टीम डायरी
देश में इन दिनों जातीय गणना कराए जाने पर बहुत जोर दिया जा रहा है। विपक्षी पार्टियाँ इसके पक्ष में आवाज़ बुलन्द कर ही रही हैं, बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने भी इस क़दम का एक तरह से समर्थन ही किया है। भले वह केन्द्र में अपनी सरकार के माध्यम से इस दिशा में क़दम आगे बढ़ाने में संकोच कर रही हो।
जातीय गणना के पक्ष में सबसे मज़बूत दलील यह है कि इससे देश की जातियों को उनकी संख्या के मुताबिक शासन-प्रशासन, नीति-राजनीति, सेवा-नौकरी, आदि में प्रतिनिधित्त्व मिल सकेगा। ऊपर से समझने में दलील आकर्षक भी है। और कमज़ोर वर्गों को उनकी आबादी के अनुपात में उनके अधिकार मिलने भी चाहिए। लेकिन इस मसले पर राजनेता जो रास्ता अपना रहे हैं, दीर्घावधि में उसके नतीज़े देश के लिए घातक हो सकते हैं।
सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक शोधकर्ता हैं, अविनाश जैन। उन्होंने इसी 26 अगस्त को एक वीडियो डाला है। उसमें लेबनान का उदाहरण दिया है, जिसकी राजधानी बेरुत को कभी ‘मध्य एशिया का पेरिस’ कहा जाता था। मगर फिर वहाँ जाति-समुदाय आधारित अधिकार-व्यवस्था शुरू हुई। यानि ‘जितनी आबादी उतना हक़’। वही, जिसके लिए भारत में भी आवाज़ें उठ रही हैं। और आज लेबनान की हालत क्या है? वहाँ 25 साल तक गृहयुद्ध चला है। लेबनान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त है। बताते हैं कि कुछ समुदायों को देश से पूरी तरह बाहर तक निकाल दिया गया है।
तो क्या हम भारत को लेबनान जैसी दुर्गति की ओर ले जाना चाहते हैं? वीडियो देखिए, सोचिए, समझिए। फिर फ़ैसला कीजिए कि हमें अपनी जाति, अपना समुदाय सलामत रखना है, या देश।
देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More
तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More
छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More
शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More
भारत में लगभग 44% तक ऑपरेशन ग़ैरज़रूरी होते हैं। इनमें दिल के बीमारियों से लेकर… Read More
उसका शरीर अकड़ गया था। ऐसा लगता था जैसे उसने कोई पत्थर निगल लिया हो।… Read More