भारत की तीनों सेनाओं के सैन्य अभियान महानिदेशक। नीचे सबसे पहले ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज़ लिली और थॉमसन, दूसरी तस्वीर में एशेज़ का कलश, और तीसरी में विराट कोहली।
नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
यह 1970 के दशक की बात है। इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई समझी जाने वाली ‘एशेज़ क्रिकेट’ श्रृंखला चल रही थी। पाँच दिवसीय मैचों की यह श्रृंखला बारी-बारी से इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में आयोजित होती है। उस साल इंग्लैंड में थी। ऑस्ट्रेलिया के दो तेज़ गेंदबाज़ों- डेनिस लिली और जेफ थॉमसन ने श्रृंखला के लगभग सभी मैचों में इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों की कमर तोड़ दी थी। ज़ाहिर है, जीत भी ऑस्ट्रेलिया की ही हुई।
उसके बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम ने एक जुमला उछाला, ‘एशेज़ टू एशेज़ एण्ड डस्ट टू डस्ट’। सामान्य तौर पर इसका अर्थ यह निकाला गया कि डेनिस लिली नहीं चलते तो थॉमसन इंग्लैण्ड के बल्लेबाज़ों को ढेर करते। इसी तरह, थॉमसन कभी चूकते तो लिली उन बल्लेबाज़ों का काम तमाम करते। हालाँकि, व्यापक अर्थ और सीधे शब्दों में इस जुमले का मतलब यह लगाया जाता है कि हर स्तर पर प्रतिद्वन्द्वी को उसी की भाषा में ज़वाब देने का पूरा इन्तिज़ाम। इस ज़वाबी कार्रवाई में एक स्तर पर किसी से चूक हो तो दूसरे स्तर पर दूसरा कोई उसी तीव्रता से उत्तर दे।
इस क़िस्से का ज़िक्र भारतीय सेना के सैन्य अभियान महानिदेशक लेफ्टिनेन्ट जनरल (डीजीएमओ) राजीव घई ने सोमवार को समाचार प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान किया। उनसे भारत के ‘एयर डिफेंस सिस्टम’ (हर तरह के हवाई हमलों से सुरक्षा व्यवस्था) के बारे में सवाल किया गया था। इसके उत्तर में उन्होंने किसी तरह के तकनीकी विस्तार में जाए बिना ही एशेज़ क्रिकेट श्रृंखला से जुड़े उक्त वाक़िअे के माध्यम से आसान शब्दों में पूरा मामला समझा दिया। हालाँकि, यहाँ सवाल हो सकता है कि सैन्य मामलों में यह क्रिकेट का प्रसंग का कैसे आया? तो इसका ज़वाब यह है कि करोड़ों भारतीयों की तरह राजीव घई साहब भी क्रिकेटप्रेमी हैं। वह पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली के प्रशंसक भी हैं। विराट ने 12 मई को टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की है।
वैसे, यहाँ तक की कहानी तो अधिकांश जगहों पर सुर्ख़ियों में है। हम इसमें एक और जानकारी जोड़ देते हैं। वह ये एशेज़ श्रृंखला का यह नाम क्यों पड़ा और कैसे? क्योंकि ‘एशेज़’ का हिन्दी में तो मतलब होता है ‘राख’ या फिर ‘मुर्दे की राख’ के लिए भी यह शब्द इस्तेमाल किया जाता है। तो ऐसी क्या कहानी है जो क्रिकेट जैसे खेल में इस तरह के शब्द के इस्तेमाल की नौबत आई? इसके उत्तर में भी एक कहानी ही है, क्रिकेट के ज़ुनून की।
बात है 1882 की। उन दिनों आज की तरह का पेशेवर क्रिकेट नहीं खेला जाता था। ज़्यादातर लोग शौक़िया क्रिकेट ही खेलते थे। इंग्लैंण्ड में यह बड़ा लोकप्रिय खेल था और इंग्लैण्ड की राजशाही से जुड़े अन्य कुछ औपनिवेशिक देशों में यह खेल अधिकांशत: वहाँ रहने वाले अंग्रेज ही खेला करते थे। उन देशों की टीमें एक-दूसरे के देशों में जाकर भी इसी तरह का क्रिकेट खेला करती थीं। तो ऐसे ही एक बार ऑस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैण्ड आई थी। उसने इंग्लैण्ड को उसी की धरती पर पहली बार एक मैच में हराया, ओवल मैदान पर, उस साल अगस्त के महीने में।
तो ऑस्ट्रेलिया से मिली हार के बाद अगले दिन एक ब्रिटिश अख़बार ने इंग्लैण्ड की क्रिकेट टीम का ‘मृत्युलेख’ छाप दिया। उसमें लिखा, “इंग्लैण्ड का क्रिकेट मर चुका है। खिलाड़ियों का अन्तिम संस्कार कर दिया गया है। उनकी राख (एशेज़) ऑस्ट्रेलिया ले जाई गई है।” अख़बार ने अलबत्ता, यह आलोचना की थी मगर क्रिकेटप्रेमियों ने इसे दिल पर ले लिया। लिहाज़ा, कुछ सप्ताह बाद ही इंग्लैण्ड की क्रिकेट की टीम जब ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई तो जाने से पहले ब्रिटिश कप्तान इवो ब्लाई ने क्रिकेट प्रेमियों से वादा किया कि वह “ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की राख़ (एशेज़) लेकर ही लौटेंगे।” यानि ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में धूल चटाएँगे, जो उन्होंने किया भी।
उस वक़्त इंग्लैण्ड की टीम ने ऑस्ट्रेलिया में तीन निर्धारित मैच खेले थे। वे सब के सब जीते। इसके अलावा कुछ मैच यूँ ही मज़े के लिए अनाधिकारिक तौर पर भी खेले। ऐसे ही एक अनाधिकारिक मैच के बाद इवाे ब्लाई को क्रिसमस की शाम के दौरान मेलबोर्न स्टेडियम के बाहर सक मिट्टी (टेराकोटा) का कलश दिया गया था। यह प्रतीकात्मक उपहार था, ताकि वे अपने देश लौटकर क्रिकेटप्रेमियों को यह बता सकें कि वे ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ियों की राख ले आए हैं। उन्हें धूल (डस्ट) चटा आए हैँ। तो इस तरह इन दोनों के बीच ‘एशेज़’ की मशहूर खेल-प्रतिद्वन्द्विता सिलसिला शुरू हुआ जो 1970 का दशक आते-आते ‘एशेज़ टू एशेज़, डस्ट टू डस्ट’ तक पहुँच गया।
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