मृच्छकटिकम्-11 : गुणवान निर्धन गुणहीन अमीर से ज्यादा बेहतर होता है

अनुज राज पाठक, दिल्ली से

ये आभूषण चारुदत्त के घर से चुराए गए हैं, ऐसा पता चलते ही वसंतसेना और मदनिका बेहोश हो जाती हैं। शर्विलक मदनिका को सचेत करने का प्रयास करता है।

मदनिका होश में आते ही पूछती है, “अरे दुःसाहसी! मेरे लिए कुकर्म करते हुए उस घर में किसी की हत्या तो नहीं कर दी है?

शर्विलक : मैं भयभीत और सोए हुए पर प्रहार नहीं करता।

वसंतसेना : (होश में आकर) मैं फिर से जीवित हो गई।

मदनिका : वह मेरा भी प्रिय हुआ।

शर्विलक : ( ईर्ष्या से) क्या प्रिय हुआ? मैंने तुम्हारे लिए कुकर्म किया और तुम्हारे लिए कोई दूसरा (चारुदत्त) प्रिय है।

वसंतसेना दोनों की बातें सुन प्रसन्न होते हुए सोचती है कि शर्विलक का क्रोध अनुचित हो रहा है।

शर्विलक : स्त्रियों पर अत्यधिक अनुराग नहीं करना चाहिए। स्त्रियाँ अनुरक्त पुरुष को अपमानित करती हैं। इसलिए अपने पर अनुराग रखने वाली स्त्री के साथ ही प्रेम करना चाहिए।

मदनिका : क्यों व्यर्थ क्रोध कर रहे हो? ये आभूषण आर्या के हैं।

शर्विलक : तो इससे क्या?

मदनिका : ये आभूषण चारुदत्त के पास धरोहर थे।

शर्विलक : ( लज्जा के साथ) अज्ञानता में मैंने जिस छाया का आश्रय लिया उसी पेड़ को काट डाला।

वसंतसेना : अरे ये तो पश्चाताप कर रहा है। तो अज्ञान में ही इसने चोरी की है।

शर्विलक : मदनिके! इस समय क्या उचित होगा?

मदनिका : तुम चतुर हो। खुद विचार करो।

शर्विलक : स्त्रियाँ स्वभाव से ही चतुर होती हैं। चतुरता पुरुषों को शास्त्रों से सीखनी पड़ी है। (स्त्रियो हि नाम खल्वेता निसर्गादेव पण्डिताः। पुरुषाणान्तु पाण्डित्यं शास्त्रैरवोपदिश्यते।)

मदनिका : अगर मेरी बात मानते हो तो ये आभूषण उन्हीं को वापस कर दो।

शर्विलक : अगर चारुदत्त न्यायालय में कह देंगे तब?

मदनिका : अरे चंद्रमा में धूप नहीं होती (अर्थात् चारुदत्त ऐसा कभी नहीं कर सकते क्योंकि सज्जन व्यक्ति किसी को कष्ट नहीं देते)

शर्विलक : चोरी करने का न मुझे कोई दुख है, न दंड का भय। इसलिए कोई और उपाय बताओ।

मदनिका : चारुदत्त के सम्बन्धी होकर गहने वसंतसेना को दे दो।

शर्विलक : ऐसा करने से क्या होगा?

मदनिका : तुम चोर नहीं माने जाओगे और आर्य ऋण मुक्त हो जाएंगे।

मदनिका की बात सुनकर वसंतसेना सोचती है कि मदनिका ने बिल्कुल विवाहित स्त्री अर्थात पत्नी की तरह सलाह दी है। शर्विलक भी मदनिका की सलाह मान लेता है। मदनिका अब वसंतसेना को शर्विलक के आने की सूचना देते हुए कहती है, “आर्य चारुदत्त के पास से कोई ब्राह्मण आए हैं।”

वसंतसेना : तुम कैसे जानती हो? कि वह उनका संबंधी है?

मदनिका : मान्ये! क्या अपने सम्बन्धियों को भी नहीं जानूँगी?

वसंतसेना मन में हँसती है और शर्विलक को बुलाने को कह देती है।

वसंतसेना के पास आकर शर्विलक आभूषणों की पेटी दे देता है। बदले में वसंतसेना कहती है कि मेरा सन्देश आर्य चारुदत्त को दे देना कि “जो इन आभूषणों को लौटाए, उसी को मदनिका दे दी है”।

शर्विलक यह सुनकर वसंतसेना की मन ही मन प्रशंसा करता है। सोचता है कि आर्या ने हमारी बातों को जान लिया है। ऐसा सोचने के बाद कहता है, आर्य चारुदत्त धन्य हैं और मनुष्यों को हमेशा अच्छे गुण प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि गुणयुक्त निर्धन व्यक्ति, गुणहीन धनवान से अच्छा होता है। (गुणेष्वेव हि कर्त्तव्यः प्रयत्नः पुरुषः सदा। गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः।)

और

मनुष्यों को दया आदि गुण अपने में रहने चाहिए क्योंकि गुणवान को कोई भी अप्राप्य नहीं। जैसे चन्द्रमा अपने गुणों के कारण ही भगवान शंकर से मस्तक पर सुशोभित होता है। (गुणेषु यत्नः पुरुषेण कार्यो न किश्चिदप्राप्यतमं गुणानाम्। गुणप्रकर्षादुडुपेन शम्भोरलङ्घ्यमुल्लङ्गितमुत्तमाङ्गम्।)

वसंतसेना इसके बाद मदनिका को मुक्त कर शर्विलक से साथ भेज देती है। शर्विलक वसंतसेना और चारुदत्त को शुभकामनाएँ देते हुए मदनिका के साथ विदा लेता है। 

जारी….
—-
(अनुज राज पाठक की ‘मृच्छकटिकम्’ श्रृंखला हर बुधवार को। अनुज संस्कृत शिक्षक हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखते हैं। दिल्ली में पढ़ाते हैं। वहीं रहते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। इससे पहले ‘भारतीय-दर्शन’ के नाम से डायरी पर 51 से अधिक कड़ियों की लोकप्रिय श्रृंखला चला चुके हैं।)

पिछली कड़ियाँ
मृच्छकटिकम्-10 : मनुष्य अपने दोषों के कारण ही शंकित है
मृच्छकटिकम्-9 : पति की धन से सहायता करने वाली स्त्री, पुरुष-तुल्य हो जाती है
मृच्छकटिकम्-8 : चोरी वीरता नहीं…
मृच्छकटिकम्-7 : दूसरों का उपकार करना ही सज्जनों का धन है
मृच्छकटिकम्-6 : जो मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार बोझ उठाता है, वह कहीं नहीं गिरता
मृच्छकटिकम्-5 : जुआरी पाशों की तरफ खिंचा चला ही आता है
मृच्छकटिकम्-4 : धरोहर व्यक्ति के हाथों में रखी जाती है न कि घर में

मृच्छकटिकम्-3 : स्त्री के हृदय में प्रेम नहीं तो उसे नहीं पाया जा सकता
मृच्छकटिकम्-2 : व्यक्ति के गुण अनुराग के कारण होते हैं, बलात् आप किसी का प्रेम नहीं पा सकते
मृच्छकटिकम्-1 : बताओ मित्र, मरण और निर्धनता में तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?
परिचय : डायरी पर नई श्रृंखला- ‘मृच्छकटिकम्’… हर मंगलवार

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

सरल नैसर्गिक जीवन मतलब अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी!

मानव एक समग्र घटक है। विकास क्रम में हम आज जिस पायदान पर हैं, उसमें… Read More

3 days ago

कुछ और सोचिए नेताजी, भाषा-क्षेत्र-जाति की सियासत 21वीं सदी में चलेगी नहीं!

देश की राजनीति में इन दिनों काफ़ी-कुछ दिलचस्प चल रहा है। जागरूक नागरिकों के लिए… Read More

4 days ago

सवाल है कि 21वीं सदी में भारत को भारतीय मूल्यों के साथ कौन लेकर जाएगा?

विश्व-व्यवस्था एक अमूर्त संकल्पना है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले घटनाक्रम ठोस जमीनी वास्तविकता… Read More

5 days ago

महिला दिवस : ये ‘दिवस’ मनाने की परम्परा क्यों अविकसित मानसिकता की परिचायक है?

अपनी जड़ों से कटा समाज असंगत और अविकसित होता है। भारतीय समाज इसी तरह का… Read More

1 week ago

रिमोट, मोबाइल, सब हमारे हाथ में…, ख़राब कन्टेन्ट पर ख़ुद प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाते?

अभी गुरुवार, 6 मार्च को जाने-माने अभिनेता पंकज कपूर भोपाल आए। यहाँ शुक्रवार, 7 मार्च… Read More

1 week ago