है। सायं काल था। जब सभी अपने-अपने घरों में जाने के लिए अत्यधिक व्यग्र होते हैं। उनके पास क्षणभर ठहरने का समय नहीं होता क्योंकि किसी के बच्चे, किसी की माताएँ, किसी के पिता, अन्य-अन्य आत्मिक लोग प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। उनके मिलने की जल्दी में भाग रहे होते हैं। कोई अपने काम से थककर घर जाकर विश्राम करने की शीघ्रता में होता है।
ऐसी ही एक शाम मैं मेट्रो में यात्रा कर हा था। मुझे भी घर पहुँचने की जल्दी थी। लेकिन ईश्वरीय इच्छा हमारी अपनी इच्छाओं से अधिक प्रबल होती है। सो, इस यात्रा के दौरान मुझे एकदम से साँस लेने में दिक्कत अनुभव हुई। मैं दो कदम चलकर जमीन पर बैठ गया। मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस दिन हुआ। मैं निढाल पड़ गया। हाँ मुझे चेतना थी, हालाँकि। तो तभी मैंने अनुभव किया कि कुछ देवदूत रूप व्यक्ति आए और मेरी मेरी सुश्रूषा में लग गए। कोई पानी पिलाने में सहायता करने लगा। कोई अपने बैग से जूस आदि निकालकर मुझे देने लगा। मेरा उनसे उसी क्षण एक मानवीय सम्बन्ध बना था, जो उनके हृदयों के देवभाव को प्रदर्शित कर रहा था।
यह देवदूत मुझे केवल वहीं नहीं मिले। अगले दिन सुबह अस्पताल गया। डॉक्टर को दिखाया। शाम तक जाँचें करने के बाद मुझे पता चला कि मेरी प्लेटलेट्स इतनी कम हैं कि इन्हें बिना चढ़ाए सिर्फ बढ़ने की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। तब मेरा मित्र जो मेरे साथ अस्पताल आया था, उसने किसी मित्र से चर्चा की और मात्र 30 मिनट में एक अनजाना देवदूत प्लेटलेट्स देने के लिए उपस्थित था। जिससे मैं कभी नहीं मिला था, वह शहर के किसी दूसरे कोने से दफ्तर के बाद सीधे मेरे जीवन की रक्षा हेतु प्रस्तुत हो गया। उस देवदूत के पूज्य माता-पिता ने उसका नाम बड़ा ही सुन्दर रखा है, ‘हृदय’। अपने नाम के अनुरूप वह भी उतना ही सहृदय है।
आज मेरे पास उन सभी मनुष्य रूपी देवदूतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु शुभकामनाएँ हैं और प्रेरणा कि हम भी यूँ ही अपने आस-पास जहाँ देखें, लोगों की इसी प्रकार सहायता करें। उनके जीवन-कल्याण में सहयोग करें। पुनः उन सभी देवदूतों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने जाने-अनजाने में मेरी या किसी की भी सहायता की है।
—————
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)
दुनियाभर में यह प्रश्न उठता रहता है कि कौन सी मानव सभ्यता कितनी पुरानी है?… Read More
मेरे प्यारे गाँव तुमने मुझे हाल ही में प्रेम में भीगी और आत्मा को झंकृत… Read More
काश, मानव जाति का विकास न हुआ होता, तो कितना ही अच्छा होता। हम शिकार… Read More
इस साल के जनवरी महीने की 15 तारीख़ तक के सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत… Read More
"अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!" अभी इन्दौर में जब… Read More
क्रिकेट में जुआ-सट्टा कोई नई बात नहीं है। अब से 30 साल पहले भी यह… Read More